
एक ज्ञानी और संसारी में यही फर्क है कि ज्ञानी मरते हुए भी हँसता है और संसारी जीते हुए भी मरता है
* हमें मूढ़ता में नहीं ज्ञान में जीना चाहिए ताकि हम हर स्थिति में प्रसन्न रहकर आनंदमय जीवन जी सकें*
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*ज्ञान का आचरण में उतरना भी आवश्यक है।*
*जो ज्ञान आचरण में नहीं उतर पाता वह कंजूस के उस धन के समान ही है जो तिजोरी में तो पड़ा है पर आवश्यकताओं की पूर्ति में कभी भी सहायक नहीं हो पाता है।*
*एक ज्ञानी और संसारी में यही फर्क है कि ज्ञानी मरते हुए भी हँसता है और संसारी जीते हुए भी मरता है।*
*ज्ञान हँसना नहीं सिखाता, बस रोने के कारणों को मिटा देता है।*
*ज्ञानी इसलिए हर स्थिति में प्रसन्न रहता है क्योंकि वह जानता है कि जो मुझे मिला, वो कभी मेरा था ही नहीं और जो कुछ मुझसे छूट रहा है, वह भी मेरा नहीं है।*
*परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है ये बात ज्ञानी व्यक्ति मन से स्वीकार कर लेता है।*
*संसारी इसलिए रोता है क्योंकि उसकी मान्यताओं में जो कुछ उसे मिला है उसी का था और उसी के दम पर मिला है।*
*जो कुछ छूट रहा है सदा सर्वदा यह उस पर अपना अधिकार मान कर बैठा है।*
*बस यही अशांत रहने का कारण है।*
*हमें मूढ़ता में नहीं ज्ञान में जीना चाहिए ताकि हम हर स्थिति में प्रसन्न रहकर आनंदमय जीवन जी सकें।*