यह एनटीपीसी लारा के एक कर्मचारी के परिवार की कोरोना से जंग जीतने की कहानी है।

जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिये …

कोरोना से जंग लड़ कर जीते एक परिवार के अनुभव पर आधारित

मैं आईटी प्रोफेशनल हूँ। इस क्षेत्र में परिवर्तन इतनी तीव्रता से होते हैं कि परिस्थितियों से सामंजस्य बैठाने के लिये हमें अतिरिक्त रूप से सजग रहना पड़ता है। यह सजगता मेरे दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुकी थी। कोविड की पहली लहर के प्रारम्भ से ही मैं कोविड प्रोटोकाल का पूर्ण अनुपालन करने लगा था। मास्क, सेनेटाइजर एवं सोशल डिस्टेन्सिंग के महत्व से मैं पूरी तरह वाकिफ था।

मेरे घर से कार्यालय की दूरी लगभग बीस किलोमीटर है। मैं सुबह तकरीबन 8:00 बजे ही घर से कार्यालय के लिए निकल जाता हूँ एवं वापसी तक रात के लगभग आठ बज जाते हैं। परिवार में माता-पिता, पत्नी एवं दो छोटे बच्चे हैं। कुल मिलाकर सब कुछ सुखमय एवं शांतिपूर्ण था। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हमनें यह निश्चित कर रखा था कि डिनर पूरा परिवार एक साथ करेगा एवं हम इस निश्चय को पूरी तरह निभाते आ रहे थे।

हमारी इस शांतिपूर्ण जिंदगी में अचानक एक तूफान आ गया जिसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। अप्रैल 2021 में कोविड संक्रमण की दूसरी लहर अपने उफान पर थी। एक दिन माँ एवं पिताजी ने सांस लेने में तकलीफ एवं बुखार के संबंध में बताया। लक्षणों को देखते हुये मैंने तुरंत कोविड टेस्ट कराने का निर्णय लिया। लक्षण कोविड के प्रतीत हो रहे थे अतः हम सब की जांच जरूरी थी। जांच में जिस बात का डर था वही हुआ। टेस्ट में माँ, पिताजी एवं मेरा; तीनों का टेस्ट कोविड पाजिटिव आया। पिताजी को सांस लेने में बेहद तकलीफ हो रही थी। हमें तुरंत अस्पताल में एड्मिट होने की आवश्यकता थी। हम पूरे शहर में भटकते रहे, समस्त कोविड सेंटरों का चक्कर काटते रहे – बेड की तलाश में। समूचे शहर में कहीं बेड उपलब्ध नहीं था। मेरे शहर की ही क्या, समूचे देश में उस वक्त यही स्थिति थी।

लंबी तलाश एवं जद्दोजहद के पश्चात एक स्थानीय कोविड सेंटर में बेड उपलब्ध हो पाया। हम तीनों को वहाँ एडमिट होना पड़ा। पिताजी की उम्र 74 वर्ष है। बुखार तो उन्हें था ही साथ ही ऑक्सीज़न का स्तर भी तेजी से गिरता जा रहा था। कोविड सेंटर में ऑक्सीज़न सिलिन्डर उपलब्ध नहीं था। उनकी हालत बद से बदतर होती जा रही थी। मैं असहाय था। लाख प्रयासों के बावजूद ऑक्सीज़न सिलिन्डर उपलब्ध नहीं करा पाया था। उनकी साँसे उखड़ रही थी। मैं उनकी पीड़ा महसूस करने का प्रयास कर रहा था। कुछ देर के लिये मैंने अपनी साँसे रोक ली। किन्तु यह क्रम कब तक चलता।

मैंने अपने मित्रों एवं विभाग के सहकर्मियों से संपर्क किया। मुझे तुरंत मदद मिली। कंपनी ने मेरे लिए ऑक्सीज़न सिलिन्डर युक्त एंबुलेंस की व्यवस्था की एवं समय रहते हमें रायपुर स्थित अस्पताल हेतु रिफर कर दिया गया।

एक नई जंग की शुरुआत हो चुकी थी। संभवतः लगातार कोविड सेंटर के चक्कर एवं संपर्कों के कारण अब मेरा पूरा परिवार कोविड पॉज़िटिव हो चुका था। मैं, मेरे पिताजी एवं माताजी पॉज़िटिव एवं लक्षण युक्त थे एवं रायपुर स्थित अस्पताल में एडमिट थे। पिताजी की हालत ज्यादा खराब होने के कारण उन्हें आईसीयू में शिफ्ट रखा गया था। मैं और माताजी उसी अस्पताल के वार्ड में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे थे। मेरी पत्नी यह जंग अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ अलग से लड़ रही थी। उन तीनों के टेस्ट भी पॉज़िटिव थे किन्तु लक्षण युक्त नहीं थे। उन्हें घर पर ही होम आइसोलेशन में रहना था। परिवार के सभी सदस्य दो भागों में विभक्त हो चुके थे एवं हमारे बीच लगभग 250 किलोमीटर की दूरी विद्यमान थी।

पिताजी एक सप्ताह तक आईसीयू में रहे। बेहतर देखरेख एवं चिकित्सा के कारण उनके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हुआ एवं उन्हें वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। लगभग एक महीने के इलाज के बाद मैं और मेरा परिवार पूरी तरह स्वस्थ हैं। हम सभी वापस आ चुके हैं एवं मैं अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर चुका हूँ।

आज मेरे लिये परिवार की परिभाषा बदल चुकी है। मैं परिवार को किसी दायरे में नहीं बांधना चाहता। मेरे मित्र, मेरे सहकर्मी, मेरे संगठन के कर्मचारी, समस्त चिकित्साकर्मी, जिसने भी मुझे इस कठिन दौर में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबल प्रदान किया, सभी मेरे परिवार के सदस्य हैं। मैं आज यदि कुछ के नाम लूँगा तो भी बहुत से नाम छूट जाएंगे। सभी निःस्वार्थ भाव से मदद करते रहे एवं किसी ने कभी अहसान नहीं जताया। आज मैं जब स्वस्थ होकर अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर चुका हूँ तो बहुत सी बातें पता चल रही है। मेरे कई मित्र हमारे लिये एंबुलेंस के प्रबंध में दिन-रात एक किए हुये थे। जब मैं रायपुर में था तो यहाँ महीने भर तक किसने मेरे परिवार का ख्याल रखा एवं हर छोटी से छोटी समस्या में उनके साथ खड़ा रखा, क्या मैं कभी भूल सकता हूँ। कई मित्र लगातार किसी न किसी माध्यम से निरंतर संपर्क में बने रहे एवं हमारा मनोबल बढ़ाते रहे।

आप इस महामारी से मात्र अपनी इच्छाशक्ति की बदौलत जीत सकते हैं और ये इच्छाशक्ति प्रदान करता है आपका परिवार, जो अब अत्यंत विशाल स्वरूप ग्रहण कर चुका है। इस आपदा ने हमें अब और नजदीक ला दिया है।

कहानी के लेखक अरुण कुमार मिश्रा

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