
क्या सुसाइड है जीवन से हार? हर 40 सेकंड में जान दे रहा एक शख्स
प्रायोजित हो सकती हैं आत्महत्याएं
लेकिन दुनिया में लोग आत्महत्याएं सिर्फ इसी वजह से नहीं करते. आत्महत्या का इस्तेमाल राजनैतिक और आतंकवाद के हथियार के रूप में भी होता है. यानी आत्महत्याएं प्रायोजित भी हो सकती हैं. उदाहरण के लिए अफगानिस्तान के नए सुप्रीम लीडर हिबतुल्ला अखुंदजादा का बेटा अब्दुर रहमान एक सुसाइड बॉम्बर था, जो वर्ष 2017 में अफगानिस्तान के हेलमंड प्रांत में एक सैन्य ठिकाने पर आत्मघाती हमला करके मारा गया था. हिबतुल्ला अखुंदजादा ने अपने बेटे को एक सुसाइड बॉम्बर बनाया और जेहाद के नाम पर हुई उसकी मौत के बहाने खुद को एक मजबूत नेता साबित कर दिया.
9/11 अटैक को पूरे होंगे 20 साल
वर्ष 1981 से लेकर 2015 के बीच दुनिया के 40 देशों में 4 हजार 814 सुसाइड अटैक्स हुए, जिनमें 45 हजार लोग मारे गए. कल यानी 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए 9/11 हमले के 20 वर्ष पूरे हो जाएंगे. ये भी एक आत्मघाती हमला था. इस अटैक में शामिल 19 आतंकवादी तो मारे ही गए, लेकिन इसमें 3 हजार आम लोगों की भी जान चली गई थी. अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी ने इसी साल एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक 9/11 के हमले के बाद अमेरिका के 30 हजार से ज्यादा सैनिकों और पूर्व सैनिकों ने आत्महत्या कर ली थी. इसी रिपोर्ट में लिखा है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान युद्ध लड़ते हुए अमेरिका के 7 हजार सैनिक मारे गए, जबकि आत्महत्या से मरने वाले सैनिकों की संख्या इससे 4 गुना ज्यादा थी.
धर्म के नाम पर होती हैं आत्महत्या
कुल मिलाकर आत्महत्या सिर्फ वो लोग नहीं करते जो जीवन से परेशान होते हैं, बल्कि वो लोग भी आत्महत्या करते हैं जिन्हें धर्म के नाम पर भड़का दिया जाता है. ऐसे लोगों को ये विश्वास दिलाया जाता है कि लोगों के बीच जाकर खुद को बम से उड़ाने पर इन्हें जन्नत नसीब होगी. लेकिन आत्मघाती हमले आज की दुनिया की खोज नहीं है. पहली शताब्दी में इजरायल के सिकारी समुदाय के सदस्य रोम से आए हमलावरों को हराने के लिए अक्सर आत्मघाती हमले किया करते थे. इस्लाम की स्थापना के कई वर्षों बाद तक शिया मुसलमानों का एक समूह इसी तरह के आत्मघाती हमले किया करता था, ये सिलसिला करीब 300 वर्षों तक चला.
दुनिया में सबसे पहली आत्महत्या
कई बार लोग देश की खातिर अपनी जान देते हैं, कई बार लोग युद्ध में लड़ते हुए जान देते हैं. लेकिन इसे आप आत्महत्या नहीं कह सकते, क्योंकि इसका उद्देश्य आम लोगों को डराना नहीं होता, मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि आतंकवादी, आत्मघाती हमला आम लोगों के मन में डर पैदा करने के लिए और उन्हें ये बताने के लिए करते हैं कि वो अपने देश में कहीं भी सुरक्षित नहीं है. दुनिया में पहली आत्महत्या कब हुई थी, इसका तो कोई सबूत किसी के पास नहीं है. लेकिन जर्मनी के बर्लिन म्यूजियम में दुनिया का पहला सुसाइड नोट मौजूद है. ये सुसाइड नोट 3900 वर्ष पहले मिस्र (Egypt) के एक व्यक्ति ने लिखा था, जिसे शीर्षक दिया गया है. जीवन से थक चुके एक व्यक्ति का आत्मा से संघर्ष.
