
तप से कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता है शरीर को कष्ट देना या नष्ट कर देना तप नहीं है
*तप ते अगम न कछु संसारा*
**आप की आवाज**9425523689
*तप से कुछ भी दुर्लभ नहीं रहता है शरीर को कष्ट देना या नष्ट कर देना तप नहीं है*
*मनुष्य की जन्म से जो बुरी प्रवृतियां हैं लोभ, मोह, काम, क्रोध, भय आदि इन पर नियंत्रण करके इन्हें प्रभू श्री राम के भजन में लगाना और प्रभु के प्यारे साधु संत महात्माओं की सेवा उनका संग करना ही तप कहा गया है।
*वाणी से मिथ्या भाषण न करके सत्य भाषण करना यह वाणी का तप है*
*अशुभ रूप न देखकर सबमे प्रभु रूप देखना दृष्टि का तप है*
*कानों से मंगलमय शब्द सुनना, अभद्र शब्द न सुनना श्रोत्र का तप है*
*चित्तवृत्तियों को असद् पदार्थों से हटाकर प्रभु में, रूप में लगाना मन का तप है*
*इसी तप से शान्ति और शुद्धि प्राप्त होती है तब भजन-साधन में मन लगता है परोपकार और भजन के लिए शारीरिक सुख छोड़ने पड़े तो छोड़ देना चाहिए*
*दास ने अपने अब तक के जीवन से यही जाना है की साधु संत महात्माओं कि सेवा उनका संग ही सबसे बड़ा तप है *
क्यों की सभी शास्त्र और महापुरषों का यही कहना है और बाबा तुलसी ने भी यही कहा है की
*नहिं कलि करम न भगति बिबेकू।*
*राम नाम अवलंबन एकू॥*
*कलियुग में न कर्म है, न भक्ति है और न ज्ञान ही है, राम नाम ही एक आधार है *
और साधु संत महात्माजन तो इस नाम के खजाने है
कोई बटोरने वाला होना चाहिए,