
- नरेश सोनी
- दुर्ग। हामीद खोखर… दुर्ग के लिए एक चिर-परिचित नाम, जिन्होंने कड़ी मेहनत से खुदी को इस कदर बुलंद किया कि उनके लिए सब कुछ सहज-सुलभ होता चला गया। हमउम्र जब स्कूल जाते, तब हामीद हाड़-तोड़ मेहनत किया करते थे, ताकि वे खुदी को बुलंद कर सकें। जो संघर्ष की चक्की में पिसता है, वह आगे चलकर निखरता है। कोयला पहले सोना और फिर कुंदन बनता है। दरअसल, तरक्की का रास्ता ही संघर्ष की सँकरी गलियों से होकर गुजरता है। हामीद ने मेहनत और समर्पण के बल पर संघर्ष की इन संकरी गलियों को बखूबी पार किया। आज उनकी पहचान सफल व्यवसायियों में होती है। लेकिन हामीद खोखर का परिचय बस इतना ही नहीं है। वे एक जननेता हैं, जिन्हें उनके क्षेत्र के लोग दिल से प्यार और दुलार करते हैं, दुआएं देते हैं। खुद हामीद अपने क्षेत्रवासियों के लिए जान निकालकर रखने को तैयार रहते हैं। वे यारों के यार भी हैं… एक जिंदादिल इनसान, जिनके पास दिल जीतने का बेहतरीन हुनर है।

इस कहानी की शुरूआत गरीबी से त्रस्त और परिवार की जिजीविषा के लिए संघर्ष करते व्यक्ति से होती है, जो परिवार की गाड़ी खींचने के लिए कंडक्टरी करते हैं। परिवार में पत्नी के अलावा ५ बच्चे हैं, जिनमें ३ लड़के और २ लड़कियां शामिल हैं। इन्हीं ५ बच्चों में एक हामीद भी है, जिसके लिए पिता की अथक मेहनत और परिवार की खस्ता माली हालत का दर्द असह्य है। पसीने से भीगी अपने पिता की कमीज उन्हें भीतर तक झकझोरती है। ऐसे ही वक्त वे तय करते हैं कि अब परिवार की गाड़ी खींचने के लिए एक पहिया बनना जरूरी है। दसवीं तक की पढ़ाई हुई है और हालात आगे की पढ़ाई की इजाजत नहीं दे रहे। हामीद तय करते हैं कि उन्हें काम करना है। दसवीं कक्षा का एक गरीब परिवार का बच्चा मेहनत को चुनता है। १०-१० घंटे की हाड़-तोड़ मेहनत करता है। कई सालों तक मजदूरी करने के बाद आखिर वह प्रण लेता है कि उसे खुद का व्यवसाय करना है, चाहे छोटा ही सही। …और हामीद खोखर का यह निर्णय उनके लिए क्रांतिकारी साबित होता है। छोटे स्तर पर प्रारम्भ किए गए उनके व्यवसाय ने आज उन्हें पूर्ण स्थायित्व दिया है। हामीद कहते हैं,- अब उनकी कोई ख्वाहिश नहीं है…। ऊपर वाले का हाथ उनके सिर पर जो है…। उनके ही शब्दों में,- अब वे दिन हवा हुए, जब पेट भरने के लिए संघर्ष करना पड़ता था। कई-कई दिन भूखो बिताने पड़ते थे….।
सन् २००९ की बात है। छत्तीसगढ़ की भाजपाई राजनीति में उथल-पुथल मची थी। दुर्ग के सांसद और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष ताराचंद साहू ने भाजपा से रूष्ट होकर छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का गठन किया था और अब श्री साहू के समर्थक नगर निगम चुनाव की तैयारियों में लगे थे। एक-एक वार्ड से जीतने योग्य प्रत्याशियों की तलाश की जा रही थी। यह वह वक्त भी था, जब युवा हामीद खोखर अपने व्यवसाय में स्थापित हो चुके थे। उनके कई पुराने मित्र और स्वाभिमान मंच से जुड़े लोग हामीद से मिलने उनके घर पहुंचे। तब तक उन्होंने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि वे राजनीति में पदार्पण करेंगे। इन मित्रों के जोर देने पर उन्होंने स्वाभिमान मंच के बैनर तले पार्षद चुनाव लडऩा स्वीकार किया। राजनीतिक अनुभवहीनता, शैक्षणिक योग्यता, भाषण कला में फक्कड़पन समेत कई ऐसी रूकावटें थी, जिन पर पार पाना आसान नहीं था। लेकिन कहावत है कि संघर्ष करने वालों को ही सफलता मिलती है। हामीद ने अपनी कमियों को दूर करने की हरसंभव कोशिश की और वे कामयाब भी हुए। २००९ के उस नगर निगम के चुनाव में वे पहली बार केलाबाड़ी वार्ड से पार्षद निर्वाचित हुए। लेकिन यह तो सिर्फ शुरूआत थी।
छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच जिस तेजी से राजनीतिक फलक पर उभरा था, २०१४ आते-आते अवसान तक भी पहुंच गया। अपने पहले कार्यकाल में वार्डवासियों के दुख-सुख का सहभागी रहने और वार्ड के कामों को बढ़-चढ़कर करवाने की वजह से हामीद खोखर को स्थानीय लोगों का अपार प्रेम मिला। ऐसे में जब स्वाभिमान मंच लगभग खत्म हो गया तो वार्डवासियों की दबाव में हामीद ने बतौर निर्दलीय चुनाव लडऩे का फैसला किया। हालांकि उन्होंने कांग्रेस पार्टी से टिकट मांगी थी। इस चुनाव में हामीद नगर निगम के इतिहास में सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले पार्षद बने। वे बताते हैं,- वह बड़ा ऐतिहासिक दिन था। ईद का मुबारक मौका था और रिकार्ड तोड़ जीत की खुशी भी थी।
लगातार दो चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस के जिम्मेदार लोगों को हामीद खोखर की कार्यप्रणाली और उनकी राजनीतिक क्षमताओं ने काफी प्रभावित किया। खुद दुर्ग के इतिहासपुरूष स्व. मोतीलाल वोरा ने विधायक अरूण वोरा की मौजूदगी में हामीद खोखर का कांग्रेस प्रवेश कराया। इस बार वे कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में थे। वार्डों का परिसीमन हो जाने की वजह से आधा वार्ड कट गया, बावजूद इसके तीसरी दफा हामीद ने तमाम कांग्रेस पार्षदों से ज्यादा वोट पाकर अपनी लोकप्रियता को एक बार फिर साबित किया। लगातार तीन चुनाव अलग-अलग दलों-गैरदलों से लड़कर जीतने वाले हामीद आज भी नागरिकों और क्षेत्र के छोटे-छोटे कामों के लिए जूझते दिख जाते हैं। वे कहते हैं,- उनके जीवन का उद्देश्य सिर्फ समाजसेवा है। ध्येय बिलकुल स्पष्ट है कि कोई भूखा-प्यासा न रहे। कोई गरीब इसलिए न मर जाए कि उनके पास इलाज के लिए रूपए नहीं है। कोई बच्चा पढ़ाई से इसलिए वंचित नहीं होना चाहिए कि उसके पास किताबों के लिए पैसे नहीं है। हामीद बताते हैं,- वे अपने स्तर पर सदैव प्रयास करते हैं कि लोगों के दुख-तकलीफ कम हो। लोगों के काम आता हूँ, तो लगता है कि जीवन सफल हो रहा है।
शहर के लोकप्रिय विधायक और वेयर हाउस कार्पोरेशन के अध्यक्ष अरूण वोरा की राय भी हामीद खोखर के बारे में कमोबेश ऐसी ही है। वोरा कहते हैं,- हामीद वास्तव में एक जननेता हैं। क्षेत्र में उनकी कैसी पैठ है, यह देखना हो तो उनके वार्ड में जाओ। वोरा के मुताबिक, हामीद ने यह मुकाम कड़ी मेहनत से हासिल किया है।
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