
लहरा लो तिरंगा प्यारा – “इस झंडे के नीचे न कोई राजा है न रंक, न अमीर न गरीब, न मजदूर है न मालिक, सब एक समान हैं “
सरोजनी नायडू
“जब कोई व्यक्ति अपने घर, दफ्तर या सार्वजनिक स्थल पर तिरंगा फहराता है, तो वह अपने धर्म, पंथ, राजनैतिक संबंधों, क्षेत्रीय विभिन्नताओं से ऊपर उठकर केवल यही दर्शाता है कि इस ध्वज के नीचे हम सभी भारतीय हैं। यह हमें देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा देता है।”
नवीन जिन्दल
प्रत्येक स्वतंत्र राष्ट्र का अपना एक ध्वज होता है, जो उसकी संप्रभुता और स्वाभिमान का सर्वोच्च प्रतीक होता है। पहले राजाओं का अपना झंडा होता था लेकिन लोकतंत्र के वर्तमान युग में प्रत्येक राष्ट्र का अपना ध्वज है, जो उस देश की जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं का प्रतीक होता है। स्वतंत्र भारत ने केसरिया, सफेद और हरे रंग के तिरंगा को अपना राष्ट्रीय ध्वज बनाया, जिसके केंद्र में नीले रंग का 24 तिलियों वाला अशोक चक्र है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की अभिकल्पना पिंगली वेंकैया ने की थी, जिसे वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने अपनाया।
तिरंगा राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए मर-मिटने वालों के बलिदान का भी प्रतीक है। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले, देश की सीमाओं की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीरों की याद भी हमें दिलाता है। शून्य से शिखर तक देश की विकास यात्रा का भी यह प्रत्यक्षदर्शी है। यह भारत का गौरवशाली इतिहास, वैभवशाली वर्तमान एवं समृद्धशाली भविष्य है।
आजादी के बाद तिरंगा राष्ट्र की आन-बान-शान का प्रतीक तो बना लेकिन आम भारतीय इसे स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर ही अपने घर या कार्यालय में फहरा सकते थे। हमारे प्रेरणास्रोत श्री नवीन जिन्दल अमेरिका से एमबीए की पढ़ाई करके स्वदेश लौटे तो रायगढ़ में उन्होंने स्टील प्लांट की जिम्मेदारी संभालने के बाद नियमित रूप से प्रतिदिन तिरंगा फहराना शुरू किया, जिसका बिलासपुर संभाग के तत्कालीन आयुक्त ने विरोध किया और कहा कि इससे झंडे का अपमान होता है….यहीं उनके मन में विचार आया कि यह सरकार का क्यों, देश का झंडा क्यों नहीं, आम नागरिकों का झंडा क्यों नहीं?
श्री जिन्दल ने अमेरिका में पढ़ाई करते समय देखा था कि वहां के लोग राष्ट्रीय ध्वज को अपने ऑफिस, घर, सार्वजनिक जगहों पर गर्व और सम्मान के साथ फहराते हैं। उसी से वे प्रेरित हुए और भारत में भी राष्ट्रप्रेम की वह संस्कृति स्थापित करने का संकल्प लिया।
रायगढ़ में तिरंगा प्रतिदिन फहराने से रोके जाने के बाद श्री जिन्दल ने लगभग 10 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और 23 जनवरी 2004 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वी.एन. खरे, न्यायमूर्ति बृजेश कुमार और न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा ने फैसला सुनाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत एक भारतीय नागरिक को स्वतंत्र रूप से राष्ट्रीय ध्वज पूरे मान-सम्मान के साथ फहराने का अधिकार है और यह एक भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। इस फैसले ने एक नागरिक की राष्ट्र के प्रति निष्ठा और गर्व की भावना की अभिव्यक्ति को परिभाषित किया। इसके साथ ही प्रत्येक भारतीय को अपने घर, प्रतिष्ठान और सार्वजनिक स्थलों पर