छत्तीसगढ़लेख

कविता /नव वर्ष की पूर्व संध्या ….

कविता /नव वर्ष की पूर्व संध्या ….

कागजों की नाव में
मिट्टी की गुड़िया में
बचपन हंसते बीत गया
रेत पर घर बनाकर सिख ली कारीगरी
नहीं था कोई शिकवा -गीला किसी से
सुबह भी शाम भी चेहेरे में रहती थी मुस्कान
वह बचपन हंसते बीत गया
बच्चों को देख हंसते -खिलखिलाते बचपन याद आ गया
नव वर्ष की पूर्व संध्या
जीवन का मर्म सीखा गया
अतीत से सीख लिया हंसना
नव वर्ष की सुबह हो सभी की मंगल
आओ हर चेहेरे में देंखे अपने अतीत का हंसना
शपथ लें समाज के धरोहरों का करें श्रृंगार
नव वर्ष की बेला में सब हो मंगलमय
नव वर्ष की बधाई अशेष …
लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल,
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button