नव रात्रि पर्व पर विशेष लेखआस्था -विश्वास और संस्कृति का प्रतीक ग्राम कोसीर

*नव रात्रि पर्व पर विशेष लेख
*आस्था -विश्वास और संस्कृति का प्रतीक ग्राम कोसीर
*ग्राम्य देवी के रूप में विराजमान हैं सिद्धिदात्री मां कौशलेश्वरी देवी – साहित्यकार लक्ष्मी नारायण लहरे
* श्रीमती तुलसी लहरे स्वतंत्र पत्रकार
*छत्तीसगढ़ प्रदेश के रायगढ़ जिला
के गांव  कोसीर अब  वर्तमान में नव सृजित जिला सारंगढ़ -बिलाईगढ़  का अब हिस्सा है यहां विराजमान सिद्धिदात्री मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर में  कुवांर व चैत्र नवरात्री पर आस्था के सैकडों द्वीप प्रज्जवलित किये किये जाते हैं । रायगढ जिले के सबसे बडे गॉव रहे कोसीर अब सारंगढ जिला से महज 16कि मी दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से  ग्राम कोसीर का बसाहट रायगढ जिले के अंतिम छोर पर है था अब सारंगढ़ जिला होने से मध्य में हो गया ।
गॉव कोसीर सारंगढ से महज 16कि मी दूर पश्चिम दिशा में स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से  ग्राम कोसीर का बसाहट रायगढ जिले के अंतिम छोर पर था । उत्तर दिशा में महानदी है जो जांजगीर चाम्पा सरहद मुख्यमार्ग को जोडती थी वर्तमान में सक्ति जिला को जोड़ती है ।
* वही जिले में बलौदाबाजार एवं ,रायपुर ,बिलासपुर मुख्यमार्ग को जोडती है । ग्राम कोसीर ऐतिहासिक नगरी है शासन प्रशासन की नजरों से अछूता रहा है इतिहास पर गौर किया जाये तो ग्राम कोसीर ऐतिहासिक गांव है जहां सत्रहवीं शताब्दी की मूर्ती की अवशेष यत्र तत्र बिखरे पडे हैं। कोसीर के मध्य में मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर स्थित है, कोसीर को ग्रामीण पर्यटन के रूप में स्थापित किया जा सकता है पर्यटन की आपार संभावनायें है लेकिन रायगढ जिले के अंतिम छोर पर बसाहट के कारण शासन प्रशासन और साहित्यकारों के नजर से कोसों दूर था । वही नव सृजित जिला सारंगढ़ -बिलाईगढ़ होने से यह प्रमुख जगह अब बन गया है । छत्तीसगढ के बुद्धजीवी साहित्यकारों को अध्ययन करने की आवश्यकता है यही नहीं रायगढ जिला के साहित्य में कोसीर के मंदिर का जिक्र भी नही होता था जबकि कोसीर की मां कौशलेश्वरी देवी की मंदिर ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है।
रायगढ जिले के पुरातत्ववेता साहित्यकार स्वर्गीय पंडित लोचन प्रसाद पाण्डे जी साहित्यकार ईश्वर शरण पाण्डे जी ने भी कोसीर मंदिर का अपने लेखों में कभी कभार जिक्र किये हैं वहीं कोसीर के स्थानीय साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे
ने माँ कौशलेश्वरी देवी मंदिर की इतिहास को लेकर कई लेख और सम्पादकीय के माध्यम से यहां की इतिहास को लोगों तक पहुंचने की कोशिश किये हैं । साहित्यकार पत्रकार लक्ष्मी नारायण लहरे कहते हैं कि यह मंदिर पुरातात्विक मन्दिर है ग्राम्य देवी के रुप में विराजमान है माँ कौशलेश्वरी देवी वही ग्रामीण पर्यटन से जोड़ा जा सकता है ।
युवा पत्रकार गोल्डी कुमार लहरे ने भी  विगत 10 वर्षो से मन्दिर के खबर को लेकर समाचार पत्रों मां कौशलेश्वरी की भी गुणगान किये हैं।पिछले वर्ष 2011में श्री श्री अग्नि शिखा महाराज जी कोसीर मंदिर दर्शन करने पहुॅचे थे तब उन्होंने मां कौशलेश्वरी देवी की मूर्ति को देखते ही बोल उठे कि मां कौशिकी देवी है जिसे आप लोग कौशलेश्वरी देवी के रूप में पूजते हैं यही नहीं छत्तीसगढ के रामायण के लेखक डॉ मन्नूलाल यदु ने कोसीर पहुॅचकर गांव को घूमे और बैठक लेकर बताये कि कोसीर का जिक्र वाल्मिकी रामायण में है। कोसीर का पौराणीक नाम कुशावती है श्री राम भगवान कौशल क्षेत्र में वन गमन किया था तब राज किये थे राम भगवान के पुत्र कुश की नई राजधानी कोसीर रहा है यहॉ कुश ने राज किया है।