ज्वालामुखी में कूदकर दी थी जान
कहा जाता है कि 2400 वर्ष पहले ग्रीस के व्यक्ति ने एक ज्वालामुखी में कूदकर अपनी जान दे दी थी. इसे लगता था कि आत्महत्या उसके जीवन को रूपांतरित कर देगी. 2600 वर्ष पहले जब फ्रांस पर ग्रीस का शासन था तब वहां के मासिलिया शहर में लोगों को आत्महत्या करने का अधिकार हासिल था. लेकिन आत्महत्या करने वालों को ये लिखकर देना होता था कि वो आत्महत्या क्यों करना चाहते हैं. कारणों से संतुष्ट हो जाने पर आत्महत्या की इजाजत दे दी जाती थी. जीवन से हार जाने के डर की वजह से आत्महत्या करने और दुश्मन से हार जाने के डर की वजह से आत्महत्या करने में फर्क है. सैंकड़ों वर्ष पहले लोग दुश्मन से अपने देश, अपने राज्य और अपने सुमदाय को बचाने के लिए सुसाइड अटैक किया करते थे.
डराने के लिए किए जाने सुसाइड अटैक
1780 में तमिलनाडु के शिवगंगा साम्राज्य की महारानी वेलु नचियार का युद्ध ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों से हुआ. इस युद्ध में अंग्रेजी सैनिकों को हराने के लिए वेलु नचियार की एक सैन्य कमांडर कुयली ने अपने शरीर पर घी लगाया, फिर खुद को आग लगा ली और वो अंग्रेजी सैनिकों की टुकड़ी पर कूद पड़ीं. कुयली की इस वीरता की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन समय के साथ सुसाइड अटैक्स का इस्तेमाल दूसरों को डराने के लिए किया जाने लगा. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब जापान हारने लगा तो जापान की वायुसेना ने एक सुसाइड पायलट का एक विशेष समूह बनाया, जिसे नाम दिया गया था Kamikaze. इसमें शामिल पायलट दुश्मन पर हमला करके वापस आने की बजाय अपने विमानों को दुश्मन के युद्ध पोतों से टकरा देते थे. इससे दुश्मन को बहुत ज्यादा नुकसान होता था. Kamikaze के 3800 पायलट ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान सुसाइड अटैक में हिस्सा लिया था और दुश्मनों के 7 हजार से ज्यादा नौसेनिकों को मार दिया था.
बुद्धिस्ट मोंक ने किया था आत्मदाह
लेकिन समय के साथ सुसाइड राजनीति और अपनी बात मनवाने का भी हथियार बन गया. 1963 में वियतनाम की राजधानी सैगोन में एक बुद्धिस्ट मोंक (Buddhist Monk) ने आत्महदाह कर लिया था. वियतनाम की 70 से 90 प्रतिशत आबादी बौद्ध धर्म को मानने वाली है. लेकिन 1963 में वियतनाम के तत्कालीन राष्ट्रपति ईसाई थे और वो अपने देश में रहने वाले बौद्धों का दमन कर रहे थे. इसी के विरोध में इस बौद्ध भिक्षु ने खुद को आग लगा ली थी. इसे आज भी दुनिया की सबसे चर्चित और भावुक तस्वीरों में से एक माना जाता है. तब अमेरिका के तत्कालानी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी (John F. Kennedy) ने कहा था कि दुनिया में अब तक किसी तस्वीर ने इतने लोगों का ध्यान अपनी तरफ नहीं खिंचा, जितना इस एक तस्वीर ने खिंचा है. इस घटना के बाद अपने राष्ट्रपति के विरोध में वियतनाम में सैंकड़ों बौद्ध भिक्षुओं ने भी ऐसे ही आत्मदाह कर लिया था. बाद में अमेरिकी सेना की मदद से वियतनाम के राष्ट्रपति का तख्ता पलट कर दिया गया और उनकी हत्या कर दी गई.
