क्यों होते हैं सुकमा जैसे हादसे, जवानों से जुड़ी रिपोर्ट बयां करती है सबकुछ

रायपुर. छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सोमवार तड़के सीआरपीएफ के जवान रितेश रंजन ने साथियों पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं और तीन जवानों की जान ले ली. ये कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि ये उस तनाव को दर्शा रही है जो जवानों को तन-मन से कमजोर कर रही है. इतना कमजोर कि कदम उठाने से पहले वो सही-गलत का भी नहीं सोच पा रहे. नक्सल ड्यूटी में लगे हमारे जवान काम के दबाव, अकेलेपन और परिवार से महीनों तक दूर रहने की वजह से गलत कदम उठा रहे हैं. इसके अलावा शराब और नशे की लत भी एक कारण है. जानकार बताते हैं कि तनाव के चलते जवान हत्या के साथ-साथ आत्महत्या भी बड़ी संख्या में कर रहे हैं.

 

इस घटना मद्देनजर सुकमा एसपी सुनील शर्मा का बयान महत्वपूर्ण और गौर करने लायक है. उन्होंने कहा – ‘हम बार-बार जवानों से मिलते हैं, काउंसलिंग करते है, कल्चरल प्रोग्राम्स करते हैं. हमने हाल ही में फिल्म दिखाई, स्पोर्ट्स इवेंट कराए.’ इस बात का सीधा सा अर्थ है कि ये सबकुछ होने के बावजूद भी जवानों का मानसिक तनाव कम नहीं हो रहा. शर्मा ने ये भी कहा – ‘जवानों के बीच हंसी-मजाक चलता रहता है. लगता है आरोपी (रितेश रंजन) ने किसी मजाक की बात को गंभीरता से ले लिया. उन्होंने बताया कि हम जवानों के लिए ब्रेन मैपिंग का कार्यक्रम करते हैं. साइकोलॉजिस्ट, हेल्थ एक्सपर्ट्स आते हैं और जवानों का टेस्ट करते हैं. सीआरपीएफ भी इस तरह के कार्यक्रम करती है. लेकिन, किसी के मन में क्या चल रहा है वो हम नहीं कह सकते.’

वर्ष 2016-2018 के बीच हर साल मारे गए 100 जवान

सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2016-2018 के बीच केंद्रीय सशस्‍त्र बल (सीएपीएफ) के 100 जवान हर साल  या तो आपसी गोलीबारी में मारे गए या उन्‍होंने आत्‍महत्‍या जैसा कदम उठाया. हर साल 66 जवान ड्यूटी निभाते हुए शहीद होते हैं. ये घटनाएं मानसिक तनाव की वजह से बढ़ रही हैं. जानकार बताते हैं कि वर्ष 2016 में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले 70 फीसदी जवान छत्‍तीसगढ़ में ही  तैनात थे. ये जवान काम के तनाव, लंबे समय तक परिवार से दूरी, जोखिम भरे इलाकों में तैनाती को झेल रहे थे. इनके अलावा इनकी घरेलू समस्‍याओं ने भी इन्हें मानसिक कमजोर बनाया.

 

2007-2017 के बीच 115 जवानों ने की आत्महत्या

 

नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ में तैनात सुरक्षा बल के जवान को नक्सलियों के साथ-साथ मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है. वर्ष 2018 में 36 जवानों ने आत्महत्या की. छत्तीसगढ़ में ऐसी भी कई घटनाएं हुईं जिनमें जवानों ने अपनी सर्विस रायफल या पिस्टल का इस्तेमाल दुश्मनों पर करने की बजाय खुद को खत्म करने में किया है. राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति के अनुसार सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की है. इनमें राज्य पुलिस के 76 तथा अर्धसैनिक बलों के 39 जवान शामिल है. इन आंकड़ो के बाद प्रदेश ने निर्णय था कि वो सुरक्षा बलों की काउंसिलिंग कराएंगे.

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