सम्मानपूर्वक तिरंगा दर्शाने व फहराने का मौलिक अधिकार प्राप्त हो गया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तिरंगा फहराने और उसे प्रदर्शित करने के अधिकार को जन-जन तक पहुंचाने के लिए फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया की स्थापना की गई। इसके पीछे यह विचार था कि तिरंगे के माध्यम से देशभक्ति प्रदर्शित करने की भावना को लोकप्रिय बनाने के लिए एक मंच लोकार्पित किया जाए, जो सभी नागरिकों को उन मूल्यों को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करे जो तिरंगे में निहित हैं – राष्ट्रीय गौरव, एकता और भाईचारा, वीरता और बलिदान।
श्री नवीन जिन्दल ने इसके बाद एक सांसद के रूप में राष्ट्रीय सम्मान के अपमान की रोकथाम के अधिनियम-1971 में संशोधन कर कमर से ऊपर तिरंगा पहनने की अनुमति के लिए सरकार से अनुरोध किया, जिसे मान लिया गया। आज संसद में या कहीं भी, कोई भी व्यक्ति लैपल पिन, बैंड आदि के माध्यम से देश के प्रति अपने प्रेम और विश्वास को प्रदर्शित कर सकता है। इसके बाद ही शुरू हुआ विशालकाय झंडों की स्थापना का अभियान। इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय में याचिका दायर कर स्मारकीय झंडों पर दिन-रात विशालकाय राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति मांगी गई। उस समय भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज को “जितना संभव हो सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच” फहराया जाता था। श्री नवीन जिन्दल के अनुरोध पर सरकार ने कहा कि ऐसे ध्वजदंड लगाए जा सकते हैं, बशर्ते रात में झंडों के लिए उचित रोशनी की व्यवस्था हो और बिजली चले जाने पर बैकअप का समुचित बंदोबस्त हो। मंत्रालय ने यह भी कहा कि ऐसे झंडों को तुरंत बदला जाना चाहिए जो क्षतिग्रस्त हो जाएं। गृह मंत्रालय से संतोषजनक उत्तर मिलने के बाद श्री नवीन जिन्दल ने फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया की उपाध्यक्ष श्रीमती शालू जिन्दल के साथ मिलकर विशालकाय ध्वज स्थापित करने की दिशा में काम शुरू कर दिया। फरवरी 2009 में सपना साकार हुआ और सबसे पहला 207 फुट ऊंचा ध्वज हरियाणा के कैथल की हनुमान वाटिका में फहराया गया। फ्लैग फाउंडेशन अब तक 90 से अधिक विशालकाय ध्वज देश के कोने-कोने में स्थापित कर चुका है। खुशी की बात यह है कि इसके बाद अनेक संस्थाएं आगे आईं और अभी तक 450 से अधिक विशालकाय ध्वज देश में लगाए जा चुके हैं। दुनिया के किसी भी देश में इतने स्मारकीय झंडे नहीं हैं, जितने भारत में हैं। यह देश में लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है।
आज हवाई अड्डों, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, विद्यालयों, अस्पतालों, मॉल और अनेक सरकारी-गैरसरकारी-सैन्य प्रतिष्ठानों में विशालकाय राष्ट्रध्वज को फहरते देखकर देशवासियों को राष्ट्र के प्रति निष्ठा और समर्पण की प्रेरणा मिलती है।
देश के अधिकतर सैन्य प्रतिष्ठानों में विशालकाय ध्वजदंड लगाने का श्रेय फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया को जाता है क्योंकि फाउंडेशन का मानना है कि सेना की निगहबानी में ही आम भारतीय चैन की नींद सो रहे हैं।
