वन विभाग की कार्यप्रणाली उठ रहे सवाल – नन्हा हाथी शावक की फिर गई जान

लगातार हो रही हाथियों के मौत का जिम्मेदार कौन – सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर कार्रवाई की गाज क्यों ?

वन विभाग के अधिकारियों पर कब होगी कार्रवाई

आखिर कब तक वन विभाग अपनी खामियां छुपाते रहेगी

घरघोड़ा उप वनमंडल जंगली जानवरों के मौत का कब्रगाह अधिकारी कर्मचारी वेतन से भोग रहे सिर्फ रेवड़ी, लगातार हो रहे मानव हाथी के द्वंद से आमजन में वन विभाग के खिलाफ आक्रोश, घरघोड़ा उप वनमंडल एसडीओ रेंजर उप रेंजर की कार्यप्रणालियों पर लगातार सवाल खड़े हो रही है, फिर भी विभाग बना मुख दर्शक आखिर इतने मौत का जिम्मेदार कौन है, क्यों नहीं होता कोई कार्रवाई तमाम सवालों से घिरा वन विभाग के कान में जूं तक नहीं रेंगती।

वन मंत्री मोहम्मद अकबर लें संज्ञान – सोनू सिदार

क्षेत्र के आदिवासी युवा नेता सोनू सिदार ने वन विभाग के घोर लापरवाही को लेकर निंदा करते हुए वन मंत्री के नाम पाती लिखा है जिसमें वन परिक्षेत्र में हो रहे लगातार हाथीयों के बारे में उल्लेख करते हुए लिखा है घरघोड़ा वन उप वनमंडल पुरी तरह निष्फल निष्क्रिय साबित हो रही है, मानव व जानवरों की मौत का जिम्मेदार आखिर वन विभाग को लेना चाहिए, वन विभाग की कार्य सिर्फ पैसे कामना रह गया है, वन संपदा को बेच कर पैसे बनाने वाले कर्मचारियों के उपर कार्रवाई होना चाहिए, आज की स्थिति में जंगल पुरी तरह से नष्ट हो चुकी है जानवरों का आशियाना बर्बाद होने का श्रेय वन विभाग को जाता है, जानवर भूख प्यास से गांव शहरों की ओर आ रहे इसकी भी खबर वन रक्षक बिट गार्ड को नहीं रहती जिसके कारण आज असमय हाथीयों की मौत से हाथी विलिप्त के कगार में पहुंच चुके हैं इस ओर मुख्यमंत्री व वन मंत्री को ध्यान देकर संज्ञान में लेना चाहिए।

घरघोड़ा वन परिक्षेत्र में लगातार हाथियों की मौत की खबर के लगातार मामले सामने आ रहे है। वही आज फीर से आज घरघोड़ा वन परिक्षेत्र के कुडुमकेला वन परिक्षेत्र के पास ग्राम पुसलदा में एक किसान के गन्ना बाड़ी में हाथी का नन्हा शावक मृत पाया गया। वन विभाग के अधिकारियों से कभी भी कोई जानकारी सहज रूप से नहीं मिलता है, आखिर संविधान के चौथे स्तम्भ से पत्रकारों से वन विभाग हमेशा दुरी बना कर क्या छुपाना चाहते रहते, व्यवहार में हमेशा चोर की दाढ़ी में तिनका जैसे छुपाने में लगी रहती हैं। आज के मामले में सिर्फ हाथी के शावक की मौत करेंट लगने से होना बताया गया है, जबकि इस क्षेत्र में हाथियों का विचरण हो रही इसकी जानकारी विभाग नहीं था ना ही ग्रामीणों को, सवालों से बचते हुए जो सूचना मिला है वह विभाग की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाती है, आखिर शावक बिना झुंड के गांव में नहीं आया होगा, हाथीयों का झुंड आसपास के क्षेत्र में किस स्थान पर है इसकी भी जानकारी वन विभाग को नहीं है, लापरवाही गंभीर रूप से सामने आ रही है, निर्दोष हाथीयों की मौत लगातार हो रही है, वनों के पहरेदारों की कार्यप्रणाली सिर्फ आफिसों व घरों तक सिमट चुका है, अपने आलिशान घरों में रहकर ही वनों की रक्षा करने वाले अधिकारी कर्मचारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं होता? वनरक्षक बिट गार्ड का निवास उसके कार्यक्षेत्र में रहता है, नियमों का खुला उल्लंघन करते बिट गार्ड वन रक्षक क्षेत्र से बाहर रहते हैं, कहां से वनों की रक्षक संभव हो पायेगा, वनों की हर छोटी-बड़ी जानवरों की जवाबदेही वन विभाग की उसके बाद भी हाथी जैसे विशालकाय जानवर जो विलुप्ति के कगार में है, करोड़ों रुपए खर्च सिर्फ हाथी के नाम पर सरकार कर रही है, जिसका परिणाम देखने में हाथियों की मौत ही नजर आ रही है, सरकार व वन विभाग के पास इसका कोई जवाब नहीं है, वन्य जीवों की असमय मौत हो रही है इसकी जिम्मेदारी किसी को लेना ही होगा, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग एवं वन्य जीव संस्थान भारत सरकार को वन्य जीवों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है, विभाग आयोग व समाजिक कार्यकर्ता वन्य जीवों के संरक्षकों आवाज उठाने की आवश्यकता है, इस तरह के ज्वलनशील विषय में अपना रूख़ स्पष्ट करना चाहिए।

