
छत्तीसगढ़: माओवादी इलाकों में ‘खबरी’ पर लग रही बाजी, मात्र एक ‘ढोल’ मांद में छिपे नक्सलियों को कर देता है सचेत
माओवादी हिंसा से प्रभावित इलाकों में सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच ‘खबरी’ पर बाजी लग रही है। ‘खबरी’ को लेकर कभी सुरक्षा बल, नक्सलियों पर भारी पड़ते हैं, तो कभी नक्सली ‘बीजापुर’ जैसे बड़े हमले को अंजाम देकर सुरक्षा बलों को नुकसान पहुंचा जाते हैं। हथियारों की बात करें तो दोनों तरफ मुकाबला बराबरी का है। मुठभेड़ के दौरान एके 47, इंसास, एसएलआर, यूबीजीएल, एलएमजी, मोर्टार, बीजीएल, राकेट लॉन्चर, जैसे हथियारों का इस्तेमाल होता है। हालांकि असल ‘बाजी’, अब भी ‘खबरी’ पर ही लगती है। जिसका इंटेलिजेंस इनपुट सटीक हुआ, समझो उसी का वार निशाने पर लग जाएगा। नक्सलियों के अभेद ठिकाने और सीपीआई माओवादी के हेडक्वॉर्टर माड़ (अबूझमाड़) के आसपास 40-50 किलोमीटर दूरी तक का इलाका ऐसा है कि वहां पर या तो नक्सल हैं या सीआरपीएफ है। चूंकि नक्सली, जंगल में बहुत अंदर तक छिपे हैं, इसलिए वहां एकाएक पहुंचना आसान नहीं है। अगर उन्हें सुरक्षा बलों की मूवमेंट दिखती है, तो ढोल बजा देते हैं। ढोल की आवाज उस मांद तक जाती है, जहां इनके हेडक्वार्टर और ट्रेनिंग कैंप हैं। नक्सलियों की मांद तक पहुंचने का एकमात्र जरिया नए कैंप हैं। अब सीआरपीएफ द्वारा नक्सल प्रभावित इलाक़ों में कैंप स्थापित किए जा रहे हैं।
नक्सल प्रभावित इलाके में आसान नहीं है ‘इंटेलिजेंस’
सीआरपीएफ के एक अधिकारी बताते हैं कि बस्तर या किसी दूसरे नक्सल प्रभावित इलाके में इंटेलिजेंस का काम आसान नहीं है। घने जंगल, दुर्गम पहाड़ियां एवं विपरित भौगोलिक परिस्थितियों के कारण, ऑपरेशन आसान नहीं है। जंगल में 40-50 किलोमीटर तक नक्सली मिलेंगे या सुरक्षा बल। गांव हैं, लेकिन वहां नक्सली, भोले-भाले ग्रामीणों को डरा धमका कर अपनी बात मनवा लेते हैं। इंटेलिजेंस जुटाने के लिए जिस तरह से सुरक्षा बलों के खबरी हैं, उसी तरह से नक्सलियों ने भी बड़े पैमाने पर अपना इंटेलिजेंस नेटवर्क खड़ा कर रखा है। इसका तोड़ अभी सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। सुरक्षा बलों की पल-पल की सूचना, नक्सलियों तक पहुंच जाती है। इस वजह से कई बार आखिरी मौके पर अहम ऑपरेशन को टालना पड़ा है।
पांच साल के दौरान घायल हुए सुरक्षा कर्मी
सारे ऑपरेशन को खराब कर सकता है एक ढोल
बड़े ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों की कई टीमें अलग-अलग रास्तों से आगे बढ़ती हैं। नक्सली, जंगल के चप्पे-चप्पे पर अपना आदमी रखते हैं। उन्हें जैसे ही सुरक्षा बलों की मूवमेंट नजर आती है, वे ढोल बजा देते हैं। इसके बाद घने जंगल में नक्सलियों की मांद तक अलर्ट पहुंच जाता है। इसके चलते ऑपरेशन की रणनीति बदलनी पड़ती है। माड़ इलाके का तो कई दशकों से सर्वे ही नहीं हुआ है। इससे भी वहां की भौगोलिक स्थिति का अंदाजा लगाना आसान नहीं है। ऑपरेशन को बचाए रखने के लिए सुरक्षा