अन्य राज्यों कीछत्तीसगढ़न्यूज़

चरित्र शंका के चलते पत्नी सहित तीन मासूम बच्चे की हत्या करने वाले आरोपी को जिला न्यायालय ने सुनाई मृत्युदंड की सजा

*चरित्र शंका पर पत्नी समेत तीन बच्चों की हत्या करने वाले उमेंद्र केवट को जिला न्यायालय ने सुनाई मृत्युदंड की सजा*
*दोषी ने बीते दो जनवरी को रात में पत्नी एवं  तीनों नाबालिक  बच्चों की बेरहमी से गला घोंटकर की थी हत्या *
*पूरा मामले का विवरण इस तरह है*
*अभियुक्त पर आरोप*
1. ग्राम हिरीं, थाना मस्तुरी जिला बिलासपुर, छ.ग. निवासी आरोपी उमेंद केंवट के विरूद्ध आरोप है कि उसने दिनांक 01.01.2024 को समय लगभग 22.30 बजे से रात्रि 03.00 बजे के मध्य स्थान ग्राम हिरीं, थाना मस्तुरी, जिला बिलासपुर, (छ.ग.) स्थित अपने मकान मे अपनी पत्नी सुक्रिता केंवट के चरित्र पर शंका करने की बात पर अपनी पत्नी सुक्रिता केंवट (उम्र 32 वर्ष), दो पुत्रियां खुशी केंवट (उम्र 05 वर्ष) व लिसा केंवट (उम्र 03 वर्ष) तथा पुत्र पवन केंवट (उम्र 18 माह) का गला रस्सी से घोंटकर मृत्यु कारित कर उनकी हत्या कारित किया । अभियुक्त पर भा०द०सं० की धारा 302 (चार बार) के अंतर्गत दोषारोपण किया गया है।

*स्वीकृत तथ्य*
2. प्रकरण में स्वीकृत तथ्य यह है कि आरोपी उमेंद केंवट का विवाह वर्ष 2017 में मृतिका सुक्रिता केवट के साथ हुआ था, दोनो के संसर्ग से उनके तीन बच्चे खुशी (उम्र 05 वर्ष) व लिसा (उम्र 03 वर्ष) तथा पुत्र पवन (उम्र 18 माह) हुये। यह भी स्वीकृत है कि सुमंत केवट (अ०सा०-2) आरोपी का साला, तीजराम (अ०सा०-1) आरोपी का बडा भाई, परदेशी (अ०सा०-4) आरोपी का पिता, कंचन बाई (अ०सा०-6) आरोपी की मॉ, ब्रह्मा प्रसाद (अ०सा०- 7) आरोपी का साला अर्थात मृतिका सुक्रिता के चाचा का लडका, राजकुमार (अ०सा०-४) आरोपी का जीजा, दामोदर (अ०सा०-3) एवं दीनबंधु पटेल (अ०सा०-5) आरोपी के पडोसी है।

