ग्रामीण प्रोद्धयोगिगकी एवं सामाजिक विकास कुलपति चक्रवाल के विचारों को दे रही नई गति

115 शिक्षणार्थियों के अध्ययन शुल्क का बना आधार
इकोफ्रेंडली हो रहा विश्वविद्यालय का वातावरण

बिलासपुर –::प्रकृति गुलाल निर्माण को एक नया आयाम देता ग्रामीण प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक विकास विभाग के प्रमुख दिलीप कुमार एवं पुष्पराज सिंह जिनके मार्गदर्शन में 2019 से लगातार 6वें वर्ष भी हर्बल ग़ुलाल उत्पादन किया जा रहा हैं जिसमे गुरुघासी दास केंद्रीय विश्वविद्यालय कुलपति डॉ.आलोक कुमार चक्रवाला के विचारो को सम्मत करते हुए स्वावलंबी छत्तीसगढ़ योजना के तहत विभिन्न उत्पादन कार्य समायोजित किया गया हैं जिसमे प्रमुख रूप से हर्बल ग़ुलाल निर्माण किया जाता हैं हर्बल ग़ुलाल बनाने की विधि प्राकृतिक गुलाल निर्माण के लिए बेस के रूप में अरारोट के आटे का प्रयोग किया जाता है फिर हल्दी, पालक भाजी, चुकंदर, सिंदूर, फूलों को इकठ्ठा करके, इसका रंग निकला जाता है फिर इसे अरारोट के आटे में मिलाया जाता है, इसके बाद इसे अच्छी तरह से सुखाया कर इसे बारीक पीसा जाता है इसके बाद इसे खुशबूदार बनाने के लिए संतरे का छिलका, लेमन ग्रास एवं फूलों को मिलाया जाता है। फिर इसे अच्छी तरह से आकर्षक पैकेजिंग कर मार्केट में बेचा जाता है।

इसके आलावा धान एवं चावल से रक्षाबंधन निर्माण के साथ मशरूम कि खेती, वर्मी कम्पोस्ट,मछलीपालन आर्ट एंड क्राफ्ट, एपिकल्चर मधुमख्खी पालन जैसे कई मल्टीप्रोडक्शन एक्टिविटीज कर के पर्यावरण एवं मिट्टी संरक्षण का भी कार्य फलिभुत हो रही हैं कुलपति जी का था की ग्लोबल वार्मिंग को रोका जाए पर्यावरण को संरक्षित किया जाए और इस कार्य को प्रौद्योगिकी से जोड़ा जाए और उद्देश्य ऐसा हो जिससे शिक्षिणार्थियों को सीधा लाभ मिले जिसको विभाग अंजाम तक पहुंचा रहें हैं विभाग प्रमुख के द्वारा जानकारी दी गई हैं कि 2019 में हर्बल ग़ुलाल उत्पादन 1क्विंटल कि गई जिसकी लागत 15 हजार से सुरुवात कि गई थीं जिसमें शिक्षिणार्थी लोग इसमें क्रम से अपना मेहनत और श्रम का योगदान करते हैं इस क्रम में उर्मी वर्मा, स्वाती सिंह, पूरभाषा, रागिनी पांडे, सुप्रिया पटेल, आंचल टोप्पो, वैशाली, रूचि, श्रद्धा, प्रदीप, आस्था दुबे, अंकिता, सीमा, तुषार खूंटे, अक्षत, उदय सिंह, केदार पटेल, आदि लोगो ने इसमें हिस्सा लिया

हर्बल ग़ुलाल की पैकिंग

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