
औद्योगिक प्रदूषण:टीबी मुक्त करने चल रहा अभियान जिले में तीन साल से बढ़ रहे हैं मरीज
केंद्र सरकार 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने की तैयारी कर रहा है, लेकिन जिले में टीबी के मामले बढ़ते जा रहे हैं। शहर में औद्योगिक प्रदूषण के साथ ही सड़कों से उठती धूल के कारण टीबी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की पहल के बाद अब जिले में संवेदनशील इलाकों में डोर टू डोर सर्वे कराया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों के साथ ही निजी चिकित्सालयों में टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने जिले में निक्षय मित्र बना दिए हैं। समाजसेवी संगठनों को इस अभियान से जोड़ा जाना है, हालांकि जिले में इसकी शुरुआत हो गई है, लेकिन टीबी खत्म करने के लिए प्रदूषण रोकने के उपाय फिलहाल नहीं किए जा रहे हैं।
साल दर साल बढ़ रही है टीबी मरीजों की संख्या
2020 में जिले में ट्यूबरकुलोसिस यानि टीबी के मरीजों की संख्या 1720 थी । 2021 में मरीज बढ़कर 1800 होगी। एक तरफ टीबीमुक्त भारत बनाने की तैयारी चल रही है, वहीं 2022 में मरीजों की संख्या 2000 के पास पहुंच चुकी है। ये वो मरीज हैं, जो सरकारी अस्पतालों में दर्ज हैं। ऐसे कई मरीज हैं, जो निजी तौर पर इलाज करा रहे हैं। अफसर कहते हैं कि ज्यादातर टीबी मरीज ग्रामीण इलाके और कमजोर आय वर्ग वाले लोग होते हैं इसलिए ये सरकारी अस्पताल में ही इलाज कराते हैं।
पोषक खाद्य पदार्थों की किट देंगे गोद लेने वाले
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के सुरेश गुप्ता बताते हैं कि निक्षय मित्र योजना के तहत सीएसआर के तहत टीबी प्रभावित इलाकों को कंपनियों को गोद दिया जाना है। रायगढ़, घरघोड़ा और तमनार ब्लाक गोद दिए जा चुके हैं, जहां टीबी के लिहाज से संवेदनशील इलाकों में घर-घर सर्वे कर रहे हैं। शायद इसलिए भी मरीजों की संख्या ज्यादा मिल रही है। टीबी मरीजों के लिए खाद्य सामग्री की किट गोद लेने वाली एजेंसियां देंगी। टीबी मरीजों के संपर्क में आने वालों को बचाव के लिए दवा दी जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में 13 लाख तपेदिक रोगी हैं।
जिले के लिए यह क्यों है महत्वपूर्ण
शहर के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशयन बताते हैं, औद्योगिक प्रदूषण, ग्रामीण इलाकों में इधर-उधर फ्लाइएश डिस्पोजल, खराब सड़कों के कारण जिले में टीबी के मरीज बढ़े हैं। बड़ी संख्या ऐसे टीबी पीड़ितों की है जिन्हें बीमारी का पता भी नहीं है। जिले में सिलिकोसिस के बचाव और मरीजों के लिए काम करने वाले राजेश गुप्ता बताते हैं कि जिले में क्रशर, खदानों में काम करने वाले मजदूरों में सिलिकोसिस के मरीज भी मिल रहे हैं। चिरईपानी माइंस में काम करने वाले दो मजदूर हाल ही में सिलिकोसिस पीड़ित पाए गए हैं। सिलिकोसिस रेतकण, पत्थर की धूल के फेफड़ों तक पहुंचे से होती है। टीबी जैसी इस बीमारी का इलाज नहीं है।
16-21 दिसंबर तक करेंगे इलाज
“अस्पताल में बेहतर इलाज और देखभाल की जा रही है। दवा का पर्याप्त स्टाक है। दवा दी जा रही है। सर्वे में जो मरीज मिल रहे हैं उन्हें भर्ती किया जा रहा है। विभाग 1 से 15 दिसंबर तक सर्वे कर रहा है। 16 से 21 दिसंबर तक घर जाकर मरीजों की जांच की जाएगी। अभी बलगम की जांच करेंगे। रिपोर्ट आने के बाद पता चलेगा कि टीबी है या नहीं।”