*घटना का संक्षेप सार*

3. अभियोजन कथा का संक्षेप सार यह है कि प्रार्थी सुमंत (अ०सा०-2) आरोपी का साला है वह एक भाई व पाँच बहन है। मृतिका सुक्रिता उनके चौथे नंबर की बहन है जिसका विवाह सात वर्ष पूर्व आरोपी उमेंद केंवट के साथ सामाजिक रिती रिवाज से हुआ था। दोनो के संसर्ग से दो लडकियाँ, एक लडका उत्पन्न हुये । दिनांक 02.01.2024 को प्रार्थी सुमंत केंवट ने सुबह 03.30 बजे के आसपास उसे मोबाईल फोन के माध्यम से पता चला कि उसके बहनोई उमेंद केंवट द्वारा बहन सुक्रिता के चरित्र शंका की बात को लेकर सुक्रिता केवट तथा उनके बच्चे खुशी केवट, लिसा केवट, पवन केवट का गला घोट कर हत्या कर दिया है। तब वह अपने घर परिवार व गांव वालो के साथ ग्राम हिरीं आरोपी उमेंद के घर आकर देखा तो गांव वालो की भीड लगी थी, घर के अंदर जाकर देखा तो उमेंद के घर के पीछे बाडी मे शौचालय के पीछे बहन सुक्रिता केंवट औंधे मुँह गिरी पडी थी, उसके मुँह व गले मे चोट का निशान था तथा घर के अंदर जहाँ उसके जीजा एवं दीदी अपने बच्चो के साथ रहते थे वहाँ अंदर लगे बेड के किनारे तरफ भांजी कुमारी खुशी उम्र 05 वर्ष चित हालत में, कुमारी लिसा केवट उम्र 03 वर्ष बांये तरफ करवट लिये हुये, बेड की बीच में भांजा पवन उम्र 18 माह चित हालत में, मृत पडे थे उनके गले मे किसी रस्सी जैसे वस्तु से दबा कर गला घोटने का स्पष्ट निशान दिख रहा था। आरोपी उमेंद उसकी बहन सुक्रिता के चरित्र पर शंका करता था, मारपीट, झगडा विवाद करता था जिसके संबंध मे दोनो के घर वालो की पूर्व मे बैठक हो चुकी थी। इस चरित्र शंका की बात को लेकर आरोपी उमेंद द्वारा चारों मृतको की हत्या कारित कर दी। तब उक्त सूचना पर बिना नंबरी मर्ग इंटिमेशन क्रमशः (प्र०पी० 03, 04, 05, 06) दर्ज की गई। उसके पश्चात मर्ग इंटिमेशन (प्र०पी० 42, 43, 44, 46) तैयार किया गया, देहाती प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया तथा नंबरी प्रथम सूचना पत्र 4/2024 (प्र०पी०- 45) के रूप में दर्ज किया गया उसके पश्चात घटना स्थल का निरीक्षण के घटना स्थल का नजरी नक्शा (प्र०पी०-15) तैयार किया गया, शव पंचनामा कार्यवाही (प्र०पी०-16, 17, 18, 19) तैयार कर घटना स्थल पर पडे जप्ती योग्य वस्तुओ को बरामदगी पंचनामा (प्र०पी०-10) के अनुसार बरामद कर, उक्त जप्तशुदा वस्तुओ को (प्र०पी०-09, 11, 12, 13) के अनुसार जप्त किया गया, उसके पश्चात मृतकगणो का नक्शा पंचायतनामा (प्र०पी०-27, 28, 29, 30) एवं शव परीक्षण (प्र०पी०-20, 21, 22, 23) कराया गया, गवाहो के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपी का मेमोरंडम कथन (प्र०पी०-४) तैयार किया गया, आरोपी के मेमोरंडम कथन के अनुसार प्रयुक्त रस्सी बरामदगी (प्र०पी०-10) की गई। उसके पश्चात जप्ती, जप्ती पत्रक (प्र०पी०-9, 12 एवं 13) तैयार किया । पटवारी द्वारा नजरी नक्शा (प्र०पी०-01) तैयार कराया गया। घटना स्थल एवं घटना स्थल से खून आलूदा मिट्टी को (प्र०पी०-32) के अनुसार तथा मृतिका सुक्रिता के शव के पास से पुरानी इस्तेमाली कान का झुमका व हरे रंग के स्लीपर की जप्ती (प्र०पी०-31) के अनुसार, मृतकगण खुशी, लिसा, पवन का शव जिस बेडरूम मे पडा था वहाँ से (प्र०पी०-33) के अनुसार चेकदार फूल एवं कार्टून प्रिंटेड बेडशीट का टूकडा जिसे बीच मे पैर मिट्टी का निशान दिख रहा है उसे जप्त किया गया। घटना स्थल की विडीयो ग्राफी कराई गई उसके पश्चात जप्ती 4 (प्र०पी०-12, 34) के अनुसार उक्त कैमरे एवं मेमोरीकार्ड एवं पेनड्राईव को जप्त कर वापस कैमरे को सुपुर्दनामे पर प्रदाय किया गया, मेमोरीकार्ड एवं पेनड्राईव आर्टिकल ए-1 एवं ए-2 तैयार कर धारा 65 बी का प्रमाण पत्र (प्र०पी०-39, 41) तैयार किया गया, साक्षीयो का कथन लेखबद्ध करने हेतु नोटिस प्रदाय की गई। आरोपी को (प्र०पी०-14) के अनुसार गिरफतार किया गया तथा गिरफतारी की सूचना (प्र०पी०-47) के अनुसार दी गई, कार्यपालक दंडाधिकारी को (प्र०पी०-37) के अनुसार पटवारी नक्शा तैयार करने हेतु ज्ञापन जारी किया गया तत्पश्चात पटवारी द्वारा घटना स्थल का