
कबिता, कभी सोचा है वह कितना दर्द सहती है,
कभी सोचा है वह कितना दर्द सहती है,
फिर भी कभी ना कुछ कहती है।
बस सब की सुनती रहती है,
कितने दर्द मे हो फ़िर भी वह सारे काम करती है ॥ 1 ॥
उस अवस्था में उसको अपवित्र बताया जाता है,
यदि वह घर से बाहर निकले तो गंदा उसका चरित्र बताया जाता है।
शर्म के मारे सबके आगे लाज छुपाए रहती है,
कोई देख ना ले इसके कारण दाग छुपाई रहती है ॥ 2 ॥
दर्द से कराहती चुप्पी साधे बस सब की सुनती जाती है,
घर और मंदिर सब कामों से वर्जित कर दी जाती है।
जरूरत उसको रहती सबके सहारे और प्यार की,
पर खाती रहती उसको बातें सब के दुर्व्यवहार की ॥ 3 ॥
हर मास जब रक्त बहे तो अशुद्ध बताया जाता है,
जन्म काल जब रक्त बहे तो प्यार जताया जाता है।
कोई न जाने इसकी पीड़ा, ना कोई साथ निभाता है,
नारी ही तो शक्ति स्वरूपा नारी खुद ही विधाता है ॥ 4 ॥
अब हर घर शक्ति कैसे बताए,
नारी ही तो माँ, मौसी, बहन, होती है ।
आँखों को खोल कर देखो तो पता चले,
वो अकेले मे कितना रोती है ॥ 5 ॥
शक्तिमान मिश्रा
अध्यक्ष ( घाट समिति) – स्वच्छ गोमती अभियान केराकत जौनपुर
मंडल प्रभारी ( काशी प्रांत) – ऑल इंडिया ब्लड डोनर ट्रस्ट REG