चौदह वर्षों के एक एक दिन उस भोले मानुस ने उंगलियों पर गिन कर काटे थे
आप की आवाज
चौदह वर्षों के एक एक दिन उस भोले मानुस ने उंगलियों पर गिन कर काटे थे,चौदह बरसातें बीत गयी थीं, चौदह बार शीतलहर बह कर समाप्त हो गयी थी, और अब चौदहवाँ वसंत भी बीत आया था,वे चौदह वर्ष बाद लौट आने को कह गए हैं तो चौदह वर्ष बीतते ही अवश्य लौट आएंगे, उन्हें इस बात में तनिक भी संदेह नहीं था,वे तो बस टकटकी लगा कर उस राह की ओर देखते रहते, जिस राह से उनके मित्र गए थे,
भइया भरत ने प्रतिज्ञा ले ली थी कि यदि चौदह वर्ष पूरा होने के दिन तक भइया नहीं आये तो वे अग्निस्नान कर लेंगे, पर उन्होंने मित्र को ऐसे किसी बंधन में नहीं बांधा था,वे तो बस इस भरोसे में बैठे थे कि वन से अयोध्या लौटने की राह यही है, तो वापस लौटते मित्र के दर्शन हो ही जायेंगे,इन चौदह वर्षों में एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब उस व्यक्ति की आंखों से अश्रुओं की धार न बही हो,
दोपहर की बेला थी सूर्य माथे पर आ गए थे और वाटिकाओं के सारे पुष्प सूर्य की ओर मुँह किये जैसे उस अतिथि की प्रतीक्षा ही कर रहे थे, ठीक उसी समय आकाश से एक तेज ध्वनि पसरने लगी,उस शान्त देहात के लिए यह तीव्र ध्वनि आश्चर्यजनक ही थी,अचानक ही समूचे गाँव के लोग इकट्ठे हो गए और उस ध्वनि को कोई ईश्वरीय संकेत मान कर उसी ओर निहारने लगे,
ठीक उसी समय, अनायास ही सबकी आंखों से जल बहने लगा,सबके रौंगटे खड़े हो गए, सबका हृदय धड़कने लगा… भीड़ के बीच में खड़े निषादराज की दृष्टि वृक्षों के पीछे से सामने आते विमान पर पड़ी,वे आश्चर्य में डूबे उस पुष्पों से सजे अद्भुत विमान को निहारने लगे… अचानक उनके मुख से निकला- अरे! अरे! अरे ये तो हमारे प्रभु हैं,हमारे प्रभु आ गए… अयोध्या के दिन फिर गए भाइयों, हमारे प्रभु आ गए,श्रीराम आ गए, मइया आ गईं, भइया लखन आ गए…
पूरी भीड़ एक साथ विह्वल हो गयी जैसे… चौदह वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हुई थी, प्रसन्नता अश्रु बन कर सबकी आंखों से झरने लगी, रुंधे गले से चिल्ला कर निषादराज ने कहा, “सभी अयोध्या चलने की तैयारी करो, प्रभु वहीं जा रहे हैं…”
पर यह क्या? विमान तो यहीं नीचे आने लगा,ठीक भीड़ के पास… सब पीछे हट गए, विमान के शांत होते ही निषादराज उसकी ओर दौड़े, पर वहाँ पहुँचते ही ठिठक कर खड़े हो गए,मुस्कुराते प्रभु श्रीराम उनके सामने खड़े थे,भरे गले से काँपते स्वर में कहा निषाद ने,यहाँ क्यों उतर गए प्रभु? मुझे स्मरण है,भइया भरत ने अग्निस्नान कर लेने की बात कही थी,आपको तो शीघ्र वहाँ पहुँचना चाहिये,हम सब तो आपके पीछे पीछे दौड़ने जा ही रहे थे,
नहीं मित्र! तुम्हारे नगर से हो कर जा रहा हूँ, तो तुमसे मिले बिना कैसे जा सकता हूँ? इन चौदह वर्षों तक मैंने तुमसे मिलने की प्रतीक्षा की है मित्र, आवो, गले तो मिलो,
रोते निषाद को लगा जैसे कलेजा मुँह में आ जायेगा,विकल हो कर आगे बढ़े, जैसे प्रभु के चरणों में गिर जाएंगे, पर राम ने उन्हें चरणों में नहीं, हृदय की ओर खींच लिया,और लिपटे लिपटे ही चिल्ला उठे निषादराज,
जय जय श्रीराम,
एकाएक उस वनक्षेत्र में गूँज उठा- जय जय सियाराम,
जय श्रीराम🚩
सारी दुनिया का प्रेम इस तस्वीर को देख कर उमड़ रहा हैं, ईश्वर के प्रति प्रेम, भक्ति, विश्वास, जीत या प्रसन्नता की पराकाष्ठा…
क्या नाम दूँ इसे, समझ नहीं आ रहा,
शबरी सी प्रतीक्षा का अंत हुआ, और आज यह पुण्य दिन देख पाने का अवसर प्राप्त हुआ,
भगवान राम को देखकर लगता है कि जन्मों के पुण्यों का फल मिल गया तो कभी राजा रामचन्द्र को देखकर मन मे सुरक्षा की भावना प्रबल हो जाती हैं, तो कभी अयोध्या जाने को मन आतुर हो उठता हैं,दशरथ नन्दन, कौशल्या नन्दन, सीता के राम, हनुमानजी के प्रभु, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के सर्वश्रेष्ठ भ्राता अयोध्यापति सूर्यवंशी राजा राम की सदा ही जय हो,जय जयकार हो🙏