
उसे ढूंढ लूंगा ,तब लौटूंगा
सब लोग गए
अपने भी दूर हुए
समय का पहिया रूकता कहाँ है
चांदनी रात है
समुद्र की लहरियां अभी शांत है
आसमान में तारे चमक रहे हैं
ठंठ शरीर को कंपकपा रही है
महानदी में कुछ मछवारों की आवाज आ रही है
कुछ चिंता नहीं
समय से पहले अपनों ने मुख फेर लिया
कोई मेरे तरफ आ रहा है
कुछ पद -शब्द सुनाई पड़ रहे हैं
मेरा आत्मविश्वास है
उसे ढूंढ लूंगा ..
वह बस मुझसे नाराज है
कहीं छुप कर बैठा होगा
भला कोई अपने पिता से नाराज होता है क्या
मेरी आँखें थोड़ी कमजोर है
रात अब गुजरने को है
सुबह -सुबह मिल जायेगा
मुझे विश्वास है
इस रात उसे सबक मिल गई होगी
अब वह घर लौट आयेगा
सुबह जब भूख लगेगा
माँ की याद उसे खींच लायेगा
वह लौट आयेगा …
सूरज निकलने से पहले -पहले
उसे ढूंढ लूंगा ,तब लौटूंगा