पंचनामा (प्र०पी०-01) के अनुसार तैयार किया गया। चिकित्सा अधिकारी को (प्र०पी०-38) के अनुसार क्योरी रिपोर्ट प्रदाय करने हेतु ज्ञापन लेखबद्ध किया गया, प्रकरण मे प्रिसर्व वस्तुओ का परीक्षण किये जाने हेतु (प्र०पी०-49) के अनुसार उक्त जप्तशुदा वस्तुओ क्षेत्रिय न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया तथा (प्र०पी०-51) के अनुसार एफ०एस०एल० रिपोर्ट प्रेषित की गई जिसका परिणाम को अभिलेख में संलग्न किया गया। संपूर्ण विवेचना उपरांत अभियोग पत्र अवर न्यायालय के समक्ष पेश किया गया, जहां से धारा 209 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत पारित उपार्पण आदेश दिनांक 19.03.2024 के द्वारा यह प्रकरण इस न्यायालय को विचारण हेतु प्राप्त हुआ।
4. अभिलेख मे आयी साक्ष्य से आरोपी उमेंद केंवट द्वारा घटना के एक दिन पूर्व ही अपने घर आना तथा घटना किये जाने के पूर्व ही रस्सी के टूकडो को काट कर पूर्व से रखना आरोपी के अपराधिक कृत्य की तैयारी एवं अपराधिक आशय को दर्शित करता है तथा उसके पश्चात रात्रि में कोलाबाडी तरफ बाथरूम हेतु जाना और उस समय मृतिका पत्नी सुक्रिता की रस्सी से गले में फसा कर तथा उसकी पीठ में लात रख कर मृत्यु होते तक बैठे रहना उसके पश्चात वापस आना और तीनों बच्चें खुशी केंवट, लिसा केंवट व पवन केंवट की सोते समय मृत्यु कारित करना उसके पश्चात स्वयं आत्महत्या करने हेतु फांसी लगाना, रस्सी टूटने पर स्वयं थाना जाकर सूचना देना, वापस पुलिस वालो के साथ घर आकर घटना स्थल दिखाना ये सभी धारा 6 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत एक ही संव्यवहार के भाग होकर धारा 6 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत तथा धारा 7 हेतुक एवं परिणाम तथा घटना के पूर्व तैयारी करना, घटना कारित करने के पश्चात आरोपी द्वारा आत्महत्या करने का प्रयत्न एवं असफल रहने पर थाने में सूचना देना, आरोपी की घटना कारित करने के पश्चात का आचरण है इसके अतिरिक्त आरोपी की भतीजी राधा का रात्रि 03.00 बजे फोन लगा कर परिजनों एवं रिश्तेदारो को घटना की सूचना देना जो कि धारा 8 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत सुसंगत है। रोजनामनचा सान्हा समय 02.40 बजे, 02.45 बजे, 05.05 बजे लेखबद्ध किया जाना उसके पश्चात आरोपी के माध्यम से घटना की तस्दीक करना, घटना का समय व स्थान निश्चित करता है कि जो कि धारा 09 साक्ष्य अधि० के अंतर्गत सुसंगत है। अभियुक्त के प्रकटन के आधार पर बरामदगी, जप्ती तथा उसकी पुष्टि चिकित्सकीय साक्षी द्वारा किया जाना, रासायनिक परीक्षण में प्रदर्श सी में रक्त पाया जाना तथा शव परीक्षण रिपोर्ट के आधार पर मृतकगणो के गले मे लिग्लेचर मार्क होना, गले मे खून भरा होना यह सभी आरोपी के विरूद्ध, आरोपी द्वारा घटना कारित किये जाने का अकाट्य प्रमाण है अन्य किसी व्यक्ति द्वारा घटना कारित करना नहीं माना जा सकता अभियुक्त की ओर से कोई समाधानकारक, स्पष्टीकरण नही दिया गया है। स्पष्टीकरण का अभाव स्वयं एक अतिरिक्त तारतम्य होकर परिस्थिति जन्य साक्ष्य की श्रृखंला को पूर्ण करता है।
5. न्यायालय का यह अनुभव कि एक साक्षी झूठ बोल सकता है, किंतु परिस्थितियां नहीं परिस्थितिजन्य साक्ष्य के नियम को जन्म देता है। निर्णायक और भली-भांति सिद्ध तथ्यों से बनाया गया यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें अभियुक्त स्वेच्छ्या से प्रवेश कर जाता है किंतु इसमें से वह निर्दोष बाहर नहीं निकल पाता ।” इस प्रकरण में अभियुक्त स्वयं स्वेच्छ्या से उक्त चक्रव्युह में प्रवेश कर चुका है एवं उससे निर्दोष बाहर नहीं निकल पाया। इसके अतिरिक्त एक आंग्ल कहावत निम्नानुसार है- “ACTIONS SPESK LOUDER THAN WORDS अर्थात कृत्य कथन से ताकतवर होता है। अभियोजन द्वारा प्रस्तुत प्रकरण में पर्याप्त परिस्थितियां प्रमाणित की गई हैं, जिनसे केवल एवं केवल यही निष्कर्ष निकलता है कि आरोपी उमेद केंवट के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति ने उक्त अपराध कारित नहीं किया है।

