“निर्गुट” अध्यक्ष की ताजपोशी के बाद अचानक सक्रिय हुई सांसद सरोज,,, दुर्ग विधानसभा से चुनाव लडऩे के भी चर्चे, कांग्रेसी खेमे में खलबली

नरेश सोनी

दुर्ग। लम्बे समय से दुर्ग की भाजपाई राजनीति पर एकछत्र राज कर रही वरिष्ठ नेत्री सरोज पाण्डेय की शहर में अचानक सक्रियता ने जिले का राजनीतिक पारा चढ़ा दिया है। यह सक्रियता तब परवान चढ़ रही है जबकि दुर्ग भाजपाध्यक्ष के रूप में जितेन्द्र वर्मा की नियुक्ति की गई है। वर्मा को निर्गुट नेता माना जाता है। विगत करीब २० वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब राज्यसभा सांसद सरोज पाण्डेय के गुट को नजरअंदाज कर किसी अन्य को अध्यक्ष बनाया गया। शायद यही वजह है कि इस सक्रियता के लोग अपने-अपने स्तर पर मायने निकाल रहे हैं। इसे जहां एक ओर नए अध्यक्ष की ताजपोशी के बाद भी संगठन पर कब्जे की जुगत के रूप में देखा जा रहा है तो वहीं कई लोगों का मानना है कि संभवत: सरोज पाण्डेय प्रदेश के राजनीतिक हालातों में अपने लिए भावी संभावनाएं तलाश रही है। मतलब, वे दुर्ग विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे की मानसिकता बना चुकीं हैं।

१० वर्षों तक दुर्ग की महापौर रहीं सरोज पाण्डेय ने सांसद निर्वाचित होने के बाद केन्द्रीय राजनीति का रूख किया था। करीब १३ वर्षों से वे दिल्ली में ही ज्यादा सक्रिय रहीं। हालांकि समय-समय पर वे अपने हिसाब से नियुक्तियां करवातीं रहीं। विधानसभा और महापौर के लिए उनकी पसंद को सदैव तवज्जो मिलती रही, तो संगठन में भी वे मनमाफिक नियुक्तियां करवाने में कामयाब होती रहीं। इसलिए सरोज पाण्डेय निश्चिंत होकर दिल्ली में अपना राजनीतिक ग्राफ बढ़ातीं रहीं। लोकसभा का चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भी इसलिए भेजा, क्योंकि पार्टी को केन्द्रीय राजनीति में उनकी जरूरत थी। लेकिन कुछ समय पहले उन्हें भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से विदा कर दिया गया। क्योंकि सरोज पाण्डेय राज्यसभा की सांसद हैं, इसलिए वे केन्द्रीय सत्ता और संगठन के नेताओं के साथ संवाद स्थापित करतीं रहीं। लेकिन इधर, दुर्ग में इस दौरान काफी कुछ ऐसा हो गया, जिससे उनके अपने राजनीतिक कद पर आंच आने लगी। दुर्ग विधानसभा में सुश्री पाण्डेय ने ही २०१८ में चंद्रिका चंद्राकर को प्रत्याशी बनाया था। श्रीमती चंद्राकर यह चुनाव बहुत बुरी तरह से हारीं। इसके बाद नगर निगम में भी कांग्रेस की सत्ता आ गई। प्रदेश में तो सत्ता पहले ही चली गई थी। अब तक सरोज गुट का सारा दारोमदार जिला संगठन पर ही था, लेकिन वहां भी नई नियुक्ति कर दी गई।

सुश्री पाण्डेय की ही पहल पर लगातार जिला भाजपाध्यक्ष बनाए जा रहे थे। उषा टावरी को उन्होंने ही अध्यक्ष बनवाया, किन्तु श्रीमती टावरी संगठन को एकजुट करने में नाकाम रहीं। उनका कार्यकाल संतोषजनक भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि सरोज गुट के अलावा और कोई भाजपा कार्यालय में जाना पसंद नहीं करता था। श्रीमती टावरी के बाद सुश्री पाण्डेय ने डॉ. एसके तमेर को जिलाध्यक्ष बनवा दिया। जब सरोज पाण्डेय ने महापौर के रूप में अपना १० वर्षीय कार्यकाल पूरा किया था, तब उन्होंने महापौर के लिए अपना उत्तराधिकारी डॉ. तमेर को ही बनाया था। पेशे से चिकित्सक डॉ. तमेर की कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं थी। बावजूद इसके उन्होंने ५ वर्षों तक दुर्ग के महापौर का दायित्व जैसे-तैसे निभाया। उनके कार्यकाल को भी दुर्ग शहर के लिहाज से कतई प्रभावी नहीं माना जा सकता। सच्चाई तो यही है कि डॉ. तमेर सिर्फ कहने को ही महापौर थे। उनके पीछे पूरा कामकाज सुश्री पाण्डेय और उनके समर्थक ही किया करते थे। इन्हीं डॉ. तमेर को पिछली दफा जिला भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया तो कार्यकर्ताओं में बेहद नाराजगी देखने को मिली। डॉ. तमेर स्वयं को इस जिम्मेदारी में फिट नहीं पा रहे थे। नतीजा यह निकला कि उन्होंने भाजपा कार्यालय जाना छोड़ दिया। संगठन की गतिविधियों से भी उनका कोई वास्ता नहीं था। इससे पार्टी का भीतरी संतुलन लडख़ड़ाने लगा। विधायक और महापौर कांग्रेस का होने के बाद भी भाजपा मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम रही।

