नई दिल्ली: ‘इंडिक कलेक्टिव’ नामक ट्रस्ट ने पश्चिम बंगाल में हो रही सियासी हिंसा के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी। इसे सुनवाई के लिए तत्काल सूचीबद्ध करने की माँग की गई थी। लेकिन, शीर्ष अदालत में इसकी तत्काल लिस्टिंग नहीं हो पाई। ‘इंडिक कलेक्टिव’ ने बताया है कि उसने इस याचिका में पश्चिम बंगाल में चुनावी परिणाम आने के बाद हो रही सियासी हिंसा में शीर्ष अदालत द्वारा हस्तक्षेप की माँग की है।
3 मई 2021 की दोपहर को ये याचिका दाखिल की गई थी। ट्रस्ट ने दावा किया है कि इसके अगले दिन दोपहर तक सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा पूछे गए सारे प्रश्नों के उत्तर भी दे दिए गए थे। जो भी संशय थे, उनका निराकरण कर दिया गया था। बंगाल में मौजूदा स्थिति के मद्देनज़ार इसकी तत्काल सुनवाई की माँग की गई थी, मगर बुधवार को इस पर सुनवाई नहीं हो सकी। इस पर ट्रस्ट ने नाराजगी व्यक्त की है। ट्रस्ट ने कहा कि उसकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद और जे साईं दीपक ने वकील सुविदत्त सुंदरम के साथ मिल कर न्यायमूर्ति यूयू ललित के सामने इस मामले को 6 मई 2021 को उठाने के लिए मौखिक रूप से अनुरोध किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा नामंजूर कर दिया गया।
इंडिक कलेक्टिव’ का कहना है कि वस्तुस्थिति की गंभीरता के मद्देनज़र इसकी त्वरित सुनवाई आवश्यक थी, लेकिन वो नहीं हो पाया। ट्रस्ट ने बताया है कि 6 मई को अर्जेंसी को लेकर दूसरा पत्र भेजा गया, लेकिन उसे भी ठुकरा दिया गया। ‘इंडिक कलेक्टिव’ ने ट्विटर के जरिए कहा है कि, “ये काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि सजायाफ्ता आतंकियों के लिए सुप्रीम कोर्ट आधी रात को खुल सकता है लेकिन पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा के खिलाफ याचिका लिस्ट तक नहीं की जा रही। अभी भी जानें जा रही हैं। स्पष्ट है कि कुछ लोग बाकियों से ज्यादा ‘बराबर’ हैं।” इसके साथ ही ट्रस्ट ने यह भी लिखा कि, आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का अंतिम दिन है, क्योंकि आज से कोर्ट 28 जून तक ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए बंद हो जाएगा। जब याकूब मेनन के लिए आधी रात को खुली थी कोर्ट:-
बता दें कि इंडिक कलेक्टिव जिस वाकये की बात कर रहा है वो 2015 का है। दरसअल, 1993 के मुंबई सीरियल धमाके के दोषी याकूब मेमन की याचिका को जब राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर दिया गया था, तब 30 जुलाई 2015 की आधी रात को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खुला था। उस समय वकील प्रशांत भूषण समेत कई अन्य वकीलों ने देर रात को इस फांसी को टालने के लिए गुजारिश की थी। उस समय ये सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन जजों की एक बेंच ने की थी। रात के तीन बजे ये मामला सुना गया था। 30 जुलाई 2015 की रात को 3.20 पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू हुई थी, जो कि सुबह 4.57 तक चली थी। जिरह के बाद इस याचिका को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया था। इसके फ़ौरन बाद याकूब मेमन को फांसी दे दी गई थी।
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