राजनीति के मकड़जाल में उलझकर रह गया है जीरम का खूनी कांड…इंसाफ अभी भी दूर

रायपुर: आज से ठीक 8 साल पहले 25 मई 2013 की शाम नक्सलियों ने जीरम में खूनी खेल खेला था, जिसमें विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल और महेंद्र कर्मा जैसे दिग्गज कांग्रेस नेता सहित कुल 32 लोगों की मौत हो गई थी। बीते 8 बरस में खूब जांचें हुईं, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ। जांच को लेकर केंद्र और राज्य सरकार के बीच जारी टकराव में उन लोगों को अभी भी न्याय का इंतजार है, जिन्होंने अपनों को खोया है। ऐसे में सवाल है कि 32 जिंदगियों को खत्म करने वालों पर शिकंजा कब कसा जाएगा? आखिर जीरम किसका जुर्म है, इसके पीछे के रहस्य और राज कब बेपर्दा होंगे?

जीरम हमले की 8वीं बरसी पर सीएम भूपेश बघेल ने नक्सल हमले में शहीद हुए कांग्रेस नेताओं को श्रद्धांजलि दी। श्रद्धांजलि सभा में शामिल होने के बाद मुख्यमंत्री ने एक बार फिर जीरम हमले को राजनीतिक और आपराधिक षड़यंत्र बताया, साथ उन्होंने ये भी कहा कि बेगुनाह शहीदों को न्याय जरूर मिलेगा। वहीं रायगढ़ में पिता नंदकुमार पटेल और भाई दिनेश पटेल की समाधि पर श्रद्धांजलि देने के बाद मंत्री उमेश पटेल ने केंद्र पर जांच में अड़ंगा डालने का आरोप लगाया।

जीरम हमले को 8 साल बीत गए, लेकिन जीरम आज भी गुहार लगा रहा है इंसाफ के लिए। दरअसल कई जांच के बाद भी घटना की वास्तविकता सामने नहीं आई। राजनीति के मकड़जाल में उलझकर रह गया है जीरम का खूनी कांड। हमले को लेकर कांग्रेस जहां केंद्र और तत्कालीन बीजेपी सरकार पर निशाना साधती रही है, तो बीजेपी भी उसके आरोपों पर पलटवार करती रही है।

25 मई 2013 को जीरम घाटी में हुए नक्सली हमले की जांच के लिए NIA ने अब तक 91 में से 45 लोगों की गवाही ली है। जबकि हत्याकांड में तीन दर्जन नक्सलियों को आरोपी बनाया है। वहीं सत्ता संभालते ही भूपेश सरकार इसकी जांच के लिए SIT गठित कर दी है, जिसने अब तक 14 लोगों का बयान लिया है। इसके अलावा सीनियर हाईकोर्ट जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में गठित न्यायिक आयोग भी कई मुद्दों को लेकर जांच कर चुकी है। इधर बिलासपुर हाईकोर्ट में जितेंद्र मुदलियार की राजनीतिक षडयंत्र की जांच और विवेक वाजपेयी की याचिका, जिसमें कहा है कि झीरम हमले की जांच राज्य सरकार की पुलिस को करना चाहिए। दोनों पर सुनवाई लंबित है।

साल बदला, सरकार बदली, लेकिन अब तक जीरम के पर्दे के पीछे का सच सामने नहीं आया है।  ऐसे में सवाल है कि 8 साल बाद भी घटना की असलियत सामने क्यों नहीं आ पाई? हमला सिक्यूरिटी फैल्योर था या राजनीतिक साजिश? नक्सली नेता गणपति और रमन्ना के नाम चार्जशीट से क्यों हटा दिए गए? क्या केंद्र और राज्य की सियासत में उलझ गई है जांच? सवाल ये भी कि जीरम कांड के शहीद परिवारों को आखिर न्याय कब तक मिलेगा? जाहिर है ऐसे तमाम सवाल हैं, जिनका जवाब अभी फिलहाल किसी के पास नहीं है, लेकिन  इस घटना में अपनों को गंवाने वाले परिवार और घायलों को अभी भी न्याय का इंतजार है और उनका दर्द आज भी उनकी आंखों और बातों में झलकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button