बल, रात के समय चलना शुरू करते हैं। हालांकि रात में एक घंटे में मुश्किल से एक किलोमीटर चला जाता है, जबकि दिन में वही रास्ता चार-पांच किलोमीटर तय हो जाता है। अगर पेड़ों के पत्ते गिर जाते हैं तो ऑपरेशन में सहूलियत होती है। दूर तक की गतिविधि नजर आ जाती है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र में घेरा डालने के लिए नए कैंप स्थापित किए जा रहे हैं। दो वर्ष में तीस से ज्यादा कैंप स्थापित हो चुके हैं। इन्हीं कैंपों की मदद से नक्सलियों पर निर्णायक प्रहार होगा।
पांच साल में मारे गए वामपंथी उग्रवादी
बस्तर पुलिस के सामने सरेंडर कर चुके हैं 863 नक्सली
छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला तो 40 वर्षों से भी अधिक समय से नक्सलियों के प्रहार झेल रहा है। पिछले कुछ वर्षों से सीआरपीएफ एवं दूसरे सुरक्षा बलों ने इस इलाके में अपनी पकड़ मजबूत बनाई है। बस्तर के आईजी सुंदरराज पी के अनुसार, दो वर्षों में नक्सलियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की गई है। करीब 236 मुठभेड़ हुई हैं, जिनमें 86 नक्सली मारे गए हैं। इनमें हार्डकोर नक्सली भी शामिल हैं। 863 नक्सली बस्तर पुलिस के सामने सरेंडर कर चुके हैं, जबकि 909 नक्सलियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। नक्सलियों के कब्जे से 158 हथियार बरामद किए गए हैं। इनमें एके-47, एसएलआर, इंसास और यूबीजीएल शामिल है। देशभर में साल 2016 से लेकर 15 नवंबर 2021 तक माओवादी हमलों में ‘733’ जवान/अधिकारी घायल हुए हैं। घायलों की सर्वाधिक संख्या ‘486’ छत्तीसगढ़ में है। झारखंड में 80 व महाराष्ट्र में 110 जवान घायल हुए हैं। साल 2016 में 145, 2017 में 153, 2018 में 152, 2019 में 82, 2020 में 108 व 2021 में 93 जवान घायल हुए हैं।
सुरक्षा बलों के 118 जवान और अधिकारी शहीद
नक्सल प्रभावित इलाकों में साल 2016 से लेकर 15 नवंबर 2021 तक विभिन्न सुरक्षा बलों के 118 जवान और अधिकारी शहीद हो गए हैं। छत्तीसगढ़ में 87 जवान शहीद हुए हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में 932 वामपंथी उग्रवादी मारे गए हैं। इनमें छत्तीसगढ़ में 492, झारखंड में 102, उड़ीसा में 98 और महाराष्ट्र के 144 उग्रवादी शामिल हैं। वामपंथी उग्रवाद की हिंसा के मामले कम हो रहे हैं। गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में वामपंथी उग्रवाद की हिंसा की घटनाओं में 70 फीसदी की कमी होने का दावा किया है। साल 2009 में हिंसा के 2258 केस थे तो 2020 में इनकी संख्या 665 है। आम नागरिकों और सुरक्षा बलों के जवानों की मौत का आंकड़ा भी 80 फीसदी तक गिर गया है। 2010 में इनकी संख्या 1005 थी तो 2020 में ये आंकड़ा 183 है। हिंसा का भौगोलिक विस्तार भी सीमित हो गया है। साल 2013 की बात करें तो माओवादी हिंसा का क्षेत्र 10 राज्यों के 76 जिलों तक फैला था। अब वह क्षेत्र कम होकर 9 राज्यों के 53 जिलों तक सिमट चुका है।
मुठभेड़ में इतने जवान हुए शहीद