
सात साल-सात निर्णय: इतिहास की बड़ी पहचानों-फैसलों को बदलने में लगी मोदी सरकार, इन घोषणाओं ने देशभर में मचाई हलचल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को एलान किया कि अब इंडिया गेट की खाली पड़ी जगह पर स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई जाएगी। एक दिन पहले भी केंद्र सरकार ने भारत के युद्ध इतिहास की एक बड़ी पहचान- ‘अमर जवान ज्योति’ के स्थान को बदलने का एलान किया था। जहां इतिहास से जुड़े कुछ चिह्नों को बदलने के लिए मोदी सरकार की तारीफ हो रही है, वहीं विपक्ष उनके कई फैसलों को राजनीतिक स्टंटबाजी करार दे रहा है।
इस बीच अमर उजाला आपको बता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सात साल के कार्यकाल में सरकार के वे कौन से बड़े फैसले हैं, जिन्हें इतिहास के लंबे समय से चले आ रहे प्रतीकों और फैसलों को बदलने से जोड़ा जा रहा है।
1. अनुच्छेद 370 पर लिया ऐतिहासिक फैसला
चौंकाने वाला पहला फैसला कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का रहा। भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे को
5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर दिया है। इसी दौरान जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्य के गठन का भी एलान किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया। हिंसा और बवाल की आशंका को देखते हुए जम्मू कश्मीर के कई नेताओं और अलगाववादियों को हिरासत में ले लिया गया। सरकार ने पूरे जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगा दिया। पीएम मोदी के इस फैसले की पूरी दुनिया में चर्चा हुई।
2. राम मंदिर निर्माण में तेजी
सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में विवादित रही राम जन्मभूमि के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाया। इससे अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया। पीएम मोदी की सरकार ने ही 150 साल पुराने इस मामले को सुलझाने के लिए 2019 में कोर्ट से नियमित सुनवाई का आग्रह किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने अंतिम सुनवाई के लिए 6 अगस्त से 16 अक्तूबर तक लगातार सुनवाई की। राम जन्मभूमि पर फैसला आने के बाद मोदी सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट बनाने में भी देरी नहीं दिखाई और तीन महीने में ट्रस्ट के सदस्यों के नाम का भी एलान हो गया। खुद पीएम मोदी राम मंदिर के भूमिपूजन कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
राम जन्मभूमि के इस मामले पर सुनवाई को राजनीतिक रंग भी दिया गया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद करने को कही थी। हालांकि, भाजपा नेताओं ने साफ कर दिया था कि उनकी सरकार राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की सुनवाई रोजाना कराना चाहती है और चुनाव से केस की सुनवाई पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
3. वॉर मेमोरियल का उद्घाटल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में इंडिया गेट के पास 40 एकड़ में बना नेशनल वॉर मेमोरियल राष्ट्र को समर्पित किया था। यह वॉर मेमोरियल उन जवानों के प्रति सम्मान का परिचायक रहा, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी। मेमोरियल को देश की रक्षा के लिए शहीद होने वाले वीर जवानों की याद में बनाया गया। हालांकि, मोदी सरकार के इस फैसले पर भी विवाद खड़ा हुआ। दरअसल, आलोचकों का कहना था कि जब देश में पहले से ही शहीद सैनिकों की याद में अमर जवान ज्योति मौजूद है, तो उन्हें याद करने के लिए सरकार राजधानी में एक और वॉर मेमोरियल बनाकर सैन्य इतिहास पर राजनीति शुरू कर रही है।
हालांकि, केंद्र ने साफ कर दिया था कि जहां अमर जवान ज्योति 1971 के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की याद में बनाया गया, वहीं वॉर मेमोरियल में उन सभी शहीदों के नाम शामिल थे, जिन्होंने आजाद भारत के लिए दुश्मनों से लोहा लिया था। वॉर मेमोरियल में 1962 के चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के साथ पाकिस्तान से हुए चार युद्धों में जान गंवाने वाले सैनिकों का नाम भी शामिल किया गया है।