हमारा झंडा कितना उत्कृष्ट हो, इस पर भी फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया काम कर रहा है। इस कार्य के लिए उसने आईआईटी-दिल्ली के स्टार्टअप “स्वात्रिक” से समझौता किया है। यह संस्था राष्ट्रीय ध्वज के लिए उन्नत कपड़े विकसित करने का कार्य कर रही है क्योंकि देश की विविध जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप झंडे का कपड़ा तैयार करना बड़ी चुनौती है। लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि ध्वज के लिए सामग्रियों के चयन और उसकी डिजाइनिंग पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है ताकि झंडे का वजन कम हो और वह गर्मी, सर्दी और बरसात में भी उसी शान से फहराता रहे। स्वात्रिक रक्षा समेत अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कपड़े की उत्कृष्टता के लिए काम कर रहा है।
फ्लैग फाउंडेशन का सपना है कि हर भारतीय के हाथ में तिरंगा हो और 23 जनवरी को राष्ट्रीय ध्वज दिवस घोषित किया जाए। इसके साथ ही 23 जनवरी से 26 जनवरी तक राष्ट्रीय ध्वज सप्ताह घोषित किया जाए तो विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से 138 करोड़ भारतीयों तक राष्ट्रीय ध्वज के प्रति निष्ठा एवं समर्पण का संदेश बेहतर ढंग से पहुंचाया जा सकेगा। राष्ट्रीय ध्वज हमारी स्वतंत्रता, एकता और भाईचारा का प्रतीक है। इसके तीन रंग मिलकर देश को मजबूती देते हैं। केसरिया साहस और शक्ति, सफेद शांति और सादगी, हरा समृद्धि और चक्र का नीला रंग आसमान की ऊंचाई व समंदर की गहराई तक विकास के अवसरों का प्रतीक है।
तिरंगा सिर्फ एक झंडा नहीं बल्कि इसमें प्रत्येक भारतीय के लिए मूल्य और विश्वास निहित है। यह राष्ट्र के प्रति हमारे जज्बे को दिशा देता है। अनगिनत भाषाओं-बोलियों, संस्कृतियों, और अलग-अलग क्षेत्रीय व जातीय पहचान वाले हमारे देश भारत और हम भारतीयों को एक सूत्र में पिरोता है। राहें चाहे जितनी कठिन हों, तिरंगा हमें विजय का मार्ग दिखाता है। तिरंगा हमें प्रेरित करता है कि हम अपने देश भारत के लिए काम करें।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा में हमारे गणतंत्र की आत्मा है। इसमें संविधान के आदर्श बसते हैं। यह न सिर्फ हमारे जीवन में राष्ट्र के आवश्यक मूल्यों का प्रतीक है, बल्कि उन लाखों लोगों के अथक संघर्ष का भी उद्बोधक है जिन्होंने भारत को आजाद करने और इस आजादी को बनाए रखने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।
फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया तिरंगे में निहित संदेशों के प्रचार के लिए संगीत, कला, फोटोग्राफी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सेमिनार, प्रदर्शनी, साहित्य और ऑडियो-वीडियो को भी माध्यम बना रहा है। इस संस्था ने “तिरंगा – ए सेलिब्रेशन ऑफ द इंडियन फ्लैग” नामक कॉफी टेबल बुक निकाली है, जिसमें टीएस सत्येन, रघु राय, अविनाश पसरीचा, राम रहमान, प्रशांत पंजीयर, दयानिता सिंह जैसे लोकप्रिय फोटोग्राफरों की बोलती हुई तस्वीरें हैं। “तिरंगा तेरा आंचल” नामक एक संगीतमय एलबम भी जारी किया गया है। इसमें संगीत वनराज भाटिया ने दिया है। सोनू निगम, उदित नारायण, साधना सरगम, श्रेया घोषाल, विनोद राठौड़, सुनिधि चौहान और शंकर महादेवन ने इसमें आवाज दी है। बोल संतोष आनंद, निदा फाजली, महबूब और बशीर बद्र के हैं।
पत्र-पत्रकाओं, तिरंगा महोत्सव, तिरंगा यात्रा, तिरंगा दौड़ समेत अनेक कार्यक्रमों का आयोजन कर फ्लैग फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री नवीन जिन्दल चाहते हैं कि , “आसमान का रंग तिरंगा हो, हर दिन हर हाथ में झंडा हो”। उनका कहना है कि हमें भारतीय होने पर गर्व है और हम स्वयं को देश के प्रति समर्पित करते हैं।