राम के पुत्र कुश की नई राजधानी है, कोसीर –  साहित्यकार   स्व डॉ. मन्नू लाल यदू
कोसीर का पौराणिक नाम कुशावती है, जिसका जिक्र वाल्मिकी रामायण में और श्रीमद् भागवत् में मिलती है।  10मार्च 2012 को
    छत्तीसगढ़ की रामायण के लेखक मंडल श्री डॉ. मन्नू लाल यदू, श्याम बैस राधाकृष्ण गुप्ता, डॉ. हेमु यदू एवं सहयोगी पांचजन्य
यदू कोसीर गांव पहुंचे और ग्राम कोसीर में स्थित मॉं कोशलेश्वरी देवी की प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर का दर्शन कर अवलोकन किये
तथा गांव को घूमे अवलोकन पश्चात् मंदिर प्रांगण में ग्रामीणों के साथ बैठक किये और वार्तालाप हुई। कार्यक्रम में परिचय सम्मेलन
हुई, रायपुर से पहुंचे डॉ. मन्नूलाल यदू जी और उनके टीम नें कोसीर के इतिहास को जानना चाहा और गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों नें
कोसीर के इतिहास को अवगत कराया, डॉ. मन्नूलाल यदू नें कहा हमें कोसीर आनें का विशेष बात है, वह वाल्मिकी रामायण से
हुई, वाल्मिकी रामायण में कोसीर का पौराणिक नाम कुशावती है, और इस अंचल में राम का राज्य रहा है, यही नहीं इस कौशल
क्षेत्र में श्रीराम वन गमन किये थे।
          तब राज किया था, और यह कुश की नई राजधानी है, यही इस गांव की इतिहास है, पर लिखना हमारा काम है
खोजना हमारा काम है पढ़ना हमारा काम है किन्तु हम धन नहीं लगा सकते, इस तथ्य को सामने लाने के लिए प्रचार की
आवश्यकता है, आप लोग आगे आइए कोसीर में हमें जो वाल्मिकी रामायण में अध्ययन किये हैं वो बात झलक रही है, क्योंकि यह
गांव नदी किनारे बसा है, मंदिर भी ऐतिहासिक है, और आप लोगों ने जो जानकारी हमें दी है उससे तथ्य सामने आई है, कि यहॉं
राम के पुत्र कुश का सम्राज्य रहा है, पर आप लोगों को आगे आना पड़ेगा हम इतिहास को शोध परख लिखते हैं, ।
*इतिहास के आईने में मॉ
* कौशलेश्वरी देवी – एक अपूर्व आकर्षक ,आध्यात्मिक वातावरण जहॉ भेद विभेद भौतिक जगत से परे सिद्धिदात्री के रूप में विराजमान मॉ कौशलेश्वरी देवी का एक अलौकिक संसार है और वह है ऐतिहासिक नगरी कोसीर छत्तीसगढ के रायगढ जिला के वर्तमान में नव सृजित जिला सारंगढ़ – बिलाईगढ़ के गांव कोसीर चित्रोत्पल्ला महानदी के पावन तट पर स्थित है प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण कोसीर प्राचीन संस्कृति व इतिहास का मूक साक्षी है। जगत जननी मॉ कौशलेश्वरी की अपूर्व छवि एवं अनंत शक्ति पर भारतीय मनीषा आधारित है। अनंत सौन्दर्य और विपुल उर्जा के प्रतीक ढुकुलिया तालाब के उपर यह मंदिर स्थित है। जीवन के संघर्ष में सदैव मातृकृपा से विजय श्री ही हाथ लगती है इस भाव के सम्बल को लेकर भारतीय मानस ने अनेक मातृ उपासना केन्द्रों का निर्माण किया जिसमें चन्द्रपुर की मां चन्द्रहासिनी का धाम कोरबा की सर्वमंगला ,मल्हार की डिंडनेश्वरी डोंगरगढ बम्बलेश्वरी सारंगढ समलाई रायगढ बूढीमाई कोसीर की मां कुशलाई दाई(कौशलेश्वरी देवी )का मंदिर अलौकिक स्थान हैं जहां मॉ की पूजा अर्चना के लिये दूर दराज से लोग आते हैं और अपने को धन्य मानते हैं।