6. अतः उभयपक्षो के तर्को का गहराई से मनने करने के उपरांत उपरोक्त की गई साक्षियो के सूक्ष्म विवेचना के आधार पर अभियोजन उक्त प्रकरण युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल रहा है अतः आरोपी उमेंद केंवट को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-302 (चार बार) के अन्तर्गत दोषी पाया जाता है।
*- दण्डादेश*
7. हत्या जैसे गंभीर अपराध मे एक उचित और न्यायपूर्ण सजा निर्धारित किये जाने के उद्देश्य से अथवा उसके दुर्लभतम मामला होने के विनिश्चय हेतु अपराध की संपूर्ण परिस्थितियों, उसमें अभियुक्त के आशय तथा अपराध की गंभीरता को प्रभावित करने वाले असीमित परिस्थितियों के प्रकाश में एक उचित और न्यायपूर्ण दंड निर्धारित करने का ऐसा कोई निश्चित सूत्र नहीं है जो सभी मामलों में समान रूप से पिरोया जा सके, इसलिए इसके अभाव में प्रत्येक प्रकरण के तथ्य पर आधारित विवेक अनुसार निर्णय ही एक मात्र ऐसा तरीका है, जिसमें निर्णय अंतर्गत न्यायसंगत ढंग से दंड अवधारित किया जा सकता है। इस विचारणीय प्रकरण में दर्शित हत्या की घटना, उसकी परिस्थितियां, क्रमवार चार व्यक्तियों की हत्या और उसमें भी अबोध बालकों एवं नवजात शिशु की गयी हत्या, तथा दोषसिद्ध अभियुक्त का उपरोक्तानुसार हत्या की घटना योजनाबद्ध तरीके से किया जाना प्रस्तुत मामले को तथा इसमें की गयी हत्या की घटना को अत्यंत गंभीर, बर्बर तथा भयावह निर्मित करता है।
8. मात्र हत्या करने की रिति ही नृशंस हत्या होना नहीं कहा जा सकता अपितु यह भी देखना है कि किनकी मृत्यु कारित की गई है क्या वो असहाय एवं निर्दोष थे। अभियुक्त ने 7 वर्ष पूर्व हुए उसके विवाह तथा उसके वैवाहिक जीवन से उत्पन्न 3 संतान जिसमें सबसे बडी खुशी उम्र 05 वर्ष, लिसा उम्र 03 वर्ष, पवन उम्र 18 माह सहित अपने पत्नी मृतिका सुक्रिता केंवट उम्र 32 वर्ष की एक के बाद एक कर सबका रस्सी से गला घोंटकर निर्मम हत्या कारित किया। उक्त हत्या का कारण केवल पत्नी के चरित्र पर संदेह होने का दर्शित हुआ है, उपरोक्त चरित्र पर संदेह अभियुक्त की वृत्ति का इतिहास घटना की तिथि से काफी पुराना था अर्थात यह कोई ऐसा आकस्मिक कारण दर्शित नही हुआ है, जो अभियुक्त को इस जघन्य अपराध को कारित किये जाने का कोई तात्कालिक कारण देता हो, अभियुक्त ने योजना बद्ध तरिके से सब से पहले अपनी पत्नी को रात में खाना खाने के बाद घर के बाहर बहाने से पेशाब करने हेतु ले जाकर उसके पेशाब करने के दौरान पीछे से रस्सी से उसका गला घोंटकर हत्या कारित किया, इसके बाद वापस कमरे में आकर छोटे-छोटे अबोध दो बच्चे तथा एक 18 माह का नवजात शिशु को एक-एक करके सबकी रस्सी से गला घोंटकर हत्या कारित किया, अभियुक्त ने हत्या की योजना उस दिन प्रातः से ही बनाकर रखा था और प्रातः ही उसने इस उद्देश्य से घर के परछी में लगे हुए रस्सी के टुकडे को काटकर अपने पास रख लिया था। साक्ष्य से यह भी असंदिग्ध और स्पष्ट दर्शित है कि अभियुक्त को अपने कार्य और परिणाम की संपूर्ण जानकारी थी और इसके बाद उसने उसके द्वारा निर्मित योजना अनुसार उपरोक्त अनुरूप चार व्यक्तियों के हत्या का बर्बर अपराध कारित किया है। आरोपी द्वारा मृतकगण सुक्रिता केंवट, खुशी केंवट, लिसा केंवट, पवन केंवट के गर्दन में रस्सी से गला घोट कर निर्दयतापूर्वक हत्या की गई, जो अत्यंत गंभीर प्रकृति का है।

