प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का हाल बेहाल अधिकारी कर रहे हैं मनमानी

भूपेंद्र गोस्वामी
आप की आवाज
*प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का घोटाला ना छुपा है न छूपेगा
*सड़कों की दुर्दशा दावे की खोल रही पोल 20 से 25 सालों से एक ही जगह पर जमे अधिकारी की साख पर लगा रहे बट्टा
*प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना=गुणवत्ता जांच सिर्फ दिखावा
*हर महीने जांचते है क्वालिटी नहीं दिखती घटिया सड़कें
*गुणवत्ता निरीक्षकों को भी खरीद लेते हैं भ्रष्ट अधिकारी
*अधिकारी ठेकेदार सरकारी धन से बना रहे अकूत संपत्ति
*घटिया निर्माण पहली बारिश में धूल जाती है सड़कें
*एक आधार 5 साल मेंटेनेंस से भी झाड़ लेते हैं पल्ला
*लोगों की शिकायत नहीं सुनी जा रही भ्रष्टाचारियों पर नहीं हो रही कार्यवाही
*मेंटेनेंस गारंटी के बाद भी बार-बार सड़क का टेंडर निकाल कर पैसे की बरबादी
*रोड की ड्राइंग को बिगाड़ कर सड़क की लंबाई दो से तीन किमी बढ़ा देते हैं
*ठेकादार चलाकि से गुणवत्ता निरीक्षकों चिकनी सड़के ही दिखाते हैं
*ड्रिल करके सड़क की जांच होनी चाहिए
*निर्माण पूरा होने से पहले ही दम तोड़ रही सड़कें
*सरकारी दावे की पोल खोल रही सड़कों की  ये तस्वीरें
गरियाबंद==प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत राज्य में बेहतर सड़कों के निर्माण के सरकारी दावे की ये तस्वीरें पोल खोल रही हैं। विधानसभा में सरकार ने योजना के तहत सड़कों के निर्माण और गुणवत्ता में बेहतरी का जिक्र कर अपनी पीठ थप-थपाई थी लेकिन गरियाबंद संभाग में योजना के तहत बनाई गई सड़कों की स्थिति इन दावों की पोल खोल रही है।  टीम ने सड़कों की दुर्दशा देखकर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है जिससे सड़कों के निर्माण में बरती गई गड़बड़ी और भ्रष्टाचार साफ नजर आ रही है। दरअसल सरकार अधिकारियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर ही यह तय कर लेती है सबकुछ ठीक-ठाक है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। दरअसल भ्रष्टाचार और गड़बडिय़ों को अंजाम देने वाले अधिकारी सत्य को छुपा कर सचिव और मंत्रालय स्तर के अफसरों को भ्रामक और गलत जानकारियां उपलब्ध कराते हैं और जमीन हकीकत पर परदा डालकर अपने विधि विरुद्ध कार्यों को अंजाम देते रहते हैं। वास्तविक तथ्य सामने नहीं आने से किसी योजना में बरती जा रही कमियों से सरकार अवगत नहीं हो पाती और अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को ही अंतिम मान लेती है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में मैदानी अधिकारियों-ठेकेदारों की मिलीभगत से भारी भ्रष्टाचार कर सरकारी धन का बंदरबाट किया जा रहा है। छुटभैये नेताओं के संरक्षण के चलते ग्रामीणों की शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होती , कोई शिकायत उच्चाधिकारियों तक पहुंचती भी है तो जांच की खानापूर्ति कर शिकायतों को खारिज कर दिया जाता है।   