
इस वर्ष दिवाली का पावन पर्व सोमवार, 2025 को पूरे देश में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। दीपों का यह त्योहार न केवल रोशनी का प्रतीक है, बल्कि यह धन, समृद्धि और नए आरंभ का संदेश भी देता है।
मान्यता है कि भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद जब वे अयोध्या लौटे थे, तब नगरवासियों ने तेल के दीयों से पूरी अयोध्या नगरी को आलोकित किया था। तभी से इस दिन को “दीपोत्सव” या “दिवाली” के रूप में मनाया जाता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली की रात लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा साथ क्यों की जाती है? इसके पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक कारण छिपा है।
पुराणों के अनुसार, मां लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। वे धन, वैभव और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां लक्ष्मी ने धन के देवता कुबेर को अपना खजांची बनाया था, लेकिन वे धन को संचित करने में अधिक रुचि रखते थे, न कि उसके सदुपयोग में। तब भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि और विवेक से धन के सही उपयोग और वितरण का मार्ग दिखाया।
इसी कारण गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और मां लक्ष्मी के धन का रक्षक माना जाता है। कहा जाता है कि जहां गणेश जी का वास होता है, वहां लक्ष्मी स्वयं उपस्थित होती हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां लक्ष्मी ने वरदान दिया था कि जब भी वे भगवान विष्णु के साथ न होंगी, तब वे गणेश जी के साथ पूजित होंगी। यही कारण है कि दिवाली की रात लक्ष्मी-गणेश पूजा का विशेष महत्व होता है।














