भारत से दूरी और चीन के प्यार ने श्रीलंका को कर दिया बर्बाद, ड्रैगन ने कर्ज के मकड़जाल में फंसाया

श्रीलंका की मौजूदा स्थिति के लिए उसकी गलत नीतियों से उपजी बदहाल आर्थिक स्थिति जिम्मेदार है। भारत से संतुलन बनाकर चीन पर ज्यादा भरोसा करना उसे भारी पड़ गया। श्रीलंका ने आईएमएफ की तुलना में चीन से कर्ज ज्यादा लिया। इससे वह कर्ज के जाल में उलझ गया। श्रीलंका का कर्ज उसकी जीडीपी का करीब 125% तक हो गया। उसकी मुद्रा का अवमूल्यन भी 75 फीसदी तक हुआ। समाधान के बजाय जनता को दबाने का प्रयास हुआ। यहा कहना है जेएनयू में दक्षिण एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर संजय कुमार भारद्वाज का।

प्रोफेसर भारद्वाज ने कहा, ”श्रीलंका ने कर्ज इतना ले लिया और जो निवेश किया वह लो रिटर्न प्रोजेक्ट में किया। इनका फॉरेन रिजर्व खत्म हो गया। पर्यटन बंद हो गया। भारत, यूरोप, ब्रिटेन से लोगों का आना बंद हो गया। रूस यूक्रेन से आने वाले लोग भी युद्ध की वजह से आना बंद हो गए। समस्याएं बढ़ती चली गईं। कोविड का भी असर हुआ। आर्गेनिक फार्मिंग की गलत नीति की वजह से उत्पादन खत्म हो गया। बेतहाशा महंगाई और संसाधनों की कमी के चलते लोगों का खाना पीना मुश्किल हो गया। आर्थिक संकट अंततः राजनीतिक संकट में तब्दील हो गया।”

पड़ोसी देशों के लिए भी सबक है श्रीलंका की स्थिति
उन्होंने कहा, ”पहली गाज महिंदा राजपक्षे पर गिरी। लेकिन जनता ने गोटबाया राजपक्षे को भी जिम्मेदार मानते हुए विद्रोह जारी रखा। विक्रमसिंघे को लेकर संतुलन की कोशिश कामयाब नहीं हुई। श्रीलंका की ताजा स्थिति अन्य पड़ोसी देशों के लिए सबक है। उन्हें भारत को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए। भारत ने श्रीलंका को करीब 3.5 बिलियन की सहायता दी है। अब और मदद करनी होगी। श्रीलंका में होने वाले पलायन का असर भी भारत पर पड़ेगा।”

दस साल में आधी से भी कम रह गई आर्थिक वृद्धि दर
श्रीलंका में आथिक संकट कोई एक-दो साल में नहीं आया है। वर्ष 2009 में श्रीलंका जब 26 वर्षों से जारी गृहयुद्ध से उभरा तो युद्ध के बाद की उसकी जीडीपी वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रति वर्ष 8-9% के उपयुक्त उच्च स्तर पर बनी रही थी। लेकिन वैश्विक कमोडिटी मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ वर्ष 2013 के बाद उसकी औसत जीडीपी वृद्ध दर काफी घट गई। 2022 में यह करीब 2.4 फीसदी रह गई।

वित्तीय संकट ने समाप्त किया विदेशी मुद्रा भंडार
गृहयुद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने उसके विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त कर दिया था, जिसके कारण देश को वर्ष 2009 में आईएमएफ से 2.6 बिलियन डॉलर का ऋण लेने के लिये विवश होना पड़ा था। वर्ष 2016 में श्रीलंका एक बार फिर 1.5 बिलियन डॉलर के ऋण के लिये आईएमएफ के पास पहुंचा, लेकिन शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक हालत को बदतर कर दिया।

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