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8 मई को मनाया जाएगा अंतर्राष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस

हर वर्ष 8 मई  को अंतर्राष्ट्रीय थैलीसिमिया दिवस मनाया जाता है । थैलासीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है  और रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है जिसके कारण उसे बार-बार बाहरी खून चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

इस वर्ष थैलीसिमिया इंटरनेशनल फेडरेशन के अनुसार इस दिवस की थीम है – “The dawning of a new era for thalassaemia : Time for a global effort to make novel therapies accessible and affordable to patients” यानि — थैलीसिमिया के लिए एक नए युग की शुरुआत: समय है नवीन चिकित्सा में विश्व के प्रयास रोगियों की पहुँच में और सस्ती हो।

राज्य बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ.अमर सिंह ठाकुर ने बताया थैलीसिमिया एक आनुवांशिक रक्त संबंधी जानलेवा बीमारी है। विशेष रुप से एक स्वस्थ शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है। जबकि थैलीसिमिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की रह जाती है। जिसका असर शरीर के हिमोग्लोबिन यानि रक्त बनने की गति पर होता है। जिसके कारण शरीर में रक्त की मात्रा कम हो जाती है और शरीर दुर्बल होने लगता है और धीरे-धीरे अन्य बीमारियों का भी शिकार होने लगता है। थैलीसिमिया के पीड़ित व्यक्ति को महीने में एक बार रक्त को बदलवाना अति आवश्यक हो जाता है। थैलीसिमिया की बीमारी का उचित समय पर उपचार न मिलने पर पीड़ित की मृत्यु तक हो सकती है।

भारत में इसके आंकड़े:

सेन्सेस 2011 के अनुसार भारत में 3-4% बच्चों में थैलीसिमिया पाया जाता जो तकरीबन 350-450 लाख बच्चे होते हैं| यह आंकड़ा हर राज्य और हर जात-धर्म का है। थालासेमिया आमतौर पर आदिवासियों मैं पाया जाता हैऔर भारत की 8% जनसँख्या आदिवासी है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार थैलीसिमिया से पीड़ित अधिकांश बच्चे कम आय वाले देशों में पैदा होते हैं | इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। 

 प्रतिवर्ष विश्व थैलीसिमिया दिवस मनाने का उद्देश्य :

•          इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करना ।

•          इसके रोग के साथ लोगों को जीने के तरीके बताना ।

•          रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देना तथा टीकाकरण के बारे में गलत धारणाओं का निराकरण करना ।

•          ऐसे व्यक्ति जो इस रोग से ग्रस्त हैं, शादी से पहले डाक्टर से परामर्श के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना ।

थैलीसिमिया एक आनुवंशिक बीमारी है  जोमाता -पिता से बच्चों को मिलती है। यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है  । हीमोग्लोबिन आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है | ग्लोबिन दो तरह का – अल्फ़ा व बीटा ग्लोबिन । थैलीसीमिया के रोगियों में ग्लोबीन प्रोटीन  या तो बहुत कम बनता है या नहीं बनता है जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं ।   इससे  शरीर को आक्सीजन नहीं मिल पाती है और व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ब्लड ट्रांस्फ्युसन की प्रक्रिया जनसँख्या के एक छोटे अंश को ही मिल पाती है बाकी रोगी इसके अभाव में अपनी जान गँवा देते हैं ।

थैलीसिमिया कई प्रकार का होता है – मेजर, माइनर और इंटरमीडिएट थैलेसीमिया । संक्रमित बच्चे के माता और पिता दोनों के जींस में थैलेसीमिया है तो मेजर, यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक के जींस में थैलेसीमिया है तो माइनर थैलीसिमिया होता है । इसके अलावा इंटरमीडिएट थैलीसिमिया भी होता है जिसमें मेजर व माइनर थैलीसीमिया दोनों के ही लक्षण दिखते हैं ।

थैलीसिमिया के लक्षण:

इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं | कुछ बच्चों में 5 -10 साल के मध्य दिखाई देते हैं  त्वचा, आँखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं औरआंतों में विषमता आ जाती है, दांतों को उगने में काफी कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है ।

थैलीसिमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है । कम गंभीर अवस्था में पौष्टिक भोजन और व्यायाम बीमारी के लक्षणों को  नियंत्रित रखने में मदद करता है ।

रोग से बचने के उपाय:

•          खून की जांच करवाकर रोग की पहचान करना ।

•          शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाना ।

•          नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचना ।

•          गर्भधारण से 4 महीने के अन्दर भ्रूण की जाँच करवाना ।

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