हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन की कार्यवाही पर लगाई रोक धान शार्टेज में खुद की गलतियां छुपाकर छोटे कर्मचारियों पर कार्यवाही से जुड़ा मामला

भूपेंद्र गोस्वामी आपकी आवाज

गरियाबंद -: हाईकोर्ट ने धान शॉर्टेज वसूली मामले में गरियाबंद जिले की तेतलखुंटी और गोहरापदर समिति को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने दोनों समितियों के खिलाफ जिला प्रशासन द्वारा की जा रही दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है। बिलासपुर हाईकोर्ट ने मामले में स्टे ऑर्डर जारी कर दिया है। कोर्ट ने स्टे ऑर्डर के लिए जिन तथ्यों को आधार माना है उनमें छत्तीसगढ़ शासन और जिला प्रशासन की लापरवाही महत्वपूर्ण है।

बतादें कि इस वर्ष जिले की 82 समितियों में से 43 समितियों में समर्थन मूल्य पर खरीदी गई धान में 22 हजार क्विंटल की शॉर्टेज आयी है। इनमें से ज्यादा समितियां मैनपुर और देवभोग क्षेत्र की है जहां भारी पैमाने पर शॉर्टेज हुई है। जिला प्रशासन ने इन समितियों से शॉर्टेज की वसूली की प्रक्रिया शुरू कर दी है। तेतलखुंटी और गोहरापदर समिति पदाधिकारियों के खिलाफ तो वसूली की रकम जमा नही करने पर जिला प्रशासन ने एफआईआर और कुर्की के आदेश तक जारी कर दिए है।
दोनों समितियों ने खुद पर नाइंसाफी का हवाला देते हुए अधिवक्ता अजिनेश अजय शुक्ला के माध्यम से हाईकोर्ट में न्याय की गुहार लगाई थी। दोनों समितियों ने धान में शॉर्टेज की वजह प्रशासन की गलत नीतियों को बताया गया है। अधिवक्ता शुक्ला ने हाईकार्ट को बताया कि जब गलतियां जिला प्रशासन से हुई है तो फिर सजा समिति कर्मचारियों को क्यों दी जा रही है। हाईकोर्ट ने पीड़ित पक्ष के वकील की दलीलों को गंभीरता से लिया और जिला प्रशासन द्वारा की जा रही बलपूर्वक एव दंडात्मक कार्यवाही पर रोक लगाते हुए मामले में स्टे ऑर्डर जारी कर दिया है।

“ताजा खबर” भी धान शॉर्टेज में जिला प्रशासन की लापरवाही से जुड़े इन तथ्यों को पहले ही उठा चुका है। ताजा खबर ने बताया था जिले में करोड़ो रूपये की धान शॉर्टेज के लिए जिला प्रशासन की नीतियां जिम्मेदार है। समितियों से धान का उठाव सही समय पर नही होना और समितियों में धर्मकांटा की व्यवस्था नही होना शॉर्टेज का सबसे प्रमुख कारण है। जिसकी व्यवस्था करना जिला प्रशासन की जिम्मेदारी है।

यदि जिला प्रशासन ने समितियों से समय पर धान का उठाव किया होता और समितियों में लगे धर्मकांटे से वजन करने के बाद परिवहन की अनुमति दी होती एवं जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त नोडल अधिकारियों ने ईमानदारी से काम किया होता तो शायद आज करोड़ो रूपये की शॉर्टेज का मामला सामने ना आया होता। वैसे मैनपुर और देवभोग क्षेत्र की समितियों में शॉर्टेज का मामला कोई पहली बार सामने नही आया है। बल्कि हर साल इस तरह की स्थिति निर्मित होने के बाद भी जिला प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया, यह सबसे बड़ी विडंवना की बात है।

अब मामला हाईकोर्ट में है। जिले में शॉर्टेज वसूली की मार झेल रही कुछ ओर समितियां भी अब जल्द हाईकोर्ट की शरण मे जाने की तैयारी कर रही है। उम्मीद है कि कोर्ट में जवाबदेही भी तय होगी और असली दोषियों पर कार्रवाई भी होगी। उम्मीद इस बात की भी की जानी चाहिए कि जिला प्रशासन अपनी जवाबदेही तय करे और जिन कारणों से धान शॉर्टेज होती है उन्हें खोजकर उनका निराकरण करें।

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