9. अभियुक्त की स्थिति उपरोक्त न्यायिक दृष्टांत के प्रकाश मे इस प्रकरण को देखा जावे तो अभियुक्त की स्थिति मृतकगणो के संबंध मे न्यास एवं वैश्ववासिक-संबंध की थी वह उनका नैसर्गिक संरक्षक था। एक माता-पिता स्वप्न मे भी अपनी संतान का बुरा नहीं सोचते। एक पिता अपने बच्चो को कंधे पर इसलिये बैठालता है कि उसके बच्चे उस पिता से भी आगे देखे जो उनका पिता नहीं देख रहा है। अभियुक्त मृतिका सुक्रिता का पति एवं बच्चो का पिता था जो वैश्ववासिक संबंध की स्थिति मे थी। इस आपसी विश्वास एवं विश्वास को दृष्टिगत रखते हुए यह शंका नही की जा सकती कि वह इस ढंग से उनकी हत्या करेगा। अभियुक्त ने तो उनका संपूर्ण जीवन ही समाप्त कर दिया। तीन बच्चे खुशी उम्र 05 वर्ष, लिसा उम्र 03 वर्ष, पवन उम्र 18 माह एवं पत्नी सुक्रिता उम्र 32 वर्ष निहत्थे, प्रतिरोधहीन, निर्दोष एवं असहाय थे। अभियुक्त ने पूर्व निर्धारित योजना बनाकर राक्षसी आक्रमण किया। घटना दिनांक को उसने संपूर्ण तैयारी कर ली थी अर्थात यह एक सोची समझी रणनीति थी*

