Janmashtami : आज भी धड़क रहा श्रीकृष्ण का दिल, हैरान कर देगा हजारों साल पुराना रहस्य

नई दिल्ली: कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) आज धूमधाम से मनाई जा रही है. कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा (Mathura) में देश-विदेश से श्रद्धालुओं का तांता लगा है लेकिन श्रीकृष्ण का दिल कहीं और ‘धड़क’ रहा है. महाभारत (Mahabharat) के बाद वहेलिया के तीर से श्रीकृष्ण (Shri Krishna) के शरीर त्यागने की जनश्रुति तो सुनी होगी लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इसके बाद भी कृष्ण का दिल धड़कना बंद नहीं हुआ और ये आज भी धड़क रह है.

जब बहेलिया ने मारा तीर

लोकमान्यता के मुताबिक महाभारत (Mahabharat) के युद्ध के 36 साल बाद जब श्रीकृष्ण (Lord Krishna) एक पेड़ के नीचे ध्यान लगा रहे थे तभी जरा नाम का बहेलिया हिरण का पीछा करते हुए वहां पहुंच गया. जरा ने कृष्ण के पैरों को हिरण समझ लिया और तीर चला दिया. लेकिन जैसे ही बहेलिया को गलती का अहसास हुआ वो श्रीकृष्ण के पास पहुंचा और माफी मांगी. लेकिन उसे क्या पता था कि ये भगवान की ही लीला है. श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि उसकी कोई गलती नहीं है बल्कि इसी विधि उन्हें धरती त्यागनी है.

बाली के वध का मिला दंड!

भगवान श्रीकृष्ण ने बहेलिया को बताया त्रेतायुग में श्रीराम के अवतार के रूप में उन्होंने सुग्रीव के बड़े भाई बाली का छुपकर वध किया था. पिछले जन्म की सजा उन्हें इस जन्म में मिली है. जरा ही पिछले जन्म में बाली था. यह कहकर श्रीकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया. इसके बाद से ही कलियुग की शुरुआत हो गई.

अर्जुन ने किया अंतिम संस्कार

अर्जुन को जब पता चला कि श्रीकृष्ण और बलराम दोनों शरीर छोड़ चुके हैं. अर्जुन ने ही द्वारका में उनका अंतिम संस्कार कर दिया. श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो जलकर राख हो गया लेकिन हृदय राख नहीं हुआ. मान्यता है कि कृष्ण का हृदय लोहे के एक मुलायम पिंड में तब्दील हो गया. इसके बाद अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम्न जिन्होंने भगवान जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की थी उन्हें पानी में तैरता हुआ दिल मिला.

पानी में तैरता मिला श्रीकृष्ण का दिल

एक बार नदी में नहाते हुए राजा इंद्रद्युम्न को लोहे का मुलायम पिंड मिला. लोहे के नरम पिंड को पानी में तैरता देख राजा आश्चार्य में पड़ गए. इस पिंड को हाथ लगाते ही उन्हें भगवान विष्णु की आवाज सुनाई दी. भगवान विष्णु ने राजा इंद्रद्युम्न से कहा, ‘यह मेरा हृदय है, जो लोहे के एक मुलायम पिंड के रूप में हमेशा जमीन पर धड़कता रहेगा.’ इसके बाद राजा ने उस पिंड की भगवान जगन्नाथ मंदिर में जगन्नाथ जी की मूर्ति के पास ही स्थापना कर दी.

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