
आप की आवाज
संपादकीय
अक्षय तृतीया पर विशेष लेख
*रिश्तों को निभाना एक चुनोती*
दिनांक 2 मई 22 बदला हुआ नाम रानी उम्र 32 वर्ष – उच्च वर्गीय समाज की ऐसी पढ़ी लिखी लड़की जो शादी के महज 7 दिन ससुराल रही ? दहेज के चक्कर मे घर से निकाल दी गई ।उसने 3 दिन/राते रेलवे स्टेशन पर गुजारी।घर परिवार,रिश्तेदार किसी ने आसरा नही दिया । किसी भले इंसान ने उसे कुछ दिन सहारा दिया ।आज उसका 8 साल का लड़का है ।स्वयं काम करती है ।बंच्चो को ट्यूशन पढ़ाती है ।माँ के साथ रहकर किराने की दुकान में हाथ बटाती है । ऑफिस में 8 घण्टे जॉब भी करती है ।उसने आयुष्मान कार्ड, ग्रीन कार्ड ,मजदूर कार्ड आदि सभी बनवा लिए ।प्रधानमंत्री योजना अंतर्गत स्वयं का मकान भी स्वीकृत होकर निर्माणाधीन है ।
आज उसके ससुराल वाले बुला रहे है और वह किसी भी कीमत पर उनके साथ रहने को तैयार नही है ।
वह सिर्फ अपने बच्चे के लिए जीना चाहती है ।वह कहती है कि हम अपने बंच्चो को संस्कार नही दे पा रहे है ।
यदि आपका दिल एक बार किसी से टूट गया उसे जोड़ना बहुत मुश्किल/असंभव सा नजर आता है।
वर्तमान में देखता हूं परिवार और समाज प्रबंधन की परिभाषा हमने सीखने,सिखाने की जरूरत महसूस नहीं की है ?
लड़के और लड़कियों के बीच सामाजिक व्यवस्था से जुड़ाव एक ऐसी चुनोती बनकर सामने खड़ा है लड़कियां समाज का हिस्सा बनने को तैयार नही है ।
लड़कियां हर घर परिवार में है पर अपने ही समाज मे विवाह के लिए तैयार नही है ?
इसके पीछे प्रमुख कारण है मातृ शक्ति के रूप में माता एव सास के रूप में सोच,शिक्षा और व्यवहार ?
बेटियों को लगता है कि परिवार और रिश्ते बोझ है ?
ससुराल एक समस्या है ?
पुरुष और महिलाओं के बीच व्यवहार में एक बढ़ा अंतर है पुरुष पारवारिक विषयो पर कम से कम चर्चा करते है, महिलाएं दिन भर पारिवारिक विषयो को मुद्दा बनाती रहती है ।
यही कारण है समाज बन्धुओ,परिवारों के प्रति आज की लड़कियों में नकारात्मक भाव बनता जा रहा है । लडकिया दाम्पत्य जीवन मे प्रवेश करने हेतु समाज और परिवार को प्राथमिकता नहीं देती ।
उसे जीवन के वास्तविक सुख और उद्देश्य का बोध ही नही है ।
वह सिर्फ और सिर्फ स्वयं के सुख और सुरक्षा के प्रति चिंतित है ।
एक बात सभी स्वीकार करते है ?
माता अपनी संतान की हर बात जानती और समझती है ?
यदि यह सत्य है तो यह भी सत्य है कि विवाह और दो परिवारों को कैसे जोड़कर रखा जा सकता है यह सिखाने और बताने की जिम्मेदारी भी उसी की है ?
हम बंच्चो के विवाह आजकल परिपक्व उम्र में तय करते है ।परिपक्व उम्र में आते आते बच्चे स्वयं अपने आपको ऐसा ढाल लेते है कि उन्हें बदली हुई हर परिस्थिति में अपने आपको बदल पाना असंभव सा महसूस होता है ,घर परिवार,माता की सीख और दैनिक व्यवहार से जीवन संघर्षमय बनकर बोझ नजर आने लगता है ।
दैहिक और मानसिक सुख का आधार 90 प्रतिशत स्वयं की सोच पर निर्भर करता है ।
आप कितने भी डॉक्टर के बीच भटकते रहे हल निकालना मुश्किल है ।
यदि हम एक सफल दाम्पत्य जीवन की शुरुआत करना चाहते है तो उसे समझना बहुत जरूरी है ।
जैसे
(1) दैहिक रिश्ते की आवश्यकता और उसका दैनिक जीवन पर प्रभाव
(2) एक दूसरे की सोच और समपर्ण का भाव
(3) समय और सही उम्र में बंच्चो का होना
(4) दोनो के मध्य किसी अन्य का प्रवेश या दखल न हो ।
आपकी समीक्षा /विचार आमंत्रित है ।