चिंताजनक: रोजगार, आवास, कृषि…जैसे बुनियादी लक्ष्य 50 फीसदी भी पूरे नहीं, सतत विकास लक्ष्य हासिल करने में पिछड़ा भारत

संयुक्त राष्ट्र के 192 सदस्य देशों द्वारा सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने का एजेंडा 2030 अपनाने के बाद भारत इस सूची में पिछले साल के मुकाबले तीन पायदान फिसलकर 120वें स्थान पर पहुंच गया। पिछले साल भारत 117वें स्थान पर था। संयुक्त राष्ट्र ने 2015 में इस प्रस्ताव को अपनाया था, जिसकी ताजा रैंकिंग के मुताबिक भारत पड़ोसी पाकिस्तान (129वीं रैंक) को छोड़कर अपने सभी पड़ोसी देशों से पीछे है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल करने के मामले में भारत सभी दक्षिण एशियाई देशों से पीछे है। इस सूची में भूटान 75वें, श्रीलंका 87वें, नेपाल 96वें और बांग्लादेश 109वें पायदान पर है। भारत का कुल सतत विकास लक्ष्य का अंक 100 में से 66 है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव द्वारा मंगलवार को जारी भारत की पर्यावरण रिपोर्ट 2022 के अनुसार, देश की रैंकिंग में गिरावट की वजह मुख्य रूप से भूख, अच्छे स्वास्थ्य, खुशहाली, लैंगिक समानता की चुनौतियां हैं।

एसडीजी के तहत सरकार द्वारा तय 17 लक्ष्य 2022 की डेडलाइन से पहले हासिल करने में भारत चूक सकता है। रोजगार, आवास, पेयजल, कृषि, पर्यावरण जैसी बुनियादी जरूरतों पर बनाए कुछ लक्ष्यों में 50 प्रतिशत काम भी नहीं हुआ। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट (सीएसई) की नई सालाना रिपोर्ट में यह दावा किया गया।

सीएसई की डाउन टू अर्थ पत्रिका के संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि यह लक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हैं और देश की प्रगति दर्शाते हैं। उन्हाेंने लक्ष्यों से दूर रहने की प्रमुख वजह सरकारी प्रशासन में मौजूद कमियों और नीतियों के अनुपालन से जुड़ी खामियों को बताया।

बेहतर जिंदगी के मुद्दों पर भारत का खराब प्रदर्शन
रिपोर्ट के मुताबिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर जिंदगी के मुद्दों पर भी भारत का खराब प्रदर्शन रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल भारत भूख को समाप्त करने, खाद्य सुरक्षा हासिल करने, लैंगिक समानता, लचीला बुनियादी ढांचा, समावेशी और टिकाऊ औद्योगीकरण का लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रहा। सतत विकास का एजेंडा 2030 को संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने धरती पर शांति और समृद्धि कायम करने के लिए 2015 में अपनाया था। वैश्विक भागीदारी के जरिये इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए सतत विकास के 17 लक्ष्य तय किए गए हैं।

केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ अव्वल
इस लक्ष्य को हासिल करने की तैयारियों के मामले में केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ पहले स्थान पर है। दिल्ली, लक्षद्वीप और पुड्डुचेरी दूसरे स्थान पर हैं, वहीं अंडमान निकोबार तीसरे स्थान पर है।

प्रमुख क्षेत्रों की मौजूूदा स्थिति

  • अर्थव्यवस्था : इसे 2022-23 में 4 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंचाने का लक्ष्य है, लेकिन यह 2.48 लाख करोड़ तक ही बढ़ी।
  • रोजगार : श्रम शक्ति में महिलाओं को 30 प्रतिशत भागीदार बनाना था, जनवरी से मार्च 2020 की तिमाही में उनकी भागीदारी 17.3 प्रतिशत ही रही।
  • आवास : प्रधानमंत्री आवास योजना में गांवों में 2.95 करोड़ और शहरों में 1.20 करोड़ आवास बनने थे, क्रमश: 46.8 व 38 प्रतिशत लक्ष्य ही हासिल हुए।
  • वायु प्रदूषण : 121 बड़े शहरों में पीएम2.5 प्रदूषक तत्वों को 50 माइक्रॉन प्रति घनमीटर से कम रखना था। 2020 में लॉकडाउन के बावजूद 23 शहराें में यह 50 से अधिक रहा।
  • ठोस कचरा प्रबंधन : घरों से 100% ठोस कचरा प्रबंधन होना है, लेकिन 78% लक्ष्य हासिल हुआ। दिल्ली, पश्चिम बंगाल बहुत पीछे हैं।
  • वन क्षेत्र : देश के कुल क्षेत्रफल का 33.3 प्रतिशत हिस्सा वन क्षेत्र बनाने का लक्ष्य है, लेकिन यह आंकड़ा भी 22 प्रतिशत के ही निकट है।
  • पेयजल : हर नागरिक तक पाइपलाइन से पेयजल पहुंचाना है, लेकिन काम 45 फीसदी ही हुआ।
  • ऊर्जा : 175 गीगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन 2022 तक करना है, 56% लक्ष्य ही हासिल।
  • कृषि : 2022 तक खेती से आय दोगुनी करने का लक्ष्य था। प्रति परिवार यह 6,426 से बढ़कर 10,218 तो हुई, लेकिन इसमें पशुपालन और मजदूरी की कमाई शामिल है। बल्कि कुल आय में खेती की हिस्सेदारी 2013 में 48 प्रतिशत से घटकर 2019 में 37.2% रह गई।
  • जमीन के रिकॉर्ड्स का डिजिटलीकरण : कुछ राज्यों ने अच्छा काम किया, लेकिन जम्म्ू-कश्मीर, लद्दाख, सिक्कम आदि में 9 प्रतिशत से कम काम हुआ। 14 राज्यों में इन रिकॉर्ड की क्वालिटी और खराब हो गई।
राज्यों के हालात
  • राष्ट्रीय औसत से बिहार 14 और यूपी 11 लक्ष्यों में पीछे हैं। केरल, तमिलनाडु, हिमाचल बाकियों से कहीं आगे।
  • गरीबी खत्म करने में यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ व मप्र सबसे पीछे हैं।
  • मेघालय, असम, गुजरात, महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल भुखमरी और कुपोषण रोकने में पीछे हैं।
  • नागरिकों को पेयजल प्रदान कर पाने में दिल्ली, राजस्थान, असम, पंजाब और अरुणाचल प्रदेश का रिकॉर्ड सबसे खराब है।

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