जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी इतिहास*……पहलगाम घटना से जुड़ा…?

समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी इतिहास” महान कवि दिनकर की यह कालजयी रचना यही बताती है कि अन्याय का विरोध न करना भी अन्याय जैसा ही है। वर्तमान मे देश युद्ध से पहले गृहयुद्ध जैसी विरोधाभासी परिस्थितियों से गुज़र रहा है।
पहलगाम की घटना पर यदि आप गौर करें तो यह पाऐंगे कि तमाम सोशल मीडिया दो तरह की विचारधाराओं से भरी पड़ी है।अभिव्यक्ति की आज़ादी इस देश मे है ही, इसलिए कुछ अजीब सा भी नहीं लग रहा। पहलगाम के सैलानियों की हत्या एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा की गई और उसी धर्म के चंद लोगों ने उनकी सुरक्षा भी की। बात बस इतनी सी है लेकिन सोशल मीडिया मे निरंतर जारी सहानुभूति की लहर जो एक वर्ग विशेष पर चल रही है जिनमें राजनीतिक पार्टियों से जुड़े नेतागण भी शामिल हैं तो यह स्पष्ट तौर पर लग रहा है कि यह सब महज उन्हें कव्हर फायर देने के लिए किया जा रहा है। खबरों की यदि माने तो मृतक सैलानियों की संख्या लगभग छब्बीस थी जिन्हें उनकी जाति पूछ कर मारा गया शेष दो घोड़े वाले थे जिनकी आजीविका का साधन ही घोड़े थे इस हादसे मे मारे गये।अब वे कैसे मारे गये सैलानियों को बचाने के प्रयास मे या भगदड़ मे हुई गोलाबारी मे इस पर भी बयानबाजी चल रही है।सवाल यहां मुस्लिमपरस्ती या मुस्लिम विरोधी का नहीं है।सवाल यह है कि नर संहार मे जिन अट्ठाइस लोगों का वध हुआ पर है बात उन परिवारों की है जिसमें किसी ने अपना पति खोया किसी ने बेटा तो किसी ने पिता उन पर चर्चा करने के बजाय मीडिया और नेता अपना नेरेटिव सेट करने मे व्यस्त है। बुद्धिजीवी केन्डल मार्च कर अपने हिस्से का का गुबार या पीड़ा तो जाहिर कर ही चुके हैं। धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो जाएगा।खैर…
पहलगाम नर संहार की यदि बात करें तो कुछ चीजें स्पष्ट रुप से समझ आती हैं कि आतंकवादी बेशक सीमा पार से आऐ हों लेकिन उन्हें पल्लवित और पोषित करने का काम स्थानीय लोगों ने ही किया होगा। यह घटना अनायास ही नहीं घटी होगी।उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से बैसरन घाटी की रेकी की होगी ,कहां और कब इस वारदात को अंजाम देना है इसे तय किया होगा और इसके के बाद कैसे फरार होना है यह भी। इस पूरी प्रक्रिया मे उन्हें कम से कम पन्द्रह से कम बीस दिनों का वक्त लगा होगा।इन पन्द्रह या बीस दिन उनके रहने, खाने पीने और खुफिया जानकारी देने का काम स्थानीय लोगों से बेहतर कोई नहीं कर सकता। चूंकि एन.आई.ए.इस मामले की जांच कर रही है तो विश्वास है कि जल्द इस रहस्य से पर्दा उठ जाऐगा लेकिन सवाल यह भी है कि देश मे रह कर देशविरोधी गतिविधियों मे इनकी भूमिका पर क्या कार्यवाही होगी? पकड़े जाने पर इसी देश का एक वर्ग उनके समर्थन मे उठ खड़ा होगा।
ताज्जुब तो तब भी होता है जब संवैधानिक पद पर बैठे नेता तक युद्ध होने की स्थिति मे अपने ही देश की हार की भविष्यवाणी तक कर देते हैं। यह सोचे बगैर कि उनके ऐसे गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य सेना का मनोबल तोड़ सकते हैं।कल्पना करिए कैसे दौर से गुजर रहा है देश। *ईश्वर ना करे युद्ध जैसी स्थिति आए क्योंकि एक युद्ध देश की अर्थव्यवस्था को पांच से दस साल पीछे ढकेल देता है। युद्ध कही भी हो जीत उसी की होती है जो हथियारों का व्यापार करते हैं।आप बेशक मोदी विरोधी हों,भाजपा से नफरत करते हो या आर.एस.एस.आपकी पहली नापसंदगी हो।अपने देश से प्यार करिए। देश की सेना का सम्मान करिए जो सिर्फ हमारी सुरक्षा के खातिर सीमाओं पर मायनस 50 से प्लस 50 पर चौबीसों घंटे बगैर किसी शिकायत के तैनात है।देश और उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है इस पर विचार करिएगा।
आशा त्रिपाठी

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