
लेन -देन व दलाली की मंडी बन गया राजस्व विभाग, भ्रष्टाचार के विरुद्ध छेड़ना होगा जनांदोलन…… “अधिवक्ता-नागरिक संघर्ष मोर्चा” का गठन समय की मांग
रायगढ़ । एक अधिवक्ता और तहसीलदार के बीच की लड़ाई ने राजस्व विभाग में फैले हुए बेइंतहा भ्रष्टाचार को जनचर्चा के केंद्र में ला दिया है ।यूं तो आम जनजीवन का कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार के कोढ़ से अछूता नही है लेकिन विगत कुछ वर्षों में हमारे राजस्व विभाग में जो भर्राशाही व अंधी लूट मची हुई है उसने पूरी शासकीय मशीनरी के प्रति आम जनता में गहरा अविश्वास भर दिया है । स्थिति की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि जिस अधिवक्ता वर्ग से आम लोग न्याय दिलवाने की उम्मीद रखते हैं वह अधिवक्ता वर्ग स्वयं ही राजस्व अधिकारियों की निरंकुशता से हताश व उद्वेलित है । उनकी यही बेचैनी मौजूदा विवाद का लावा बनकर फूट पड़ी है ।
दरअसल 1990 के बाद इस अंचल में हुए मनमाना औद्योगिकरण से जमीनों की कीमतों में भारी उछाल आया । इस उछाल ने जमीनों की लूट-खसोट के एक विकृत अध्याय को जन्म दिया । भ्रष्ट राजनैतिक तंत्र ने विकास के नाम पर जमीन अधिग्रहण व जमीन खरीद-फरोख्त के कायदे-कानूनों में भी इच्छित फेरबदल किये तथा इस भारी लूट को कई तरह से वैध व कानून सम्मत बना दिया । इससे उद्योगपतियों व रियल स्टेट के खिलाड़ियों के पौ-बारह हो गए । देखते ही देखते भ्रष्ट शासकीय अधिकारियों , राजनेताओं , उद्योगपतियों , कॉलोनाइजरों व जमीन दलालों ने आपसी सांठ-गांठ करके एक समानांतर तंत्र खड़ा कर लिया । फिर पैसे व पावर के दम पर औने-पौने में जमीन हथियाने का जो कुचक्र आरम्भ हुआ उसने पूरे राजस्व विभाग व कलेक्टोरेट को लेन-देन की मंडी में तब्दील कर दिया । जमीन के इस खेल में पटवारी से लेकर तहसीलदार , नजूल अधिकारी व जिले के मुखिया तक रातों-रात लाखों करोड़ों में खेलने लगे । बड़े जनप्रतिनिधि , छुटभैया नेता , बाहुबली दादा , लंपट युवा वर्ग व मीडिया कर्मी सभी कपड़े उतारकर इस हमाम के कूद पड़े । गली-गली में महिला-पुरुष जमीन दलाल बन गए । जहां- कहीं खाली जमीन या मकान दिखता है , इनक्वारी हेतु अनचाहे फोन घनघनाने लगते हैं ।भ्रष्ट तंत्र ने अब भयावह रूप ले लिया है ।
प्रशासनिक भ्रष्टाचार के बीज बड़े अफसरों को प्राप्त असीमित अधिकारों वाले प्रशासनिक ढांचे में ही मौजूद हैं । इधर कुछ वर्षों से मालदार पदों पर पदस्थापना हेतु मोटी बोलियां लगाने का जो चलन आरम्भ हुआ है , उसने भ्रष्ट तंत्र को एक नया आयाम दिया है । आम लोगों में इस बात की गर्म चर्चा है कि मौजूदा सरकार में इच्छित पदस्थापना के रेट इस क़दर बढ़ गए हैं कि लगभग पूरा प्रशासनिक ढांचा ही बिकाऊ बन गया है । जाहिर है कि जब पदस्थापनाएँ इस तरह से होंगी तो बेखौफ अधिकारियों का बेलगाम होना और प्रशासनिक ढांचे में अराजकता का बढ़ जाना अस्वाभाविक नही रह जाता है । रायगढ़ में घटित घटना के मूल में भी यही कारण सामने आए हैं ।
इस घटना में तात्कालिक आवेगवश हुई झूमाझटकी ने यद्यपि पूरे मामले को दो प्रभावशाली संगठनों के बीच नाक की लड़ाई में बदल दिया है तथापि पूरे प्रकरण को इस सीमित दायरे में देखना संकीर्ण नज़रिया होगा । वास्तव में इसे उच्च प्रशासनिक ढांचे में व्याप्त भ्रष्टाचार व शोषण के मौजूदा तंत्र के एक आयाम के रूप में देखना चाहिए । रोज-रोज प्रशासनिक भ्रष्टाचार के शिकार हो रहे आम लोगों को यह समझना होगा कि अधिवक्ताओं ने जो मोर्चा खोला है वह केवल वकीलों की नहीं बल्कि आम जनता की अपनी लड़ाई भी है जो एक अप्रिय घटना के कारण इत्तिफ़ाक़ से अधिवक्ताओं के हिस्से में आ गई है । इस अवसर को भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र के विरूद्ध एक निर्णायक लड़ाई में बदलना नागरिकों के जागरूक तबक़े की जिम्मेदारी है । अधिवक्ता संघ को भी चाहिए कि वो समाज के सभी वर्गों को साथ मे लेकर एक ” अधिवक्ता-नागरिक संघर्ष मोर्चा ” का गठन करे और भ्रष्टाचार के विरूद्ध बड़ा जनांदोलन खड़ा करके आर-पार की लड़ाई लड़े । विपक्ष को भी चाहिए कि थोथी बयान-बाज़ी करके आग सेंकने की बजाय दमदारी के साथ सामने आकर भ्रष्ट प्रशासनिक तंत्र के साथ दो-दो हाथ करने का माद्दा दिखाए ।
दिनेश मिश्र