भगवान शिव को धतूरे का फूल क्यों पसंद है पढ़िए पूरा लेख

*हिंदू धर्म में अनेक फूल भगवान को अर्पित किए जाते हैं — कमल, चमेली, तुलसी, बिल्वपत्र… लेकिन एक फूल ऐसा भी है जो जहरीला है, अशुभ माना जाता है, फिर भी वह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है — और वह है धतूरे का फूल?*

*लेकिन क्यों?*

इसका उत्तर मिलता है परम पूज्य  राजेन्द्र दास जी महाराज की वाणी में — एक अत्यंत अद्भुत प्रसंग के रूप में, जो भगवान शिव की लीला को गहराई से उजागर करता है।

*भगवान शिव नीलकंठ क्यों कहलाते हैं? समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब सारे देवता और असुर पीछे हट गए। संसार संकट में पड़ गया। तब भगवान शिव ने वह विष सहर्ष अपने कंठ में धारण कर लिया?*

परम पूज्य राजेन्द्र दास जी कहते हैं:

*”जो स्वयं विष पीकर संसार को अमृत दे, वह केवल भोलेनाथ ही हो सकते हैं। और इसलिए… जो विषैला है, वह भी शिव को प्रिय है।”*

*धतूरे का फूल भले ही सामान्य रूप से हानिकारक है, लेकिन उसमें एक गहरा आध्यात्मिक संकेत छुपा है।*

राजेन्द्र दास जी ने कथा सुनाई थी:

*📖 “एक बार एक गरीब तपस्वी ने भोलेनाथ की पूजा के लिए फूल खोजे, लेकिन जंगल में उसे केवल धतूरा मिला।”*

उसने कहा –

*”हे भोलेनाथ! मेरे पास आपको चढ़ाने लायक कुछ नहीं है। पर ये धतूरा है, जो विषैला है — जैसा कि मेरा मन भी है।*

*मैं आपको अपना सारा ज़हर अर्पित करता हूँ। आप कृपा करके इसे भी स्वीकार करें।”*

उसने श्रद्धा और समर्पण से धतूरा चढ़ाया… और तब भगवान शिव प्रकट हो गए!
भोलेनाथ बोले —

*”तुमने मुझे वह दिया है, जो सबसे कठिन है — अपना अहंकार, अपना विष, अपना दोष। मैं प्रसन्न हूँ।”*

राजेन्द्र दास जी कहते हैं —

*”भोलेनाथ देवों के देव हैं, लेकिन उनका हृदय सबसे सरल है। वे अर्पण में वस्तु नहीं, भावना देखते हैं।”*

*इसलिए शिव को भांग, धतूरा, भस्म, बेलपत्र — ये सब प्रिय हैं। क्योंकि वे कहते हैं –*

*”मुझे वो दो, जो भीतर छुपा है — पाप, विष, विकार। मैं उसे भी स्वीकार करूंगा और तुम्हें शुद्ध कर दूंगा।”*

*यह फूल त्याग और तपस्या का प्रतीक है।*

यह बताता है कि ईश्वर के सामने आप जैसे हैं, वैसे ही जाइए।

वह आपकी कमियों को भी प्रेम से स्वीकारते हैं, यदि आप उन्हें समर्पण भाव से अर्पित करें।

*धतूरा केवल एक फूल नहीं — वह शिव के अनंत प्रेम और करुणा का प्रतीक है।*

*भगवान शिव की यही विचित्र लीला उन्हें संसार के सबसे अनोखे देवता बनाती है —*

*जो भक्त के भाव को देखते हैं, न कि उसकी स्थिति को।*

*”वो विष भी पीते हैं, तो अमृत बना देते हैं।*

वो धतूरा भी स्वीकार करते हैं, तो मंदिर का श्रृंगार बन जाता है।
वो शिव हैं — सरल, सच्चे, और सबसे करुणामय!”

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