अगर अब भी नहीं संभले तो ढूंढते रह जाएंगे चावल गेहूं…. वैज्ञानिकों ने दी वार्निंग
हम सब कभी न कभी ग्लोबल वार्मिंग शब्द से रूबरू हुए होंगे. पीएम मोदी वैश्विक स्तर पर इस खतरे से दुनिया को आगाह कर चुके हैं. 2021 में ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन हुआ था, जिसमें भारत ने कहा था कि वो साल 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा.
इसके मायने साफ थे कि दुनिया के तापमान में एक डिग्री की कमी लाई जा सके. अब क्लाइमेट साइंटिस्ट्स ने फिर से चेतावनी दी है कि अगर इसमें जल्द काम नहीं किया गया तो भारत को खाद्य संकट से जूझना पड़ सकता है.इस वॉर्निंग को आप हल्के में नहीं ले सकते क्योंकि पिछले साल जिस तरह से मौसम ने करवटें बदली हैं वो इसी ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से हुआ है.
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि भारत में चिलचिलाती गर्मी और पल-पल बदलते मौसम की घटनाओं के पीछे निश्चित रूप से ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग और मौसम विज्ञान संस्थान पुणे के वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि देश में हीटवेव के कारण पिछले साल की तुलना में इस साल 30 लाख टन गेहूं का उत्पादन कम हुआ है. इसकी प्रमुख वजह है मौसम का प्रतिकूल प्रभाव. ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम बार-बार अपना मिजाज बदल रहा है.
भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि की 18% हिस्सेदारी
आईआईटीएम के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा, “इन हीटवेव्स के पीछे एकमात्र कारण ग्लोबल वार्मिंग है. कोल ने सात दशकों के डेटा के माध्यम से निष्कर्ष निकाला कि हीटवेव की गंभीरता और आवृत्ति सीधे वार्मिंग ग्लोब से संबंधित थी. कई अध्ययनों के बाद अब भविष्यवाणी की है कि बारिश के पैटर्न में बड़े बदलाव, शुरुआती गर्मी में गर्म हवाएं देश के चावल और गेहूं के उत्पादन को खतरे में डाल सकती हैं.इसकी वजह से अनाज में कमी आ सकती है. दूसरा प्रभाव इसका ये है कि भारत में कृषि आधी आबादी को रोजगार देती है और भारत की अर्थव्यवस्था में 18% की हिस्सेदार है.
इस साल सबसे ज्यादा गर्म रहा मार्च
पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में गेहूं के उत्पादन में कमी के साथ भारत में इस साल रेकॉर्ड पर सबसे गर्म मार्च देखा गया. इसके कारण अनाज की घरेलू कीमतों में लगभग 20% की वृद्धि हुई. बढ़ने दामों के कारण सरकार को निर्यात पर रोक लगाना पड़ा. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी की 2022 रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि उत्पादकता में कमी के कारण 2030 तक कई भारतीयों को अकाल में डाल सकता है.
मॉनसून का समय बदलता जा रहा है
कोल ने हाल ही में किए गए एक ऐतिहासिक अध्ययन में हिंद महासागर के ऊपर बढ़ते तापमान, या महासागरीय गर्मी की लहरों का भी उल्लेख किया गया है. जो मॉनसून के सर्किल को बदल रहा है. 2022 दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बिगड़ी स्थिति के कारण बारिश काफी देर से हुई. इसकी वजह से चावल की बुवाई में चार फीसदी की कमी आई. सरकार ने संभावित कमी और उच्च अनाज मूल्य मुद्रास्फीति से निपटने के लिए विदेशी शिपमेंट पर प्रतिबंध लगा दिया.
हम आपको यहां पर ये समझाने की कोशिश करेंगे कि कैसे ग्लोबल वॉर्मिंग सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण तापमान में इजाफा होता जा रहा है और इसकी वजह से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है. एक गर्म क्लाइमेट में वायुमंडल अधिक पानी एकत्र कर सकता है और भयंकर बारिश हो सकती है. जब से पूरी दुनिया में औद्योगिक क्रांति हुई उसने अर्थव्यवस्था को तो सुधार दिया लेकिन वायुमंडर को खासा नुकसान पहुंचाया. 1880 के बाद से औसत वैश्विक तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. ग्लोबल वार्मिंग एक सतत प्रक्रिया है, वैज्ञानिकों को आशंका है कि 2035 तक औसत वैश्विक तापमान अतिरिक्त 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. इसी को रोकने के लिए दुनियाभर के नेताओं ने ग्लास्गो में शपथ ली थी.