
कोड़ातराई/पुसौर | रायगढ़, जुलाई 2025
फ्लाई ऐश के गलत और अवैध निपटान की भारी कीमत अब न सिर्फ़ पर्यावरण बल्कि बेजुबान जीवों को भी चुकानी पड़ रही है। कोड़ातराई-पुसौर मार्ग पर एक बेजुबान गौमाता जहरीली राख की दलदल में फंस गई, जिसे युवाओं की मदद से घंटों की मशक्कत के बाद बाहर निकाला गया। मगर इस हादसे ने एक बार फिर उस “सिस्टम” की पोल खोल दी है जो कागज़ों पर तो संवेदनशील है, मगर ज़मीन पर पूरी तरह मौन।
फ्लाई ऐश का ‘नियमबद्ध’ गोरखधंधा
थर्मल प्लांट्स से निकलने वाली फ्लाई ऐश का वैज्ञानिक तरीके से निपटान अनिवार्य है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। स्थानीय क्षेत्रों में इसे अवैध रूप से खुले में फेंकना, मिट्टी-रेत से ढँककर छुपा देना और खेतों, सड़क किनारे बगैर अनुमति के डंप करना आम हो चला है। कोड़ातराई मार्ग पर भी यही हुआ – जहां जलभराव के चलते राख दलदल बन गई और उसी दलदल में एक गाय घंटों तक फंसी रही।
युवाओं ने दिखाई इंसानियत, सिस्टम ने दिखाई पीठ
इस घटना में शासन-प्रशासन, पर्यावरण विभाग, पशु संरक्षण समितियाँ – कोई भी समय पर नहीं पहुँचा। उल्टे कोड़ातराई के युवाओं ने खुद सामाजिक दायित्व निभाते हुए तीन घंटे की कड़ी मशक्कत में मवेशी की जान बचाई। यह कार्य उस सिस्टम को करना था, जो NOC बांटने में तो तत्पर है, लेकिन निगरानी और ज़मीनी ज़िम्मेदारी में नदारद।
सवाल वही… जवाब कौन देगा?
- क्या शासन की जिम्मेदारी केवल NOC जारी करने तक सीमित है?
- क्या फ्लाई ऐश निपटान की निगरानी व्यवस्था सिर्फ फाइलों तक है?
- क्या जानवरों की जान की कोई कीमत नहीं?
- कब जागेगा प्रशासन? जब कोई इंसान इस दलदल में समा जाएगा?
पूँजी की चमक, सिस्टम की चुप्पी
सैकड़ों वाहन रोज इस मार्ग से गुजरते हैं – जिनमें अधिकारी, ठेकेदार, जनप्रतिनिधि, सभी शामिल हैं। लेकिन किसी ने भी इस दलदली राख और तड़पती जानवर की हालत को रोकने की कोशिश नहीं की। सवाल उठता है कि आखिर कब तक यह चुप्पी जारी रहेगी? क्या पर्यावरण को यूँ ही निगलती रहेगी यह राख?
अब जरूरी है:
- फ्लाई ऐश डंपिंग पर सख्त नियंत्रण और GPS आधारित निगरानी।
- जिम्मेदार उद्योगों की जवाबदेही तय हो।
- स्थानीय प्रशासन और पर्यावरण बोर्ड की साप्ताहिक रिपोर्टिंग अनिवार्य हो।
- अवैध डंपिंग पर तुरंत FIR दर्ज हो और ठोस दंडात्मक कार्रवाई हो।
यह मामला केवल एक गाय का नहीं, यह उस बेपरवाह सिस्टम का आईना है जो जहर को ‘विकास’ कहकर थोप रहा है। अब समय है कि ज़मीन की यह चुप्पी टूटी जाए और जिम्मेदारों से जवाब मांगा जाए।