महाकाली
कालचक्र की गति हूँ मैं,
हाँ..! चंडी, दुर्गा और सती हूँ मैं ।
जिससे बुराई आज भी काँपती है,
हाँ..! वही महाकाली हूँ मैं ॥1॥
महाकाली विनाश और प्रलय की पूजनीय देवी हू मैं,
महाकाली सार्वभौमिक शक्ति,
समय, जीवन, मृत्यु, पुनर्जन्म
और मुक्ति की देवी हू मैं ॥2॥
मैं काल (समय) का भक्षण करती और
फिर अपनी काली निराकारता को फिर से शुरू कर देती हू ।
मैं महाकाल की पत्नी भी हू,
मैं शिव का ही एक रूप भी हू ॥3॥
मेरी जीभ तरस्ती गर्म खून के लिए बाहर लटकी है।
ग़र नारी का कोई सम्मान लूटे तो तीनों लोकों मे कोहराम मचती है ॥
मैं काली – मुंडमाल का हार पहनती हू, एक हाथ कटार तो दूजे हाथ खप्पर रखती हू,
रक्त बीज राक्षस का अपने कई हाथो से प्रहार करती हू ॥4॥
जब लगे महाकाली के जयकारे
शक्ति झुके – बादल बरसते है,
तेरी कृपा के लिए मइया
हम बालक तेरे तरसते है ॥5॥
|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीम परमेश्वरी कालिके स्वाहा ||
— शक्तिमान मिश्रा
केराकत जौनपुर