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जतन केंद्र के साथ-साथ होम आइसोलेशन का पूरा ख्याल रख रही जतन की टीम…. 17 दिनों की सतत निगरानी करने वाली टीम थकी पर हारी नहीं

18 मार्च से बिना छुट्टी के सेवा दे रही 6 लोगों की टीम

रायगढ़ 14 दिसंबर 2020: जिले में कोरोना महामारी से निपटने के लिए अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या तो बढ़ाई गई लेकिन यह भी सच है कि गहन चिकित्सा के मद्देनज़र स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या उतनी नहीं थी जो इतनी अधिक संख्या में आ रहे कोरोना वायरस मरीज़ों की देखभाल कर सकें। ऐसे में अस्पतालों ने हर उपलब्ध डॉक्टर को इसके लिए प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी। वो चाहे डेंटिस्ट रहा हो ईएनटी डॉक्टर रहा हो या फिर एनेस्थिसिय देने वाला। हर किसी को कोविड-19 से मुक़ाबले के लिए प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी गई। ऐसे ही कुछ लोग हैं जतन केंद्र रायगढ़ के जिनमें डॉ. सिद्दार्थ सिन्हा (न्यूरो-फिजियोथेरेपिस्ट), डॉ. विवेक उपाध्याय (डेंटिस्ट),डॉ. कृष्ण कमल चौधरी (होम्योपैथी), दीपक गिरी गोस्वामी (टीबी काउंसलर), अतीत राव (मेंटल हेल्थ काउंसलर), संतोष पांडेय। यहां पदस्थ कर्मी अपनी जतन केंद्र की ड्यूटी यानी 0-18 के बच्चों का इलाज करने के साथ ही कोरोना के होम आइसोलेशन के मरीजों को मॉनिटरिंग पूरी जिम्मेदारी से कर रहे हैं।

होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों की 17 दिन तक सतत निगरानी जतन केंद्र की यह टीम करती है। मरीज का ऑक्सीजन, पल्स स्तर और टेम्परेचर की निगरानी यही टीम करती है और जरूरत करने पर उन्हें रेफर करती है। वीडियो कॉल के जरिए लोगों के बाथरूम की सफाई और उनका हालचाल यही लोग पूछते हैं।होम आइसोलेशन में रह रहे मरीज को जब भी किसी दवा की जरूरत होती है या फिर कोरोना के अलावा कोई और बीमारी हो गई तो दवा एक कॉल पर यह टीम उस घर तक पहुँच जाते हैं। टेली काउंसिलिंग के जरिए मानसिक स्वास्थ्य के काउंसलर अतीत राव और संतोष पाण्डेय मरीज़ों को ढाढस बंधाते हैं कि सब कुछ बहुत जल्दी ठीक ही जायेगा। एक समय ऐसा भी आया था कि 1,000 के करीब मरीज़ रोज़ कई बार फ़ोन करते और दोनों उनसे उतनी ही विनम्रता से बात करते।

जब संक्रमित हुए तब भी किया काम
डॉ. सिद्दार्थ सिन्हा और उनके सहयोगियों ने गर्मियों के दिन के बाद से होम आइसोलेशन में ही सैकड़ों कोविड-19 मरीज़ों की देखरेख की है। उन्हें संभाला है लेकिन जैसे-जैसे यह महामारी फैलती गई, क्षमता से अधिक मरीज़ अस्पताल और सेंटर में पहुंचने लगे और कई बार कुछ मरीज़ अप्रत्याशित परिणामों के साथ आइसोलेशन से अस्पताल पहुंचते, इनकी पूरी टीम ने कई लोगों को समय रहते हॉस्पिटल रेफर किया है। ऐसा नहीं है कि इन स्वास्थ्यकर्मियों की स्थिति नहीं बिगड़ी। वक्त के साथ स्वास्थ्यकर्मियो में अब शारीरिक थकान और मानसिक तनाव बढ़ रहा है। डॉ. सिन्हा को इतने दिनों में कुछ दिन की छुट्टी तब मिली जब वो कोरोना से संक्रमित हुए। लेकिन इस दौरान वे अपने घर से अपने हिस्से का काम करते रहे।

मोटिवेशनल लेक्चर्स की भी सीमा होती है : डॉ. विवेक
डॉ. विवेक उपाध्याय कहते हैं “अब अगर कोई हमें हीरो कहता है, तो मैं अपने में ही कहता हूं, अब इसे बंद कीजिए। अब इससे कुछ हो नहीं रहा, मोटिवेशनल लेक्चर्स की भी एक सीमा होती है। मैने परमानेंट नंबर लोगों के अनावश्यक कॉल आने के कारण बंद कर दिया है। स्वस्थ होने के बाद लोग अपने किसी परिचित के बारे में हमसे अनावश्यक बातें करने लगे हैं। लोगों से अपील है कि सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही कॉल करें क्योंकि और भी जरूरतमंद लोग कतार में लगे होते हैं जिनके के लिए समय महत्वपूर्ण है”।

थके हैं पर जिम्मेदारी पूरी करनी है : दीपक गिरी
दीपक गिरी गोस्वामी कहते हैं “वे पूरी तरह से थक चुके हैं, फिर भी अपनी जिम्मेदारी मुस्तैदी से पूरा कर रहा हूं। सर्दी का मौसम आने के साथ ही मरीज़ों की संख्या भी बढ़ी है। वास्तव में महामारी ने अस्पताल को कभी नहीं छोड़ा, बाहर के लोगों को यह एहसास नहीं है। अभी जैसे लोग कोरोना के प्रति थोड़ी लापरवाही बरत रहे हैं वो सही नहीं है कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है। हम यहां रोज देख रहे हैं कि कैसे कोरोना अपना भयावह रूप दिखा रहा है। लोग ज्यादा सावधान रहें। “

जरूरी नहीं हर मरीज कोरोना पॉजिटिव हो : डॉ. सिन्हा
जिला दिव्यांग पुर्नवास केंद्र में बीते 4 साल से निशुल्क फिजियोथैपी की सलाह देने वाले डॉक्टर सिद्दार्थ कहते हैं “इन दिनों सांस की तक़लीफ़ के साथ जैसे ही कोई मरीज़ इमरजेंसी में एडमिट होता है उसे कोविड-19 का मरीज़ मान लिया जाता है जबकि हो सकता है कि वो दिल से जुड़ी किसी तक़लीफ़ से जूझ रहा हो, उसे डेंगू हो या फिर कुछ और बीमारी हो। लेकिन इन दिनों जब हर कोई को कोविड-19 होने का शक़ है, तो डॉक्टरों और नर्सों को भी सावधानी बरतनी होती है। कोरोना की जांच के लिए हर मरीज़ का स्वैब लेना, संदिग्ध मरीज़ों को एक अलग वॉर्ड में रखना और तब तक उन्हें अंदर रखना जब तक जांच का परिणाम ना आ जाए।“

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