ऑटिज्म के बच्चों का हो रहा बेहतर जतन, समय रहते करें ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान, स्पीच थैरेपी से बच्चों के जीवन में आ रहा आश्यर्यजनक परिवर्तन : महेश्वरी गुप्ता

रायगढ़ 06 फरवरी 2021, अमन 2 साल का होने के बाद ठीक से बोल नहीं पा रहा था। वह आवाजों पर ध्यान नहीं दे रहा था। उसके साथ के सारे बच्चे पूरा-पूरा वाक्य बोल रहे थे। अमन की मां हीरा साव पत्रकार होने के नाते ऑटिज्म और इसकी थैरेपी के बारे में जानती थी। उन्होंने थोड़ा सा भी देर नहीं किया और जिला पंचायत के सामने संचालित होने वाले जिला दिव्यांग पुर्नवास केंद्र यानी जतन में अपने बच्चे को लेकर आई। एक महीने बाद अब वह प्रतिक्रियाएं देने लगा है। हाथ मिलाता है, शब्दों का उच्चारण करता है। हीरा बताती हैं,“स्पीच और सेंसरी थैरेपी व विशेष शिक्षा के थैरेपी से आदित्य ने धीरे-धीरे बोलना शुरू किया है और परिणाम बेहतर मिल रहे हैं। प्राइवेट में जहां इस इलाज के हजारों-लाखों लग जाते हैं वहीं जतन केंद्र में हमारे बच्चे ने निशुल्क इलाज पाया है। इसलिए मेरा सभी से आग्रह है कि बच्चों में ऑटिज्म के लक्षणों की पहचान समय से करें। ऑटिज्म बीमारी से प्रभावित, दिव्यांग बच्चों की आधुनिक मशीनों से जाँच कर बेहतर उपचार जतन केन्द्र में किया जा रहा है।“

जतन केन्द्र की विशेष शिक्षक महेश्वरी गुप्ता ने बताया: “ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों का जल्द से जल्द संभव हो तो विशेषज्ञों की देख-रेख में थैरेपी व ट्रेनिंग शुरू करा देनी चाहिए। जिसके बाद ऐसे बच्चे अधिक सहज जीवन व्यतीत करने में सक्षम होते हैं। हमारे केन्द्र में ऐसे बच्चों की ट्रेनिंग व थैरेपी कुशल स्टॉफ द्वारा वृहद स्तर पर की जा रही है। बड़ी संख्या में पालक अपने बच्चों को लाकर उपचार करा रहे हैं एवं उपचार से संतुष्ट हैं। जो बच्चे आपकी लाख कोशिशों के बावजूद बोल नहीं पाते उनकी स्पीच थैरेपी व कम सुनने वाले बच्चों की की जाँच आधुनिक कम्प्यूटर मशीन से करके उसके हिसाब से उन्हें मशीन दी जाती है। इन सभी उपचारों से बच्चे अपना जीवन बेहतर तरीके से जीने में सक्षम होते हैं एवं दैनिक कार्य अच्छे से कर पाते हैं।“

कोरोना संक्रमण काल का बाल मन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सेलफोन को लगातार देखने के कारण बच्चों में व्यवहारिकता की कमी और उनकी शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है। फलस्वरूप बच्चा अपने में ही रहने लगता है कई मामलों में वह ऑनलाइन खेलों की भाषा बोलने लग जाते हैं तो कई मामलों में बच्चे चुप रह जाते हैं। लॉकडाउन के अलावा बचपन में ही विभिन्न प्रकार के विकार वाले बच्चों को जतन केंद्र में प्रशिक्षित किया जा रहा है वह भी मुफ्त। इससे जिले की एक बड़ी आबादी को राहत मिली है और कई बच्चों के बचपन की दिशा ही बदल गई है।

1.5 साल की मिष्टी बीते तीन महीने से यहां आ रही है। उसके अंदर आए परिवर्तनों पर मां लक्ष्मी सिदार कहती हैं: “डेढ़ साल की होने के बाद भी मिष्टी नहीं चल पा रही थी, उसे सीधे खड़े में होने में तकलीफ हो रही थी। हम यहां तीन महीने से आ रहे हैं। परिणाम आपके सामने हैं अब ठीक से खड़े भी हो रही है और कुछ कदम आगे बढ़ा रही है। मैं आशान्वित हूं जल्द ही मेरी बेटी दौड़-दौड़कर खेलने लगेगी।“

ऑटिज्म के लक्षण
यदि आपका बच्चा 3 माह की उम्र में तेज आवाज पर ध्यान नहीं देता। 9 माह का हो जाने पर नाम से बुलाने पर नहीं सुनता। एक वर्ष का हो जाने पर पापा, मामा, दादा जैसे शब्द नहीं बोल पाता। डेढ़ वर्ष की उम्र तक बोलना शुरू नहीं करता, दो वर्ष की आयु तक छोटे-छोटे वाक्य नहीं बना पाता, तीन वर्ष की उम्र तक अच्छी तरह बातचीत नहीं कर पाता। कुछ-कुछ बड़बड़ाता रहता अपने आप में मगन रहता है। आपसे बात नहीं करता, आपकी आंख से आंख नहीं मिलता, अपनी सुरक्षा से लापरवाह रहता है। आग, पानी, ऊंचाई से गिरना, गाडिय़ों के सामने आने से अपना बचाव नहीं करता, असमान्य व्यवहार करता है तो यह सब बच्चे में ऑटिज्म नामक बीमारी के लक्षण है। कई मामलों में यह विकार बच्चों के जन्म के समय हुई असावधानी के कारण होता है। बच्चों के मुंह, कान में गर्भाशय का पानी भर जाता है जो बच्चे के दिमाग में पहुंचकर विकार उत्पन्न कर देता है।

विभिन्न तरीके से बोलना सिखाना प्राथमिकता : ऑडियोलॉजिस्ट हेमलता
जतन केंद्र की ऑडियोलॉजिस्ट हेमलता साहू बताती हैं: “ सेरेबल पैलेसी, देर से बोलने वाले, जल्दी सामाजिक नहीं होने वाली जैसी कई विषंगतियों के बच्चों की देखभाल और उन्हें बोलना, चलना और बेहतर करना हमारी जिम्मेदारी है। स्पीच थैरेपी का अर्थ है बच्चों को विभिन्न तरीकों से बोलना सीखना होता है। जिसमें आंख से आंख मिलाना, उच्चारण, स्पर्श और ध्यान देना पहले सिखाया जाता है। इसके बाद विभिन्न प्रकार की ध्वनि से बच्चों को रूबरू कराया जाता है। शब्दों का उच्चारण फिर सामान्य वाक्य और उसके बाद जटिल वाक्यों को बोलना सिखाया जाता है।“

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