डेढ़ साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। इसके लिए पार्टी पूरी गम्भीरता से जुट गई है। लगातार बैठकें हो रही हैं। सुश्री पाण्डेय इस पूरे परिदृश्य से लगातार गायब रहीं, लेकिन पार्टी द्वारा अचानक जितेन्द्र वर्मा को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सरोज पाण्डेय की सक्रियता भी बढ़ गई है। पार्टी के भीतरी सूत्रों का मानना है कि सुश्री पाण्डेय का केन्द्रीय स्तर पर जनाधार कमजोर हुआ है। इधर, प्रदेश की सरकार भी कथित तौर पर संतोषजनक काम नहीं कर पा रही है। सत्ता के हिसाब से भाजपा का संतुलन भी गड़बड़ाया हुआ है। संभव है कि भाजपा को बहुमत मिलने की स्थिति में डॉ. रमन सिंह फिर से सीएम न बन पाएं। ऐसे में कई बड़े नेताओं को अपनी लिए संभावनाएं दिख रही है।

एक ही दिन में तैयार हुए दो कार्यक्रम

सर्वविदित है कि सांसद सरोज पाण्डेय ने कभी भी स्थानीय मुद्दों को लेकर कोई आंदोलन नहीं किया। वे कभी पार्टी के स्थानीय आंदोलनों में शामिल भी नहीं हुईं। लेकिन कल रात्रि अचानक मीडिया को व्हाट्सएप पर प्रेस रिलीज जारी कर बताया गया कि सरोज पाण्डेय नगर निगम के खिलाफ जंगी प्रदर्शन करेंगी। शहर की दुर्गति व जनता के दर्द को लेकर यह प्रदर्शन करने की बात बताई गई। सवाल यह उठ रहा है कि क्या शहर की दुर्गति अभी हुई है या जनता को अभी-अभी ही दर्द हो रहा है? वास्तविकता यह है कि शहर में समस्याओं की शुरूआ्रत उसी वक्त हो गई थी, जब डॉ. एसके तमेर महापौर बने थे। उनके बाद चंद्रिका चंद्राकर का कार्यकाल तो और ज्यादा खराब रहा था। तब भी जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। नगर निगम पर कांग्रेसी सत्ता को करीब ३ वर्ष हो चुके हैं। इन ३ वर्षों में एक भी बड़ा और उपलब्धिमूलक काम नहीं हो पाया। शहर की प्रमुख सड़कों से लेकर गली-मोहल्ले की सड़कों तक को खोदकर कब्रिस्तान बना दिया गया, शहर का ज्यादातर हिस्सा लम्बे समय से पानी के लिए तरस रहा है। लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। कांग्रेस द्वारा आयोजित जन समस्या शिविर में जितनी समस्याएं आ रही हैं, उनका १० फीसदी भी समाधान नहीं हो पा रहा है। लोग इन शिविरों में लगभग फूट पड़ते हैं और अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं होता। आश्चर्य है कि यह सब कुछ सुश्री पाण्डेय को अब जाकर दिखा। पार्टी की ओर से दूसरी प्रेस रिलीज मन की बात को लेकर जारी की गई, जिसमें सुश्री पाण्डेय के शामिल होने की जानकारी थी।

सरोज की सक्रियता से कांग्रेसियों के चेहरे उतरे

दुर्ग की राजनीति में सुश्री पाण्डेय की सक्रियता की खबरों से कई कांग्रेसियों के चेहरे उतर गए हैं। दुर्ग शहर के नागरिक सुश्री पाण्डेय के १० साल के महापौर कार्यकाल को देख चुके हैं। ऐसे में यदि वे दुर्ग सीट से प्रत्याशी बनाई जाती हैं तो इसका सीधा असर शहर की कांग्रेसी राजनीति पर ही होगा। शहर में वर्तमान में खुलेआम भ्रष्टाचार के खेल चल रहे हैं। नगर निगम में टेंडर बांटने से लेकर शौचालय चलाने और चखना सेंटर तक सब कुछ कांग्रेस के लोग कर रहे हैं और खूब कमीशन भी बना रहे हैं। नगर निगम के कई अफसरों को भी कांग्रेसियों के समक्ष उठक-बैठक लगाते देखा जा सकता है। सुश्री पाण्डेय की दावेदारी से ऐसे लोगों की भी नींदें उडऩा स्वाभाविक है, क्योकि सभी को सरोज पाण्डेय की कार्यप्रणाली और उनकी तेजतर्रार कार्यशैली बखूबी मालूम है।

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