**  चिकित्सीय साक्षी अनिल कुमार के साक्ष्य के अनुसार मृतकगणो के पूरे गले मे लिग्लेचर मार्क था तथा उनकी मृत्यु रस्सी से गला दबा कर दम घुटने से हुई थी। सोते समय तीनो बच्चो का गला रस्सी से दबाये जाने से प्रमाणित है इस पाश्चिक आक्रमण का विरोध करने की स्थिति में मृतकगण नहीं थे, वास्तव मे जिसकी सहायता एवं रक्षा की उनसे अपेक्षा की जाती है उसने उसके विपरीत करते हुये उनकी निर्दयता पूर्वक रस्सी से गला दबा कर हत्या कर दिया, उसकी अपराधिकता निश्चित ही बर्बरता की पराकाष्ठा है ऐसे कृत्यो की मिसाल बहुत ही कम मिलती है इस नृशंस एवं हृदयहीन हत्या को धिक्कारने के लिये कडे से कडे शब्द भी कम पडेगे । अभियुक्त न तो विकृतचित्त है न ही मानसिक रोगी है। वह करीब 34 वर्ष का होकर बौद्धिकता से परिपक्व मस्तिष्क का है। वह अपने कृत्यो का परिणाम को समझ सकता था। उसके चेहरे पर घृणित कृत्य के लिये पश्चाताप के कोई लक्षण नही दिखाई पडते है। अपराध को कम करने वाली कोई परिसीमन कारी परिस्थिति खोजने के पश्चात भी नही पायी जाती है। अपराध का हेतुक, अपराध मे की गई कुरता, अपराध करने का प्रकार, पक्षकारो के मध्य वैश्वासिक संबंध एवं न्यास की स्थिति, खुशी, लिसा, पवन का सर्वथा निर्दोष, असहाय एवं निहत्था होना, आरोपी की प्रेरणा, मृतको की कमजोरी, अपराध की भयावहता एवं उसका निष्पादन ये सभी तथ्य इस तथ्य एवं परिस्थितियाँ इस प्रकरण को विरलतम से विरलतम अर्थात बिरलो मे बिरला (Rarest of Rare cases) बनाती है। ऐसा बर्बरता पूर्ण व्यवहार जो कि आरोपी द्वारा वैश्वासिक संबंध की स्थिति में था उसका दोष अत्यधिक भृष्टता का अनुपात गृहण कर लेता है। अभियुक्त के कृत्य की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुये उसे समाज मे जीने का अधिकार नहीं है तथा उनके साथ न्यायिक नम्रता की गई तो इसे न्यायिक पंगुता मानकर ऐसे अपराधी अपराध करने के लिये प्रोत्साहित होगे और तब इस समाज को विधि या काननू की मदद से चला पाना कठिन होगा। आरोपी सामाजिक, नैसर्गिग विधि एवं नियम द्वारा अधिरोपित कर्तव्य का उचित रूप से पालन न किये जाने का दोषी होने के साथ साथ बर्बरता पूर्ण अपराधिक कृत्य किये जाने का दोषी है। ऐसा विरलतम से विरल (Rarest of Rare cases) कृत्य इस कारण अक्षम्य है क्योकि मात्र आरोपी के उक्त अपराधिक बर्बरता पूर्ण कृत्य के कारण कुल चार मानव जिनमे से तीन अबोध, असहाय, निर्दोष बालक जिनकी मृत्यु कारित करने का कोई कारण नहीं था, मात्र पत्नी पर चरित्र शंका थी वह भी एकपक्षीय थी, वे निर्दोष थे, वह अपने मनुष्य के रूप में जन्म होने के कारण, मनुष्य को मनुष्य के रूप मे जीवन जीने का जो अधिकार प्राप्त हुआ था वह प्राप्त नहीं कर सके और वे असामयिक रूप से, मानवीय मूल्यो के विरूद्ध नृशंस तरीके से मृत्यु को प्राप्त हुये। इन गंभीर कारकों के विपरीत, आरोपी की उम्र भी कम करने वाला कारक नहीं है क्योकि वह 34 वर्ष का बौद्धिकता से परिपक्व मस्तिष्क का है, हॉलाकि जिस तरह से अपराध किया गया है, उसे देखते हुए उक्त कम करने वाला कारक गंभीर कारकों से अधिक नहीं है। इस प्रकरण में सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है एवं वह पुनः समाज मे शामिल होने के लायक नहीं है। इस प्रकरण में अभियुक्त को मृत्यु दंड कारित करना ही समाज के बेहतर हित मे उपयुक्त होगा

