
90 साल की वृद्ध महिला जानवरों पर लुटाती हैं बेशुमार प्यार, यही है इनका परिवार
जीवन के 10 दशक देखने को बस 10 बरस ही बाकी हैं. ना आगे कोई, ना पीछे कोई, लेकिन ममता ऐसी की पशु खुद इस बूढ़ी मां की चौखट तक खाना खाने आ जाते हैं. अगर कहीं चौखट का दरवाजा बंद मिलता है तो खटखटाने भी लगते हैं. किसी के प्रति ऐसी ममता एक मां में ही देखी जा सकती है. मदर्स डे (Mother’s Day) पर एबीपी न्यूज आपको एक ऐसी ही मां के बारे में बता रहा है, जो अकेले रहकर आवारा पशुओं का पेट पाल रही हैं. 25 साल पहले पति का साया सिर से उठने के बाद से ये बूढ़ी मां (Mother) उन पशुओं के लिए मां हैं, जो आवारा पशु (Stray Animals) के तौर पर पहचाने जाते हैं.
बेजुबान जानवरों को मानती हैं औलाद
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के कोरिया (Koriya) जिले में मनेंद्रगढ़ बस स्टैंड रोड में रहने वाली दुवासिया बाई सोंधिया (Duvasia Bai Sondhia) का भरा पूरा परिवार था. शादी के बाद 2 बच्चे हुए एक लड़का और लड़की. पति मजदूरी कर घर चलाते थे. परिवार के सभी सदस्यों का साथ एक-एक कर छूटता गया. तब से ये महिला आवारा पशुओं को दिनभर में 3 से 4 बार खाना खिलाती हैं. दुवासिया के बेटे की मौत 18 साल की उम्र में हो गई थी वहीं बेटी भी गंभीर बीमारी से चल बसी. इसके बाद दुवासिया ने बेजुबान जानवरों को ही अपनी औलाद मान लिया.
घरों में काम करके कमाती हैं पैसे
उम्र के उस पड़ाव में जब लोगों को खुद सहारे की जरूरत पड़ती है, तब 90 साल की दुवासिया बाई बेजुबानों का सहारा बनी हुई हैं. दुवासिया बाई उम्र के इस पड़ाव में भी सेवा का पर्याय बनी हुई हैं. घर में किसी पुरुष के ना होने के कारण आजीविका के लिए दुवासिया बाई ने लोगों के घरों में बर्तन मांजना शुरू कर दिया और मेहनत की कमाई से वो रोजाना जानवरों के लिए चावल खरीद कर उन्हें खिलाती हैं. गरीबी रेखा में आने के कारण उन्हें प्रतिमाह सरकार की ओर से 35 किलो चावल मिलता है लेकिन वो भी इन्हें कम पड़ता है ऐसे में लोगों के घरों में बर्तन मांजने के बाद उन्हें जो रकम मिलती उससे और भी चावल खरीद कर जानवरों को खिलाती हैं.
बर्तनों में खिलाती हैं खाना
सुबह होते दुवासिया बाई के घर के सामने गायों और कुत्तों का जमावड़ा लगने लगता है और इनको भोजन देने के लिए दुवासिया बाई के घर में लगभग 8 से 10 ऐसे बर्तन है जिन्हें वे इसमें खाना रखकर जानवरों को खिलाती हैं.