मवेशियों को खुला छोड देने से लवन अंचल के किसान 10 साल से तिवरा व अन्य रबि फसल की नहीं कर पा रहे है बोवाई

   प्रति एकड़ किसानों को 5 हजार रूपये का हो रहा नुकसान, अधिकांश किसानो को खेती कार्य से हुआ मोहभंग
बलौदाबाजार,
फागुलाल रात्रे, लवन।
अंचल में पिछले 10 वर्षो से किसान तिवारा का फसल नहीं ले पा रहे है। इसका मुख्य वजह है अवारा मवेशियों को खुला छोड़ देनोे, यानी गौठान के सरकारी दांवे यँहा कागजो तक ही सीमित है। हालांकि गौठान योजना पुरानी नही है पर गौठान न बनने का ही नतीजा है कि वर्तमान में मवेशी खुले में घूम रहे है। लवन अंचल के 12 गांवों में 28 हजार किसान कभी सीजन में तिवरा से एक करोड रूपये तक हर साल कमा रहे थे। एक समय में तिवरा की फसल के लिए मशहूर लवन क्षेत्र के लोग आज होरा व भाजी के साथ तिवरा के दानो से बनने वाले बटकर के लिए तरस रहे है।

लवन नगर सहित क्षेत्र के ग्राम तुरमा, कोरदा, सिंघारी, तिल्दा, खैरा, डोंगरा सहित कुल 12 गांव में 44 हेक्टेयर कृषि रकबा है, जिसमें से अधिकांश किसान धान के अलावा तिवरा भी लगाते थे लेकिन पिछले 10 वर्षो से किसानो ने तिवरा लगाना बंद कर दिया है, जिसका मुख्य कारण है मवेशियों को खुला छोड देना। ग्राम कोरदा के किसान मृत्यंजय वर्मा ने पत्रिका को बताया कि गांव कभी तिवरा फसल से हरा भरा दिखता था लेकिन इन दिनो मवेशियो के लिए चारागाह नही होने के कारण तिवरा की फसल भी नही ले पा रहे है। वर्मा ने बताया कि उसके पास 15 एकड़ कृषि भूमि है, जिस पर वे धान फसल ही ले पा रहे है जबकि मेड़ पर अरहर व तिल लगाना भी बंद कर दिया है।
ग्राम खैंदा के कृषक बिरेन्द्र बहादुर कुर्रे ने बताया कि इन दिनो गांव के लोग बटकर होरा व भाजी के लिए तरस ाहे है जबकि ए समय था जब भाजी को खाने के लिए झूंड में मिर्च लेकर खेत जाते थे और हरी भरी भाजी का स्वाद लेते थेे। इसी तरह फल लगते ही बटकर की सब्जी भी स्वाद देती थी लेकिन इन क्षेत्र से यह स्वाद ही गायब हो गया है।
ग्राम परसापाली के किसान भुनेश्वर बंजारे ने बताया कि नदी किनारे का गाव होने क चलतेे यहंा खेतो में नदी से ही तिवरा का पति एकड़ 4 से 5 क्वींटल तक उत्पादन हो जाता था जिससे घर परिवार का गुजारा चल जाता था। अब खेतो में सिर्फ धान की ही फसल होने से पिरवार में पर्याप्त कमाई नहीं हो पाती, तिवरा फसल से मवेशियो के लिए चारा भी बन जाता था।
लवन क्षेत्र की गांव में गौठान भी बने है पर किसी भी गौान में चारे पानी की पर्याप्त व्यवस्था नही है। इन गांवो में प्रति गांव औसत 3 हजार की दर से करीब 30 हजार मवेशी है जो खुले में घू रहे है। मवेशियों को एक जगह एकत्रित कर रखने के लिए गांव-गांव में शासन की योजनानुसार गौठान बनाए गए है। पर सरपंचो का कहना है कि शासन ने चारे पानी के लिए कोई फंड जारी नहीं किया है। खैंदा सरपंच बिरेन्द्र बहादुर कुर्रे ने कहा कि आखिर बगैर चारा-पानी के मवेशियो को गौठान में भूखे कैसे रखे ? वही गांवो में चारागाह भी खत्म हो गए हैे, उन पर रसूखदारों ने कब्जा कर लिया है तो पशुओं के पास चरने के लिए खेत ही बचते है। पशुओ से दूध और खाद सबाको चाहिए पर उसके चारे की चिंता किसी को नही है। े
मामले में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी एसएल सिदार ने पत्रिका को बताया कि कृषि विस्तार अधिकारी का मूल कार्य शासन की योजना का प्रचार करना औ और समय-समय पर योजना का लाभ देने के लिए किसानो से सम्पर्क किा जाता है। उन्होंने कहा कि तिवरा का उत्पादन इन क्षेत्र में प्रमुख रूप से लिया जाता था लेकिन आज मवेशियो  के खुला रहने की वजह से किसानो ने तिवरा लगाना ही बंद कर दिया है। इस स्थिति से अच्चधिकारियों को अवगत कराया जा चूका है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button