दिव्यांग के रास्तों का सहारा बना घोड़ा….. सूरदास होने के बावजूद भी कैसे करते हैं अपने परिवार की पालन पोषण…… पढ़िए दिल छू लेने वाली कहानी – खुद सूरदास की जुबानी

जशपुरनगर. बचपन से ही दोनों आँखों से दिखाई नहीं देता है. लेकिन दिव्यांगता को पीछे छोड़ आज अपने परिवार का आर्थिक ढाल बने हुए हैं. दिव्यांग सूरदास प्रजापति जशपुर जिले के ब्लॉक बगीचा के छोटे से गांव महुवाडीह के रहने वाले हैं. इनके हौसले को ग्रामवासी भी सलाम करते हैं. आत्मविस्वास से लबरेज सूरदास अब अपने रास्तों का साथी एक घोड़े को बना लिया है. इस घोड़े से सूरदास के दोनों बच्चों सहित उनकी पत्नी व वह खुद भी यात्रा करते हैं.
क्या कहते हैं, सूरदास
“दोनों आँखों से नहीं दिखता इसलिए मैं बाइक व सायकल नहीं चला सकता. मुझे कहीं जाना होता है, तो दूसरों की सहारे की जरुरत पड़ती थी. बच्चे अभी छोटे हैं, ऐसे में कहीं आने जाने में पत्नी की ही सहायता का सहारा था . लोग भी मुझे सूरदास समझा कर अक्सर लिफ्ट भी नहीं देते हैं. इन्हीं वजहों से मैंने अब सस्ते क़ीमत में एक घोड़ा ख़रीदा है. जो मुझे सही मंजिल तक पहुंचने के साथ मेरे रास्तों का सहारा भी है.”
परिवार के आर्थिक ढाल
मोबाईल समेत अन्य उपकरण बखूबी चलाने वाले सूरदास कॉलिंग के लिए स्क्रीन रीडिंग सिस्टम का उपयोग करते हैं. मोबाईल से वह शहर से थोक में ब्रेड मंगवाते हैं. जिसे सुबह सुबह गांव में घूमकर ब्रेड बेचते हैं. इस दौरान वह एक उपकरण को बजाते हैं जिससे ग्रामीण समझा जाते हैं, कि सूरदास ब्रेड लेकर आये हैं. बिक्री से मिले पैसे भी वह बखूबी गिन लेते हैं. असली और नकली नोटों को भी सूरदास खूब पहचानते हैं, उन्हें कोई ठग नहीं सकता. ऐसे ही अन्य आर्थिक उपायों के साथ, अपने परिवार का आर्थिक ढाल बने हुए हैं. और अब घोड़े कि सहायता से ब्रेड की बिक्री बढ़ी गई है. जिससे आर्थिक बढ़ोत्तरी होना लाजमी है.

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