
बिना हड्डी के जीभ अगर हिल जाए तो हंसते खेलते परिवार टूट जाता है=श्री सीताराम महाराज
आप की आवाज
कार्यालय डेस्क
*तोल कर बोल*
*जीभ मनुष्य शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है।
लगभग शेष सभी इन्द्रियाँ दो हुआ करती हैं पर काम एक ही करती हैं, जैसे आँखें दो हैं, पर केवल देखती है।*
* नाक यद्यपि एक ही होती है, पर उसमें छिद्र दो हैं।
कान, हाथ, पैर भी दो दो हैं।
पर जीभ एक होते हुए भी काम दो करती है, स्वाद लेना और बोलना।*
*शेष सभी इन्द्रियाँ बाह्य परिस्थिति सापेक्ष हैं।
जो कुछ होगा, वही देखा, सूंघा या छुआ जा सकता है। आप घड़े को घड़ा, चंदन की सुगंध को चंदन की सुगंध ही जानेंगे। पर जीभ बुद्धि सापेक्ष है।*
बुद्धि अनुकूल हो तो दुर्गंधयुक्त पदार्थ भी स्वादिष्ट लगता है, और बुद्धि अनुकूल न हो तो सुस्वादु भोजन भी अरुचिकर लगने लगता है। यों जीभ सबसे विचित्र इंद्री है।
इसीलिए जीभ का उपयोग विचारपूर्वक ही करना चाहिए।
*यह बिना हड्डी की जीभ जरा हिल जाए, तो हंसते खेलते परिवार टूट जाएँ। न सम्पत्ति बंटे, न जमीन कटे, न लाठी या तलवार चलें, बस जीभ चल जाए, तो अभी सिर फूट जाएँ।*
अब कुछ साधकोपयोगी सुझाव-
अधिकतर रोगों का ईलाज औषधालय से पहले भोजनालय में खोजो।
जितना आवश्यक हो उतना ही भोजन करना है।
और जितना आवश्यक भोजन करना है, उतना ही सुबह जल पीना, व्यायाम करना और टहलना है।
महीने में दो एकादशी व्रत करो। सप्ताह में एक दिन मीठा और एक दिन नमक न खाओ।
*याद रखो कि भोजन जीवन के लिए है, स्वाद के लिए नहीं। भोजन तो भजन का साधन मात्र है।*
खड़े होकर भोजन न करो और भोजन से एक घंटा पहले या एक घंटा बाद ही जल पीओ।
दो भोजन के बीच में कम से कम पाँच घंटों का अंतराल अवश्य रखो।
हो सके तो बोलो ही मत।
बोलना ही पड़े तो तभी बोलो जब अति आवश्यक हो।
बहुत विचार करके ही बोलो।
सत्य बोलो, प्रिय बोलो, कम बोलो, हित के वचन बोलो।
किसी से काम हो तो उसे मत बुलाओ, उसके पास जाकर निवेदन करो।
कोई दोष लगाए तो मौन हो जाओ।
यदि तुम निर्दोष हो तब तो मौन रहो ही, यदि तुम्हारा दोष हो तो भी मौन रहकर दोष सुधारो।
बहुत से व्याख्यानदाताओं के बीच में व्याख्यान मत दो। जब तक विशेष तौर पर आपसे न पूछा गया हो, प्रश्न का उत्तर मत दो।
*और रामरूप दास महात्यागी का अंतिम सुझाव है कि जीभ को जितना हो सके उतना नाम जप और भगवान के गुणानुवाद में लगा कर रखो।*
* श्री सीताराम नाम महाराज की जय *