मुमकिन है सफर हो आसां …
(एनटीपीसी लारा के परियोजना प्रभावित गांव आड़मुड़ा पर आधारित स्टोरी)

एनटीपीसी लारा संयंत्र की चहारदीवारी से लगा हुआ गांव – आड़मुड़ा। चहारदीवारी के समीप स्थित खेल का मैदान। वर्ष भर पूर्व तक इस मैदान में कई स्थानीय प्रतियोगितायें आयोजित होती थीं एवं हमेशा चहल-पहल बनी रहती थी। वर्तमान में जारी कोरोनाकाल ने इस चहल-पहल पर अंकुश लगा दिया है।
संयंत्र क्षेत्र की चहारदीवारी सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है अतः इसका सुदृढ़ होना आवश्यक है। सीआईएसएफ़ एवं मानव संसाधन की संयुक्त टीम द्वारा ऐसे ही एक निरीक्षण के दौरान सूचना मिली थी कि आड़मुड़ा स्थित खेल के मैदान में जब स्थानीय बच्चे क्रिकेट खेलते हैं तो कभी-कभी बॉल संयंत्र क्षेत्र की चहारदीवारी के भीतर आ जाती है एवं सीआईएसएफ़ के जवानों को बॉल वापस करने का अतिरिक्त कर्तव्य निर्वहन करना पड़ता है।
समस्या का समाधान आवश्यक था। इसी दौरान मुलाक़ात हुई – सुरेश भुईया से, जो सरपंच प्रतिनिधि हैं एवं आड़मुड़ा तथा महलोई गांव की संयुक्त पंचायत से संबद्ध विकास कार्यों की देख-रेख करते हैं। सीआईएसएफ़, मानव संसाधन एवं पंचायत प्रतिनिधियों से इस समस्या के निराकरण को लेकर विस्तृत चर्चा हुई। सुरेश ने कई विकल्प सुझाए – जैसे चहारदीवारी के ऊपर कुछ फीट तक नेट फिक्सिंग, पिच की दिशा बदलना इत्यादि। यह हार्दिक प्रसन्नता का विषय था कि ग्राम पंचायत से जुड़ी नई पीढ़ी मात्र समस्यायें ही नहीं बता रही है अपितु ठोस समाधान भी सुझा रही है।
बातचीत सकारात्मक रही। खेल के मैदान एवं संयंत्र की चहारदीवारी में पर्याप्त दूरी थी। मैंने अपनी आदत के मुताबिक सुरेश से उस बच्चे से मिलाने की इच्छा व्यक्त की, जो इतनी ताकत से सिक्सर हिट कर रहा था कि बॉल सीधे संयंत्र क्षेत्र के भीतर प्रवेश कर रही थी। कुछ इस तरह से फिर सुरेश से बातचीत का सिलसिला चल निकला। अंततः यह तय हुआ कि आगामी रविवार को सुरेश के साथ आड़मुड़ा गांव का भ्रमण किया जाये एवं परिवेश को गंभीरता से समझने का प्रयास किया जाये।

