इस रक्षाबंधन कलाई पर बंधेगी ताड़ के पत्तों की रक्षा डोर, बांस के गहनों से श्रृंगार करेंगी बहनें

छत्तीसगढ़ में इस रक्षा बंधन भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र पूरी तरह से प्राकृतिक होगा। बांस और ताड़ के पत्तों से बनी राखियां उन्हें बांधी जाएंगी। वहीं बहनें भी बांस के गहनों का श्रृंगार करेंगी। इसके लिए बीजापुर के महिला समूह ने अब तक 800 राखियां बना ली हैं। खास बात यह है कि जिला प्रशासन इन राखी व गहनों को बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध करवाएगा। हालांकि अभी तक इनके दाम तय नहीं किए गए हैं।

बीजापुर जिले के भैरमगढ़ ब्लॉक के नक्सल प्रभावित कर्रेमरका व बेलचर गांव की स्व सहायता समूह की महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए बांस व ताड़ के पत्तों की राखी व गहनें बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। कर्रेमरका की हिंगलाजिन स्व सहायता समूह की अध्यक्ष रामशीला यादव ने बताया कि डिजाइनरों ने हमें बांस व ताड़ के पत्तों से राखी बनाना, फिर इस पर रंगीन मोतियों , रेशम के धागे से सजाने की बारीकियां बताई गई। साथ ही गहनें बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया।

राखियों को बेचने प्रशासन दिलाएगा बाजार

बांस व ताड़ से बनी राखियों और गहनों को बेचने के लिए बीजापुर जिला प्रशासन द्वारा इन्हें बाजार भी दिलाया जाएगा। कलेक्टर रितेश कुमार अग्रवाल ने बताया कि बीजापुर के बिहान मार्ट में राखियों का विक्रय किया जाएगा। राखियों को बाजार में बेचने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा होलसेल व्यवसायियों को भी उपलब्ध कराया जाएगा। इन राखियों व गहनों को लोग ऑनलाइन माध्यम से भी खरीद सकते हैं। जिला प्रशासन ने राखियों के ऑर्डर के लिए मोबाइल नम्बर भी जारी किया है।

झोड़ियाबाड़म के दिव्यांग ने की थी शुरुआत
दक्षिण बस्तर में छिंद के पत्तों की राखियां बनाने की शुरुआत साल 2020 में दंतेवाड़ा जिले के झोड़ियाबाड़म के दिव्यांग युवक अनिल ने की थी। आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से अनिल राखियों को सजाने के लिए सामान नहीं जुटा पा रहा था। जब कलेक्टर दीपक सोनी को अनिल की राखियों के बारे में पता चला तो उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से तुरंत इसे सामान उपलब्ध करवाए। साथ ही अनिल ने समूह की महिलाओं को भी राखियां बनाने का प्रशिक्षण दिया। छिंद के पत्तों की बनाई राखियां लोगों को इतनी पसंद आई कि कई बड़े शहरों से राखियों के ऑर्डर मिलने शुरू हो गए थे।

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