
*कं हरति इति कहारः* — जो जल लाता है, वही कहार कहलाता है।
जल का अर्थ ही जीवन है । तो जल ही जीवन हैं यदि हम कहें तो लगेगा कि जीवन ही जीवन है ।
आज कावड़ यात्रा करके हम सब कहार बनते हैं और वह जल चूँकि भगवद् अर्पित है अतः भक्ति बन जाता है ।
यह व्युत्पत्ति मात्र शब्दार्थ नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है। कांवड़ यात्रा इसी दर्शन का जीवंत रूप है — जहाँ साधारण मनुष्य, कहार की तरह, अपने कंधों पर जल वहन करता है… लेकिन उसका उद्देश्य सांसारिक नहीं, बल्कि पूर्णतः आध्यात्मिक होता है।
*कांवड़ यात्रा क्या है?*
हर वर्ष सावन के पावन मास में लाखों श्रद्धालु — जिन्हें “कांवड़िया” कहा जाता है — गंगा नदी से पवित्र जल लेकर शिव मंदिरों तक जाते हैं। यह जल वे भगवान शिव के “जलाभिषेक” के लिए समर्पित करते हैं।
किसान, विद्यार्थी, मजदूर, व्यापारी — सब कांवड़ उठाकर एक समान हो जाते हैं। वे “कं हरति”, जल वहन करते हैं, परंतु यह जल ईश्वर को समर्पित होता है, इसलिए यह कर्म भक्ति बन जाता है।
गीता का उद्घोष है
*कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।*
_*करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणयेति समर्पयामि ॥*_
इस श्लोक में बताया गया है कि यदि हम जो भी करें — शरीर, वाणी, मन, बुद्धि या स्वभाव से — सब ईश्वर को अर्पित कर दें, तो वह भक्ति बन जाता है।
कांवड़ यात्रा इसका सजीव उदाहरण है:
• कायेन – पैरों से चलते हैं सौ-सौ किलोमीटर।
• वाचा – हर हर महादेव का जयघोष।
• मनसा – एकाग्रता और श्रद्धा।
• इन्द्रियैः – नियमों का पालन ( जैसे नंगे पाँव चलना, उपवास )।
• प्रकृतेः स्वभावात् – यह सब कुछ सहज प्रेम और श्रद्धा से होता है।
और अंततः — सब शिव को समर्पित। यही भक्ति है।
एक बात सदैव ध्यान रखें कि यदि कोई ब्राह्मण वेदमंत्रो का पाठ ईश्वर के लिये कर रहा है तभी वह भक्ति है , यदि वह दक्षिणा के लिये कर रहा है तब वह जीविकोपार्जन है ।
आइये हम सब मिलकर कांवड़ियों के लिये श्रद्धा का भाव जगायें और सबकी कांवड़ यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न हो इसकी प्रार्थना करें ।
ॐ पार्वतीपतये नमः।
त्रिनेत्रं चन्द्रमौलिं, नीलकण्ठं दयानिधिम्।
नमामि शशिधरं शांतं, पार्वतीप्रियकारकम्॥
गङ्गाधरं जटाजूटं, व्याघ्रचर्मधृतं हरम्।
भस्माङ्गरागं सौम्यं, करुणासिंधुमद्भुतम्॥
सर्वभूतहितं देवं, कैलासनिवासिनम्।
शिवं शङ्करमाद्यं च, पार्वतीपतये नमः!