हर साल शासन प्रशासन द्वारा 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस मनाया जाना बेमानी है।

भारत सरकार व राज्य सरकार हर साल विश्व हाथी दिवस के रूप मनाती है, जिसमें हाथीयों के लिए बड़ी बड़ी भाषण बाजी होती है, जमिनी हकीकत इससे कोसो दुर दिखाई देती है, जबकि एशियाई हाथियों को संकटग्रस्त प्रजातियों की आईयूसीएन की रेड लिस्ट में विलुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम,1972 भारत सरकार ने सन् 1972 ई॰ में इस उद्देश्य से पारित किया था, इसे सन् 2003 ई॰ में संशोधित कर इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम 2002 रखा गया जिसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। इस अधिनियम में जंगली जानवरों को विशेष रूप से सुरक्षा प्रदान कर आवश्यक देख रेख कर वन्य जीवों का संरक्षण करना है।

रायगढ़ जिले में कब बनेगा हाथियों के रिजर्व वन्य क्षेत्र

लिहाजा राज्य सरजकार ने 2005 में एलिफेंट कॉरिडोर के निर्माण के लिए विधान सभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा. PA शासन काल में 2007 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंर्तालय ने इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी. केंद्र सरकार ने 2010 तक इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के निर्देश भी दे दिए थे. लेकिन GSI और CMPDI की रिपोर्ट ने एलिफेंट कॉरिडोर के निर्माण की योजना को ठप्प कर दिया. 2010 के बाद से यह परियोजना सिर्फ कागज़ों में सिमट कर रह गयी है. जबकि कोल आवंटन के मामले दिन दुगनी और रात चौगुनी प्रगति हो रही है।

रिज़र्व क्षेत्र को कम करने का कारण सिर्फ कोल माइंस है

रिज़र्व के अंतर्गत प्रस्तावित क्षेत्र हसदेव अरण्य जंगलों का हिस्सा है, साथ ही यह एक अधिक विविधतापूर्ण बायोज़ोन है जो कोयले के भंडार में भी समृद्ध है।
इस क्षेत्र के 22 कोयला खदानों ब्लॉकों में से 7 को पहले ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि तीन में उत्खनन कार्य जारी है तथा अन्य चार में उत्खनन की प्रक्रिया की दिशा में कार्यरत हैं। आरक्षित क्षेत्र को विस्तारित करने में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी। यहीं हाल रायगढ़ जिले का है जहां उद्योग खदानों को प्रथामिकता तो मिल रही है राजस्व आय बढ़ाने में, परन्तु मानव पशु जानवरों की चिंता सरकार को नहीं है आखिर कब तक जिले में मानव हाथी के बीच संघर्ष में जान जाती रहेगी, हाथी हमारे पर्यावरण हितों में अंतिम विशालकाय जानवर है, जो शाय़द आने वाली पीढ़ी सिर्फ कहानी किताबों से ही जान पायेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button