राजनीति का हथियार रही है आत्महत्या
वर्ष 1991 में LTTE के आतंकवादियों ने एक सुसाइड अटैक में ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की हत्या कर दी थी. इसे आजाद भारत का पहला सुसाइड अटैक भी कहा जाता है. LTTE के आतंकवादी श्रीलंका में भारत की शांति सेना का विरोध कर रहे थे. लेकिन भारत में आत्महत्या लंबे समय से राजनीति का हथियार रही है और राजनीति में तो कई बार सिर्फ आत्महत्या की धमकी से ही काम चल जाता है. महात्मा गांधी ने आमरण अनशन को कई बार अंग्रेजों को झुकाने का हथियार बनाया. 1932 में गांधी जी पुणे की जेल में ही आमरण अनशन पर बैठ गए. वो अंग्रेजों के उस नए कानून का विरोध कर रहे थे जिसके मुताबिक दलितों को 70 वर्षों तक चुनाव में अपने खुद के प्रतिनिधि चुनने का अधिकार दिया गया था. इसके बाद डॉक्टर भीम राव अंबेडकर पुणे जेल गए और गांधी जी को अनशन तोड़ने के लिए मनाया. हालांकि बाद में डॉक्टर अंबेडकर ने गांधी जी के इस आमरण अनशन वाले तरीके की आलोचना की थी. वो नहीं चाहते थे कि गांधी जी की मृत्यु के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए.
भारत में पहला आत्मदाह किसने किया?
20वीं सदी में भारत में राजनीतिक कारणों से पहला आत्मदाह तमिलनाडु में किया गया गया था. जब 25 जनवरी 1964 को थिरूची जिले के एक किसान ने हिंदी के विरोध में आत्मदाह कर लिया था. 25 वर्ष के इस किसान का नाम अरुमु-गम चिन्नास्वामी था. दरअसल 1950 के दशक से ही तत्कालीन भारत सरकार हिंदी को भारत की औपचारिक भाषा बनाना चाहती थी. लेकिन दक्षिण भारत के लोग इसके विरोध में थे. उनके आत्मदाह के बाद हिंदी के इस विरोध ने आग पकड़ ली और एक साल में कम से कम 5 लोगों ने हिंदी भाषा का विरोध करते हुए खुद को ऐसे ही आग लगा ली थी.
आरक्षण के लिए भी हुआ आत्मदाह
1990 में जब भारत में मंडल कमिशन की सिफारिशों को लागू किया गया और इसके जरिए अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया तो पूरे भारत में इसका विरोध शुरू हो गया. इसी विरोध के बीच 19 सितंबर 1990 को दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक 19 साल के छात्र राजीव गोस्वामी ने खुद को आग लगा ली. हालांकि राजीव गोस्वामी की जान तो बच गई, लेकिन इस घटना के बाद करीब 200 छात्रों ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह की कोशिश की और इनमें से 62 की मौत भी हो गई.
हर 40 सेकंड में कोई कर रहा सुसाइड
इसी तरह से सती प्रथा और जौहर प्रथा को भी आत्महत्या का एक रूप मान सकते हैं. सती प्रथा एक बुराई थी और जौहर उस स्थिति में किया जाता था जब कोई दुश्मन किसी राज्य पर आक्रमण कर देता था. तब उस राज्य की महिलाएं दुश्मनों के कब्जें में आने से अच्छा आग में कूद जाना बेहतर समझती थीं. जौहर और सति प्रथा के जमाने तो चले गए, लेकिन अब भी आत्महत्या करने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. वर्ष 2019 में भारत में 1 लाख 39 हजार लोगों ने आत्महत्या की थी. इनमें से 67 प्रतिशत लोग 18 से 45 वर्ष के बीच थे. यानी युवा थे. पूरी दुनिया में हर साल 7 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं. यानी दुनिया में हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति जीवन से परेशान होकर अपनी जान दे देता है.
रिश्तों के कारण हो रहे 38% सुसाइड
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक, भारत में होने वाली कुल आत्महत्याओं में 38 प्रतिशत रिश्तों की वजह से हो रही हैं. ये वो रिश्ते हैं जिनका आधार प्रेम है. यानी जीवन देने वाला प्रेम अब रिश्तों में जहर घोलने लगा है. NCRB के आंकड़ो के मुताबिक, आत्महत्या करने वाले 29.2 प्रतिशत लोगों ने पारिवारिक समस्याओं की वजह से अपनी जान दी, जबकि आत्महत्या करने वाले 5.3 प्रतिशत लोग अपने शादी शुदा जीवन से खुश नहीं थे. प्रेम संबंधों के कारण आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या 3.5 प्रतिशत है. भारत में हर साल कुल जितने लोग आत्महत्याएं करते हैं उनमें से 70 प्रतिशत पुरुष और 30 प्रतिशत महिलाएं होती हैं. पुरुषों में बढ़ती आत्महत्या की पृवत्ति के लिए ज्यादातर पारिवारिक दबाव जिम्मेदार हैं.