
7 महीने 20 दिनों से रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है। यह युद्ध दोनों देशों के बीच 24 फरवरी 2022 को शुरू हुआ था। अभी तक रूस यूक्रेन पर पूरी तरह से फतेह हासिल नहीं कर सका। युद्ध में दोनों देशों को आर्थिक समस्याओं से भी जूझना पड़ रहा है।
वहीं यूक्रेन की हालत रूस से कहीं ज्यादा खस्ता है। दूसरी और दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध को देखते हुए यूके ने रूसी कच्चे तेल का आयात बंद कर दिया है। इसी बीच अब खबर यह भी है कि यूरोपीय संघ दिसंबर से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाएगा ताकि युद्ध के लिए क्रेमलिन के राजस्व को छीनने की कोशिश की जा सके।
दोनों देशों के बीच होने वाले घमासान को लेकर और मंदी की आशंका व विश्वयुद्ध की धमकियों के बीच पश्चिमी देश कच्चा तेल खरीदने के लिए नए विकल्प की तलाश कर रहे हैं। रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से यूरोपीय संघ ने इस देश से तेल खरीदना कम कर दिया है ताकि आर्थिक रूप से झटका दिया जा सके। वहीं कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले वाले दूसरे उत्पादक देश रूस से कच्चे तेल के जरिए राजस्व कमाने पर नजरे लगाए बैठे है। इन देशों में अमेरिका भी शामिल है। इसके साथ ही इस सेक्टर में रूस को असहाय करने की कवायद में रूसी कच्चे तेल के आयात में कमी लाना पश्चिमी देशों का सबसे बड़ा मकसद है।
पश्चिमी देशों ने भारत को चेताया था
पश्चिमी देश विश्व के अन्य देशों को भी रूस से कच्चा तेल न खरीदने की नसीहत दे चुके हैं। साथ ही पश्चिमी देशों ने रूस के साथ दोस्ताना संबंध रखने वाले भारत को भी चेताया था कि वह रूस से तेल न खरीदें। यूरोपीय देश रूस से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर हैं। दिसंबर में रूस पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रहा यूरोपीय संघ भी इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।
जहां से कच्चा तेल मिलेगा, वो वहां से खरीदेगा भारत
केंद्रीय तेल और प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक सप्ताह पहले ही कह दिया था कि भारत अपने नागिरकों की ऊर्जा जरूरत को पूरा करने के लिए उसे जहां से कच्चा तेल मिलेगा वो वहां से खरीदेगा। मंत्री पुरी के इस बयान के बाद खबरों के बीच आया था कि भारत पर रूस से कच्चा तेल न खरीदने का दवाब है। गौरतलब है पश्चिमी देशों ने रूस के यूक्रेन के हमले के बाद उससे तेल खरीदना बंद कर दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि रूसी कच्चे तेल के दाम गिर गए। इस सबके बीच रूस के तेल से आने वाले राजस्व चीन और भारत के भरोसे आता रहा। इसके वाबजूद कई देशों ने रूस के कम दामों पर कच्चा तेल खरीदना जारी रखा। इससे रूस की आर्थिक स्थिति और मजबूत होती गई।