
*आप की आवाज*
*शुभ श्रावण मास में विशेष*
सावन माह की कामिका एकादशी का व्रत आज यानी 21 जुलाई को हैं। ये चातुर्मास की पहली एकादशी को मानी जाती है, इस दौरान श्रीहरि विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा में रहते हैं। मान्यता है कि चतुर्मास की एकादशी पर विष्णु भगवान की पूजा करने से बड़े से बड़ा संकट टल जाता है और सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
पद्म_पुराण से…
*कामिका एकादशी की कथा*
युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द ! वासुदेव ! आपको मेरा नमस्कार है ! श्रावण के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ? कृपया उसका वर्णन कीजिये ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! सुनो, मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था ।
नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन् ! हे कमलासन ! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रावण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके कौन से देवता हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो ! यह सब बताइये ।
ब्रह्माजी ने कहा: नारद ! सुनो, मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ । श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है। उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान् का पूजन करना चाहिए ।
भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान् श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है ।
जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं ।
जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करने वाले को मिलता है । जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान् श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है ।
अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए । जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है । अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करने वालों को मिलता है ।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करने वाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है ।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं । जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है ।
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी,
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी ।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता,
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम: ॥
‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है ।’
जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते । एकादशी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं । घी अथवा तिल के तेल से भगवान् के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है ।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है । ‘कामिका’ सब पातकों को हरने वाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करने वाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है ।
*पूजा-विधि*
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करना चाहिये। भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजनादि ग्रहण करें। इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं।
*महत्व*
कामिका एकादशी उत्तम फलों को प्रदान करने वाली होती है। इस एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन तीर्थ स्थलों में विशिष स्नान दान करने की प्रथा भी रही है इस एकादशी का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान होता है। इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्री विष्णु को भोग लगाना चाहिये। आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती करनी चाहिये।
कामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते है। व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है। इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है, कि जो मनुष्य़ सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है। लालमणी मोती, दूर्वा आदि से पूजा होने के बाद भी भगवान श्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है। जो व्यक्ति तुलसी पत्र से श्री केशव का पूजन करता है। उसके जन्म भर का पाप नष्ट होते है।
इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने समान फल प्राप्त होते है। कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी श्री विष्णु जी की पूजा होती है। जो मनुष्य इस एकादशी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णुजी की पूजा करता है उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
*मान्यता है की कामिका एकादशी के शुभ अवसर पे धर्म कार्य में दान-पुण्य का कार्य करने से हर प्रकार के पापों और कष्टों से मुक्ति मिलती हैं। साथ में अपने पितरों ( पूर्वजों ) का आशीर्वाद भी प्राप्त होता हैं।
अतः इस तिथि का लाभ उठाएं।*