निर्धारित तिथि पर मैं आड़मुड़ा पहुच जाता हूँ एवं गांव के नवनिर्मित भव्य प्रवेश द्वार के समीप ही सुरेश से मुलाक़ात होती है। प्रवेश द्वार से कुछ ही दूरी पर स्थित है शासकीय प्राथमिक शाला का नवनिर्मित भवन। भवन का निर्माण कार्य 2018 में पूर्ण कर लिया गया था। पूर्व संचालित स्कूल संयंत्र क्षेत्र की अधिग्रहित भूमि में आने के कारण एनटीपीसी द्वारा यह नया भवन निर्मित किया गया है। यहाँ एनटीपीसी ने फर्नीचर एवं पीने के पानी जैसी आवश्यक सुविधायें उपलब्ध करा दी हैं। किचन शेड एवं वाहन स्टेंड भी शीघ्र तैयार हो जायेंगे।
स्कूल की इमारत के सामने पर्याप्त बड़ा खेल का मैदान है एवं लॉन के विकास की पूरी संभावना है। किन्तु कोरोना काल में स्कूल बेरौनक़ हो चला है। मुख्य द्वार पर ताला लगा हुआ है एवं कई महीनों से शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन किया जा रहा है। पूरे देश के स्कूल जिस महामारी की समस्या से जूझ रहे हैं, आड़मुड़ा का स्कूल भी अपवाद नहीं है। सुरेश उम्मीद जताते हैं कि शीघ्र ही कोरोना महामारी से निजात मिलेगी एवं स्कूल में पुनः पूरी भव्यता के साथ ऑफलाइन कक्षाओं का संचालन शुरू होगा। बच्चों की चहल-पहल के बगैर स्कूल परिपूर्ण नहीं लगता।
प्राथमिक शाला के ठीक सामने सड़क के दूसरी तरफ गांव के मंगल भवन एवं चौपाल का निर्माण कार्य भी पूर्ण हो चुका है। लाइट एवं पंखे भी लगाये जा चुके हैं। किन्तु वर्तमान में शासकीय निर्देशों के तहत निर्धारित संख्या से ज्यादा व्यक्ति एकत्रित नहीं हो सकते अतः इन भवनों का सीमित उपयोग ही हो पा रहा है। सुरेश आस-पास की ऊबड़-खाबड़ भूमि के समतलीकरण का अनुरोध करते हैं जिससे आवागमन सुलभ हो सके।
एनटीपीसी द्वारा समूचे गांव में पाइपलाइन के माध्यम से पानी पंहुचाने की योजना है। टंकी का निर्माण एवं पाइप लाइन बिछाने का कार्य पूर्ण हो चुका है। मोटर के परीक्षण के पश्चात गांव के प्रत्येक घर तक पानी पंहुच जायेगा। विभिन्न चरणों में लगभग वर्ष भर से जारी लॉकडाउन के कारण निर्माण कार्य प्रभावित हो रहे हैं किन्तु यह कार्य प्राथमिकता के आधार पर पूर्ण किया जायेगा।
गांव को शहर से जोड़ने वाली मुख्य सड़क अच्छी स्थिति में है एवं गाँव के भीतर भी सड़क की स्थिति बेहतर है। मैं गांव के भीतर जाने की इच्छा व्यक्त करता हूं। बहुत से मकान पक्के बन चुके हैं एवं रहन-सहन में पर्यावरण एवं सफाई के प्रति जागरूकता स्पष्ट झलकती है। हम गांव के आखिरी छोर तक पंहुच चुके हैं। यहाँ तक दुपहिया अथवा चौपहिया वाहन आसानी से पंहुच सकते हैं। सुरेश से आगे दिख रहे मंदिर और वहाँ के समीपवर्ती तालाब को देखने की इच्छा व्यक्त करता हूं। मेरी ड्राइविंग स्किल का अब इम्तिहान था। तालाब की मेड़ पर वाहन चलाने का अपना अलग रोमांच है। खैर तालाब की परिक्रमा के पश्चात हम सही-सलामत वापस पंहुचे।
आड़मुड़ा गांव में दो तालाब स्थित हैं। तालाब जलकुंभियों से ढकता जा रहा है। सुरेश तालाब के गहरीकरण एवं सौंदर्यीकरण का अनुरोध करते हैं। उनकी चिंता वाजिब है एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी उचित प्रतीत होती है। आज भी गांवों में तालाब का अपना धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।

यात्रा समाप्ति की ओर अग्रसर है। निगाह पड़ती है गर्मियों के मौसम में संचालित किये जा रहे प्याऊ केंद्र पर। गर्मियों में तीन माह तक यह प्याऊ केंद्र एनटीपीसी की मदद से ग्राम पंचायत द्वारा परियोजना प्रभावित समस्त नौ गांवों में पिछले कई वर्षों से संचालित किये जा रहे हैं। आड़मुड़ा स्थित प्याऊ केंद्र में दुकालु एवं अंबिका राहगीरों को पानी पिलाने का कार्य कर रहे हैं। यह कार्य उन्हें इन तीन महीनों में कुछ अतिरिक्त आमदनी का जरिया भी प्रदान करता है। प्याऊ अस्थायी रूप से बनी एक झोपड़ी में संचालित है। यह पूछने पर कि यदि यहाँ प्याऊ संचालन प्रतिवर्ष हो रहा है तो क्या स्थायी निर्माण किया जा सकता है, वो स्पष्ट मना कर देते हैं। उनका कहना है कि कंक्रीट के बने स्थायी निर्माण में गर्मियों में घंटों तक बैठना असंभव है। घास-फूस के बने इस अस्थायी निर्माण में तापमान अपेक्षाकृत कम रहता है एवं उन्हें यह ज्यादा सुकून प्रदान करता है। उनका उत्तर मुझे वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक, दोनों ही दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है।
सुरेश की चिंता कोरोना के बढ़ते प्रकरणों को लेकर भी है। वो क्वारंटाइन सेंटर, सेनेटाइजेशन एवं मास्क वितरण को लेकर पर्याप्त जागरूक हैं एवं इस संबंध में एनटीपीसी लारा के लगातार संपर्क में रहते हैं। गांवों में कई विकास कार्य हुये हैं, कुछ जारी हैं एवं कुछ किये जाने शेष हैं। सुरेश वर्तमान परिस्थितियों, प्रक्रियाओं एवं सीमाओं से वाकिफ हैं।
इस समूची यात्रा से जो बात उभरकर सामने आई कि एक दूसरे पर विश्वास कायम है एवं संवाद जारी है। समस्याओं का मिलकर समाधान ढूढ़ा जा रहा है। स्वर्गीय निदा फाजली जी की पंक्तियां इन परिस्थितियों में सार्थक हो उठती हैं-

मुमकिन है सफर हो आसां अब साथ भी चलकर देखें
कुछ तुम भी बदलकर देखो कुछ हम भी बदलकर देखें

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