10. अतः प्रकरण की समस्त परिस्थितियों एवं उभयपक्षो के तर्कों पर गहराई से मनने करने के उपरांत उपरोक्त लेखबद्ध कारणों से अभियुक्त को आजीवन कारावास की सजा को आरोपित करने के निवेदन को अस्वीकार करते हुए अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा-302 (चार बार) के अपराध के लिए मृत्युदंड एवं 10000/- (रूपये अक्षरी दस हजार) के अर्थदंड से दंडित किया जाता है एवं आदेशित किया जाता है कि अभियुक्त को उसकी गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जावे, जब तक उनकी मृत्यु न हो जाए या प्राणान्त न हो जाए।

11. आरोपी द्वारा अर्थदंड की राशि अदा न करने पर तीन माह का साधारण कारावास की सजा पृथ्क से भुगतायी जावे ।

12. उपरोक्त मृत्युदंड की पुष्टी हेतु संपूर्ण प्रकरण केश डायरी सहित माननीय उच्च न्यायालय धारा 366 द.प्र.सं. (भा.ना.सु. संहिता की धारा 407) एवं नियम एवं आदेश (अपराधिक) के नियम 273 अनुसार संप्रेषित की जावे । उपरोक्त दण्डादेश तब तक निष्पादित नहीं होगा, जब तक इसकी पुष्टी माननीय छ०ग० उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा न कर दी जावे। माननीय छ०ग० उच्च न्यायालय बिलासपुर का आदेश होने तक अभियुक्त को इस न्यायालय के वारंट के अधीन (द.प्र.सं. की अनुसूची 2 प्रारूप संख्या 40 एवं प्रा.सं.41 भा. ना.सु.संहिता) जेल अभिरक्षा मे सुपुर्द किया जाये ।

*पीडित प्रतिकर योजना*

13. इस प्रकरण मे मृतिका सुक्रिता केंवट उम्र 32 वर्ष एवं तीनो बच्चे दो पुत्रियां खुशी केंवट (उम्र 05 वर्ष) व लिसा केंवट (उम्र 03 वर्ष) तथा पुत्र पवन केंवट (उम्र 18 माह) की मृत्यु कारित की गई है जो कि कंचन बाई एवं परदेशी की बहु थी। उक्त दोनो के पुत्र अभियुक्त उमेंद केंवट के द्वारा उक्त अपराध कारित किया गया है, ऐसी दशा में परदेशी एवं कंचन बाई की एक आगे आने वाली पीढी समूल रूप से समाप्त हो चुकी है, कोई गुंजाईश भी शेष नहीं है। पूर्व में जो मृतकगणो के नानी को अंतरिम राहत प्रदान की गई थी चूँकि सुक्रिता का विवाह कंचन बाई के घर मे हो चुका था एवं मृतकगण इस परिवार के वंशज थे, निश्चित ही परिवार में मृत्यु के कारण सब से ज्यादा क्षति एवं हानि हो कंचन बाई एवं परदेशी केंवट (मृतिका की सास व ससुर एवं मृतक बच्चो के दादा-दादी) अधिसम्भाव्य है । अतः शेष रूप से जो भी राशि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पश्चात मे अभिनिर्धारित करे पीडित प्रतिकर योजना के अन्तर्गत कंचन बाई केंवट व परदेशी केवट को प्रदाय की जावे। सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर को तत्संबंध में निर्णय की प्रति अग्रिम कार्यवाही हेतु संप्रेषित की जावे ।

*विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका*

14. यह न्यायालय आरोपी की ओर से प्रतिनिधत्वकर्ता चीफ लीगल एंड डिफेंस काउंसिल श्री कुंदन सिंह एवं श्री विनय उपाध्याय अतिरिक्त लीगल एंड डिफेंस काउंसिल का शुद्धअंतर्मन, सहृदय से धन्यवाद एवं आभार व्यक्त करती है जिन्होंने माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च न्यायालय, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जिस आशय एवं उद्देश्य के परिपेक्ष्य में बचाव पक्ष के लिए उनकी पैरवी हेतु नियुक्ति की गई थी उक्त कृत्य को पूर्ण निष्ठा एवं जवाबदारी से पूर्ण किया जो कि उनकी जिरह से ही स्पष्टतया दर्शित है। यह पृथ्क विषय है कि वे परिस्थितियोंवश उक्त चक्रव्युह को भेद नही पाये। उनका योगदान निःसंदेह अविश्मरणीय एवं अकल्पनीय है।
===========================
* फांसी की सजा सुनाने वाले जज है अविनाश कुमार त्रिपाठी*
*सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार जज त्रिपाठी मूलतः प्रयागराज उत्तरप्रदेश के रहने वाले है तथा वर्ष 2008 बैच के न्यायिक अधिकारी है। शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश और प्रयाग राज में हुई। जिला अधिवक्ता संघ के अनुसार सिविल मामलो के अच्छे जानकार हैं।
बेमेतरा में 01/04/2013 से 25.03.2018 तक व्यवहार न्यायाधीश वर्ग 1 के पद पर पदस्थ होकर भी सेवा दे चुके है *
============================

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button