मंदिर का इतिहास -ग्राम कोसीर पुरातत्विक महत्व की सामग्री से युक्त प्राचीन वैभवशाली सांस्कृतिक भूमी का एक अप्रमित व अछूता सा अध्ययन है। यहां लगभग 11वीं शताब्दी की कल्चुरी कालीन सभ्यता के अवशेष पर्याप्त मात्रा में सुदूर क्षेत्र में फॅसे हुये है। ग्राम का मध्य भाग उभरे टीले की तरह है। जिसके चारों ओर प्राचीन समय में खाइयॉ रही होगी जो अब छोटे छोटे तालाब के रूप में शेष रह गई है।                                                                       स्थानीय लोगों के बीच रंगसगरा तालाब ,रंजीता मैदान ,अर्थात पुराने रजवाडों से संबंधित रण का सागर और रण अर्थात युद्ध की विजय है।ये स्थल युद्ध स्मारकों का बोध कराते हैं। इसके पश्चात मडफोड जैसे सामान्य अवशेष दृष्टिगोचर होते हैं। समय समय पर इन तालाबों में हड्डियों के अवशेषों से ग्रामीणों द्वारा मिट्टी उत्खनन के समय विभिन्न प्रकार की छोटी बडी मूर्तियॉ प्राप्त होती रहती है।प्रमुख मूर्ति प्राचीन लाल व भारी बडी पत्थरों के नींव पर आधारित मॉ कौशलेश्वरी का मंदिर है यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी देवी की है इसकी विशेषता है कि इसमें देवी असुर का वध कर रही है। जो मध्य में है जिसके नीचे देवी का वाहन सिंह खडा मां के पैरों से जुडा हुआ है। देवी की मूर्ति सम्पूर्ण श्रृंगारिक है।इसमें उन्हें त्रिशूल धारण किये हुये दर्शाया गया है।
कलात्मकता की दृष्टि से देवी की मूर्ति के समीप ही अव्यवस्थित पत्थर का चौकोर स्तंभ लगभग 10फिट उॅचा है आसन के समान चार पैरयुक्त मढिया,दिवारों के पत्थरों पर बनी पद्म सदृश्य फूलों की आकृतियॉ मंदिर के दरवाजे के पास कडियो की श्रृंखला के समान नक्काशी प्राचीन काल की वास्तुकलाप्रियता को अभिव्यक्त करते हैं।मंदिर के अवशेष के रूप में प्राचीन नींव आज भी आयताकार भारी पत्थरों से निर्मित है। सम्पूर्ण ग्राम में इस प्रकार के पत्थर स्तंभ के टुकडे ,खण्डित मूर्तियॉ यत्र तत्र बिखरे पडे हैं।
मंदिर में देवी की पूजा – मंदिर में देवी की पूजा -पाठ शुरू से ही आदिवासी बैगा परिवार करते आ रहे है और आज तक उन्ही के द्वारा किया जा रहा है मां कौशलेश्वरी देवी को ग्राम्य देवी के रूप में पूजे जातें है । मंदिर में जो भी चढावा होती है बैगा परिवार रखते है ।
बली प्रथा – मां के आंगन में कुशलमुडिया देव का सर कटा मूर्ति है जहां पर भक्त अपनी मन्नत पुरी होने पर बकरा का बली देते हैं पहले भैंसा की बली चढती थी पर वर्तमान में बंद कर दिया गया है । कुंवार और चैत नवरात्री को नवमी के दिन गांव के नाम से 03 बकरे की बली चढती है जिसे प्रसाद के रूप में सभी वर्ग ग्रहण करते है ।
देवी की महिमा – ग्रामीण देवी मां के महिमा के बारे में कहते है नवरात्र पर्व पर मां का स्वरूप 9 दिन तक अलग अलग रूप में दिखाई देता है बुजुर्ग ग्रामीण कहते हैं कुंवारी कन्या उपवास रह कर पूजा करती हैं तो इच्छित वर की प्राप्ती होती है उपासक सुबह शाम मंदिर पहुच कर पूजा अर्चना करते हैं।
ढुकुलिया तालाब -ढुकुलिया तालाब के विषय में किवंदति है कि देवी मां इस तालाब में स्नान करती है इस कारण आज तक इस तालाब में कोई ग्रामीण स्नान नही करते हैं इस तालाब को पवित्र मानतें यह तालाब मंदिर से सटा हुआ है ।
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