परिवर्तन की दस्तक? रायगढ़ की रैली ने सत्ता की नींव हिला दी

रायगढ़ की सड़कों पर जो नजारा देखने को मिला, उसने प्रदेश की राजनीति की तस्वीर बदल दी। “कांग्रेस का वोट चोर, गद्दी छोड़” जैसे गगनभेदी नारों के बीच उमेश पटेल और सचिन पायलट के नेतृत्व में हुई ऐतिहासिक रैली ने यह जता दिया कि जनता अब मौन दर्शक नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने को तैयार है। ऐसा प्रतीत होता है कि कही प्रदेश कि जनता राजस्थान के जैसे स्थिति के मूड में है हालांकि इसका आलकन करना धोड़ा जल्दी बाजी होंगी लेकिन वोटर अधिकार रैली से सभी राजनीती पाटि चाहे सत्ता धारी पार्टी बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर अन्य कोई पार्टी सबको सोचने पर मजबूर कर दिया

हजारों की भीड़, उत्साह से लबरेज युवाओं की मौजूदगी और किसानों-श्रमिकों की एकजुटता ने साफ कर दिया कि अब असंतोष का लावा सड़कों पर फूटने लगा है। मंच से उमेश पटेल और सचिन पायलट ने सरकार पर सीधा वार करते हुए बेरोजगारी, महंगाई और उद्योगों के दबदबे जैसे मुद्दों को गरजते हुए उठाया। उनके शब्द तलवार की धार की तरह थे—“जनता का विश्वास लूटने वालों को गद्दी पर रहने का हक नहीं”।

यह महज़ एक रैली नहीं थी, बल्कि सत्ता के गलियारों तक गूंजती चेतावनी थी। भीड़ का जोश और आक्रोश इस बात का संकेत है कि जनता अब सिर्फ सुनने नहीं आई थी, बल्कि बदलाव की मांग करने आई थी। राजनीतिक पंडित मान रहे हैं कि रायगढ़ से उठी यह आंधी पूरे प्रदेश में तूफान का रूप ले सकती है।

दरअसल, यह रैली सवाल खड़ा कर रही है—क्या अब प्रदेश में सचमुच परिवर्तन की लहर दौड़ चुकी है? या फिर यह सत्ता के सिंहासन पर बैठे लोगों के लिए केवल एक और चेतावनी की घंटी है?

एक बात तो तय है—रायगढ़ ने आज जो तस्वीर दिखाई है, उसने प्रदेश की राजनीति को हिला कर रख दिया है।

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