प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत छत्तीसगढ़ में हर वर्ष हजारों किमी की नई सड़कें बन रही हैं। इन सड़कों के घटिया स्तर और मापदंड़ों के अनुरुप नहीं होने की लगातार शिकायतें सामने आती रही हैं। योजना के तहत बनाई गई सड़कों की गुणवत्ता और मापदंडों से किस कदर खिलवाड़ किया जाता है इसे निर्माण के चंद महीने बाद देखकर समझा जा सकता है। कहने को तो हर महीने क्वालिटी मानिटर्स हर जिलों-संभागों में निर्माणाधीन सड़कों की गुणवत्ता जांचते हैं लेकिन एक भी सड़क का गुणवत्ताहीन और घटिया नहीं पाया जाना यह साबित करता है कि योजना में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। इस योजना की सड़कों के निर्माण में खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है। क्षेत्रीय अफसर और ठेकेदार मिलीभगत कर कम लागत में दोयम दर्जे की निर्माण कर शासन के करोड़ों रुपए डकार रहे हैं। मैदानी अधिकारियों से लेकर विभागीय और सचिव स्तर के उच्चाधिकारियों के संरक्षण में ठेकेदार में सरकारी धन को लूट रहे हैं और लोगों को सुविधाओं के नाम पर घटिया सड़कें बनाकर दे रहे हैं जिनकी उम्र बहुत छोटी होती है। अधिकारी-ठेकेदार मिलकर निर्माण के चंद महीनों बाद लोगों को पगडंडी से भी बदतर खस्ताहाल गडढे भरी सड़कों पर जीवन को खतरे में डालने विवश कर रहे हैं। संबंधित विभाग के उच्चाधिकारी न तो निर्माण कार्यो की समय-समय पर मॉनिटरिंग करते हैं न ही वस्तु स्थिति से विभागीय मंत्री को अवगत कराते हैं। विभाग टेंडर जारी कर अपने कत्र्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं और सारा काम निचले स्तर के अधिकारियों की देखरेख में होता जो बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर ठेकेदारों को घटिया निर्माण का अवसर देते हैं। विभागीय मंत्री भी नींद में है जिन्हें स्वत: संज्ञान लेकर घटिया निर्माण की जांच करवा कर लोगों की बुनियादी सुविधायों को छिनने वाले अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए लेकिन ऐसा हो नही रहा है और निर्माण एजेंसियां और अधिकारी बेखौफ होकर सरकार को चूना लगा रहे हैं।     पुल-पुलियों का भी घटिया निर्माण कई इलाकों में बनाई गई सडक़ों में बनाए गए पुलों का निर्माण भी घटिया स्तर का है। सड़कें बनकर तैयार हुई हैं और कई जगहों पर पुलियों में दरार नजर आ रही हैं। मटेरियल की मिक्सिंग भी अत्यंत दोयम दर्जे की है जिसके कारण पुल धंसकने भी लगे हैं। सडक़ों पर पुराने पुलियों का नया निर्माण भी नहीं किया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इन पुल-पुलियो का नया निर्माण होना चाहिए था। कई सडक़े तो ऐसी है जिसका मरम्मत आज तक नहीं हुआ है एक बार सडक़ बनने के बाद ठेकेदार को कम से कम पांच साल मेंटेनेंस करना होता है लेकिन अधिकारियो से सेटिंग कर दोबारा उस ओर देखना तक मुनासिब नहीं समझते। निर्माण एजेंसी को अफसरों का संरक्षण ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि घटिया निर्माण कार्य की जानकारी विभागीय अफसरों को है। इसके बाद भी कार्रवाई करने के बजाय हाथ में हाथ धरे बैठे हुए हैं। निर्माण एजेंसी को विभागीय अफसरों का संरक्षण मिल रहा है। ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया है कि ठेकेदार द्वारा गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखा गया जिससे सड़कों में दरार आनी शुरू हो गई है। चंद महीनों में सड़कें धंसकने के साथ डामर भी उखडऩे लगा है। विभागीय अधिकारी दे रहे भ्रष्टाचार में साथ नियम अनुसार सड़क निर्माण की शुरुआत में मुरुम को बिछाते हुए हर एक परत में पानी से भिगोकर प्रेसर रोलर से मुरम को दबाया जाना होता है मगर ठेकेदार ने मुरम की अवैध खनन कर उक्त सड़क की वेस बना डाला मगर पानी की एक बूंद भी सड़क में नही डाला गया न ही रोलर चलाया गया ग्रामीणों के विरोध करने के बाद भी ठेकेदार अपने मनमानी से घटिया सड़क निर्माण कर रहे है और ऐसा गुणवत्ता हीन निर्माण तभी संभव है जब विभागीय अधिकारियों का साठ गांठ हो। कमीशन खोरी के लिए अधिकारी भुगतान में लेट-लतीफी करते हैं जिससे सड़कों का निर्माण पूरा होने में विलंब भी होता है और मनमाफिक कमीशन मिलने पर अधिकारी पेमेंट जारी करते हैं जिसके बाद ही ठेकेदार काम आगे बढ़ाते है वो भी महज सड़क बनी है यह दिखाने के लिए। हिस्सा फिक्स होने की भी चर्चा विभागीय सूत्र तो यह भी बताते हैं कि सड़क की गुणवत्ता जांचने वाली टीम के लिए 50-50 हजार की राशि फिक्स है जिसके कारण उनके आंखों में हरियाली का चश्मा चढ़ा हुआ रहता है। हालाकि जनता से रिश्ता इसकी पुष्टि नहीं करतार्। एसक्यूएम के अधिकारियों को सब कुछ पता है कि कही कोई सड़क बनी ही नहीं है, अगर बनी भी है तो उसकी गुणवत्ता और मानकों से समझौता हुआ है इसके बाद भी एसक्यूएम बनाने के एहसान के तले दबे होने के चलते वे जांच रिपोर्ट अधिकारी के कहे अनुसार ही बनाकर देते है। क्योंकि उसकी नियुक्ति ही विभाग द्वारा की जाती है। इस प्रकार क्वालिटी कंट्रोल को जांचने वाले अधिकारी बिना देखें क्वालिटी कंट्रोल का प्रमाण पत्र दे देते हैं। स्थानीय स्तर के छुटभैय्ये नेता भी भ्रष्ट अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए उच्च स्तर पर राजनीतिक संरक्षण देने का पुल तैयार करते हैं जिसके कारण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना अधिकारियों और ठेकेदारों के लिए कमाई का सबसे सुलभ जरिया बन गई है। क्वालिटी कंट्रोल अधिकारियों की जांच सिर्फ खानापूर्ति प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत बनाई गई सडक़ों की गुणवत्ता जांचने दो प्रकार की टीम होती है पहली टीम नेशनल क्वालिटी मॉनिटर जिसे एनक्यूएम बोला जाता है जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होते हैं. दूसरी टीम स्टेट क्वालिटी मॉनिटर जिसे एसक्यूएम कहा जाता है। जिनका काम प्रधानमंत्री सडक़ योजना में हो रहे घोटालों की जाँच करते हैं। मजे की बात ये है कि ये सब अधिकतर उसी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी होते हैं जो एक प्रकार से ओब्लाइज़्ड होते हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के सीईओ द्वारा बनाये गए स्टेट क्वालिटी मॉनिटर से विभाग व अधिकारियों के खिलाफ रिपोर्ट की उम्मीद कैसे की जा सकती है। सरकारी सेवा से रिटायर्ड थके हुए ये अधिकारी अपना हिस्सा लेकर होटल के एसी रूम में ही बैठकर निर्माण एजेंसियों को ओके रिपोर्ट दे देते हैं। ऐसे में घटिया निर्माण या मापदंडों की अनदेखी की बात विभागीय अधिकारियों तक भला कैसे पहुंचेगी। निर्माण वाले इलाकों के ग्रामीण लगातार मीडिया के माध्यम से या फिर जिला अधिकारियों से स्तरहीन और घटिया निर्माण की शिकायत करते हैं। ग्रामीणों और आम जनता को पीएमजीएसवाय में हुई लीपापोती दिखाई दती है, लेकिन एनक्यूएम और एसक्यूएम के अधिकारियों को यह दिखाई नहीं देती।

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