
भागवत परम धर्म है. इन्दुभवानन्द: तीर्थ: स्वामिन:
नैमिषारण्य से प्रसारित
*मनुष्य का शरीर अनित्य एवं क्षणभंगुर है बुद्धिमान व्यक्ति को समय रहते हुए ही अपने जीवन का सार्थक फल प्राप्त कर लेना चाहिए*
माता कौशल्या की जन्म भूमि छत्तीसगढ़ से पधारे कैलाश चंद्र काबरा एवं उनके परिवार को नैमिषारण्य क्षेत्र में श्रीमद् भागवत की दिव्य अमृत मयी कथा के अनुबंध चतुष्टय का प्रवचन करते हुए शंकराचार्य जी महाराज के प्रिय शिष्य यति प्रवर १००८ दण्डी स्वामी इन्दुभवानन्द तीर्थ जी महाराज ने बताया की श्रीमद् भागवत परम धर्म है, अन्यान्य पुराण सकाम होते हैं किंतु भागवत निष्काम धर्म है निष्काम धर्म का अनुष्ठान करने से हृदय में बैठे हुए परमात्मा का प्रकाशन हो जाता है जीव को अपने मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाता है परीक्षित को उनके मूल स्वरूप का ज्ञान करने के लिए श्री शुकदेव जी महाराज ने श्रीमद् भागवत की दिव्य अमृतमयी कथा सुनाई भागवत का यही वैशिष्ट्य है कि वह निष्काम धर्म से ओतप्रोत है यही विशेषता भागवत को अन्यान्य पुराणों से भिन्न रखती है इसके पूर्व सुधि वक्ता ने गोकर्ण के के उपदेश को विस्तार करते हुए बताया कि मनुष्य का शरीर अनित्य एवं क्षणभंगुर है बुद्धिमान व्यक्ति को समय रहते हुए ही अपने जीवन का सार्थक फल प्राप्त कर लेना चाहिए मानव शरीर से भागवत साक्षात्कार करना ही जीव का प्रधान लक्ष्य है कथा के पूर्व यजमान कैलाश चंद्र काबरा एवं उनके परिवार ने भागवत भगवान की पोथी का पूजन कर आरती की। शंकराचार्य आश्रम के के वैदिक विद्वानों ने कर्मकांड भाग को संपन्न कराया आज की कथा में मुख्य रूप से श्रीमती राम प्यारी काबरा कैलाश चंद्र काबरा रमन काबरा संजय काबरा गगन काबरा रमेश काबरा गुलाबी बाई काबरा सुरेश काबरा सत्यनारायण काबरा तथा काबरा परिवार के समस्त रिश्तेदार उपस्थित थे