छह भुजाओं (हेक्सागोन) वाले आकार में बने मेमोरियल के केंद्र में 15 मीटर ऊंचा स्मारक स्तंभ है। इस पर भित्ति चित्र, ग्राफिक पैनल, शहीदों के नाम और 21 परमवीर चक्र विजेताओं की मूर्ति बनाई गई है। स्मारक चार चक्रों पर केंद्रित है- अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र, रक्षक चक्र। इसमें थल सेना, वायुसेना और नौसेना के शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी गई है। शहीदों के नाम दीवार की ईंटों में उकेरे गए हैं। खास बात यह है कि स्मारक का निचला भाग अमर जवान ज्योति जैसा ही तैयार किया गया था।
5. अमर जवान ज्योति की जगह बदलना
अमर जवान ज्योति की लौ की जगह बदलकर उसे नेशनल वॉर मेमोरियल की लौ में मिलाने का कदम मोदी सरकार के बड़े फैसले के तौर पर देखा जा रहा है। 1971 के युद्ध में शहीद हुए भारत के 3843 सैनिकों की याद में इस स्मारक का निर्माण हुआ था और 26 जनवरी 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसका उद्घाटन किया था। तब से लेकर अब तक अमर जवान ज्योति लगातार इंडिया गेट के नीचे स्थित एक काले रंग के स्मारक पर जल रही थी।
हालांकि, एनडीए सरकार ने लौ की जगह बदलकर इसके वॉर मेमोरियल की लौ में विलय का एलान कर सभी को चौंका दिया। विपक्ष ने मोदी सरकार पर इतिहास के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस से लेकर राजद तक ने केंद्र सरकार पर अमर जवान ज्योति की अटल लौ को बुझाने का आरोप लगाया। विपक्ष के कई सांसदों ने इसे सैनिकों का अपमान तक करार दिया। हालांकि, मोदी सरकार ने अपने फैसले पर बढ़ते हुए 21 जनवरी 2022 को अमर जवान ज्योति की लौ का विलय पूरा किया।
6. स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों का सम्मान
2014 में लोकसभा चुनाव में जीत के बाद से ही भाजपा सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने वाले कई ऐसे नायकों का सम्मान शुरू किया है, जिनके बारे में देश की अधिकतर जनता अब तक अनभिज्ञ रही थी। मोदी सरकार ने इन गुमनाम स्वतंत्रता सेनानिए के सम्मान की प्रथा लगातार जारी रखी है और आजादी की 75 साल के मौके पर 75 हफ्तों का आजादी का अमृत महोत्सव मनाने का फैसला कर लिया। सरकार ने सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल जैसे बड़े नामों के साथ स्वतंत्रता संघर्ष में बड़ी भूमिका निभाने वाले वीर सावरकर, कोमारम भीम, छोटूराम, भगवान बिरसा मुंडा, राजा सुहेलदेव समेत कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर विशेष एलान किए हैं, जिनकी देशभर में चर्चा काफी कम रही थी।
इतना ही नहीं मोदी सरकार ने उन संघर्षों की कहानियों को भी देश के सामने उभारा है, जिनकी चर्चाएं काफी कम रही हैं। फिर चाहे वह कित्तूर आंदोलन हो त्रवनकोर आंदोलन, चंपारण सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह या संभलपुर आंदोलन। केंद्र सरकार ने इन सभी की स्वतंत्रता संघर्षों को भी विशेष दिन के तौर पर चिह्नित किया है।
7. इंडिया गेट पर सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति
पीएम मोदी के इस हालिया फैसले ने भी देशभर में हलचल मचाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद ट्वीट कर कहा कि इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति लगाई जाएगी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा कि ऐसे समय जब पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि ग्रेनाइट से बनी उनकी भव्य प्रतिमा इंडिया गेट पर स्थापित की जाएगी। यह उनके प्रति भारत के ऋणी होने का प्रतीक होगा।
पीएम ने आगे कहा कि जब तक नेताजी बोस की भव्य प्रतिमा पूरी नहीं हो जाती, तब तक उनकी होलोग्राम प्रतिमा उसी स्थान पर मौजूद रहेगी। मैं नेताजी की जयंती 23 जनवरी को होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण करूंगा। मजेदार बात यह है कि इंडिया गेट के सामने स्थित जिस छतरीनुमा ढांचे के नीचे बोस की प्रतिमा लगाई जाएग, वहां 1960 के दशक तक ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम की प्रतिमा हुआ करती थी। इस कैनोपी का निर्माण 1936 में जॉर्ज पंचम के सम्मान में ही हुआ था, हालांकि अब मोदी सरकार ब्रिटिश राज के प्रतीकों को बदलने की प्रथा को आगे बढ़ा रही है।