आखिर क्या कारण की….? बीमार पत्नी को गोद में उठाकर अस्पताल ले गया पति…?

जिले के सुदूर आदिवासी अंचल में बारिश के बाद सड़कें बनी दलदल, एंबुलेंस और स्वास्थ्य सुविधा दूर-दूर तक नदारद….

रायगढ़। बारिश थम चुकी थी, लेकिन दलदल अब भी गाँव को अपनी गिरफ्त में लिए हुए था। धरमजयगढ़ के कंड राजा से पंडरा पाट जाने वाला रास्ता – नाम तो सड़क है, मगर हालत ऐसी कि पैरों से कदम निकालना भी मुश्किल। इसी कीचड़ भरे और टूटे-फूटे रास्ते पर, ग्राम पंचायत विजयनगर के ग्राम कंडरजा मोहला पटना पारा में, एक पति अपनी बीमार पत्नी को गोद में उठाए अस्पताल की ओर बढ़ रहा था।

मरीज का नाम तुलसी बाई राठिया, पति लक्ष्मण राम राठिया – जिनकी मजबूरी उन्हें बारिश और कीचड़ से जूझते हुए, हाथों में पत्नी को उठाकर पैदल कापू अस्पताल तक ले जाने पर मजबूर कर रही थी। यह नज़ारा किसी फिल्मी कहानी का नहीं, बल्कि उस रायगढ़ जिले के सुदूर अंचल के एक गाँव की सच्ची तस्वीर है , जहाँ आज भी लोग लगभग पाषाण युग जैसी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैँ ।

क्या ही विकास –… या जमीनी हकीकत कुछ और…?
रायगढ़ जिले के सुदूर आदिवासी अंचल में यह घटना सिर्फ एक परिवार की परेशानी नहीं, बल्कि उन हजारों ग्रामीणों की कहानी है, जो हर साल बारिश में ऐसे ही संकट से गुजरते हैं। यहाँ न सड़क की सही व्यवस्था, न एंबुलेंस की पहुँच, न प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक जाने का आसान रास्ता, जब भी कोई बीमार पड़ता है, तो उसे ऐसे कीचड़ भरे रास्तों में खटिया, साइकिल या गोद में उठाकर कई किलोमीटर ले जाना पड़ता है।
विकास के दावे और हकीकत के दलदल में फंसी जिंदगी – भाषणों में कहा जाता है – “आदिवासी क्षेत्रों में विकास की गंगा बह रही है”, “अंतिम व्यक्ति तक सुविधा पहुँचाना हमारी प्राथमिकता है”।
लेकिन कंडरजा, मोहल्ला पटना पारा जैसी जगहों पर यह गंगा नज़र नहीं आती। यहाँ विकास की कोई लहर नहीं, बस कीचड़ और लापरवाही की बदबू है।यह केवल एक गाँव की कहानी नहीं है। ऐसे सैकड़ों गाँव रायगढ़ जिले में हैं, जहाँ बारिश के दिनों में सड़कें दलदल में बदल जाती हैं, बीमार को अस्पताल तक ले जाना जान जोखिम में डालने जैसा हो जाता है, और विकास का सपना सिर्फ़ पोस्टरों में जीवित है।

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