
यह धर्म युद्ध है…?
छतीसगढ़ /आपकी आवाज : देश महज कागजों पर बना एक नक्शा या भूगोल नहीं होता। वह उसमें बसने वाले करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं की पूर्ति एवं सपनों को साकार करने का माध्यम होता है। इसलिए किसी भी देश मे रहने वाले अपने देश से प्रेम करते हैं फिर वह चाहे वर्दीधारी हो या सामान्य नागरिक। इसे दिल की गहराइयों से समझने की जरूरत है।बेशक वर्तमान मे चल रही राजनीति की मुझे कोई विशेष समझ नहीं है और न ही मै विशेषज्ञ होने का दावा करती हूं लेकिन इतनी समझ है कि देशहित मे क्या बुरा है क्या सही। विशेष कर तब जब देश संकट से घिरा हो और दुश्मन सीमा पार के साथ देश के भीतर भी मौजूद हो। ऐसे छद्म देशप्रेमी जादा घातक होते हैं।*
हमारी भारतीय सेना चाहे वह जल,थल या वायु सेना हो उनके शौर्य और पराक्रम पर किसी भी सच्चे भारतीय को रंच मात्र भी संदेह नहीं है और ना ही केन्द्र मे हमारी सरकार पर लेकिन हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां बनती है। जिनमें सर्वप्रथम देश के शीर्ष नेतृत्व को बिना किसी किन्तु परन्तु के समर्थन देना चाहिए साथ ही देशहित मे पूरा विश्वास भी करना चाहिए। अनावश्यक बयानबाजी से बचना होगा खास कर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर। जहां ठेठ कानपुरिया भाषा मे कहें तो भौकाल मचा हुआ है और आज नही यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चल रहा है। जो राफेल आज युद्ध मे गरजते हुए अपना जौहर दिखा रहे है उसके लिए देश के चौकीदार को कभी चोर तक का नाम चस्पा कर दिया गया गया था। चाहे सिन्धु जल समझौता रद्द करना हो या पहलगाम नर संहार को हिन्दू मुस्लिम ऐंगल न देकर सरकारी सुरक्षा तंत्र की नाकामी बताये जाने को मुद्दा बनाना,सरकार पर कड़ी कार्यवाही करने का शोर मचाना और कड़ी कार्रवाई होने पर बिलबिला कर युद्ध नहीं शांति की गुहार मचाना। सैकडों उदाहरण है जब देश हित मे लिए गए हर निर्णय पर सवाल खड़ा करना एक नियम सा बन गया है और इसका पालन करते हुए वे भूल गये कि कब सत्ता का विरोध करते हुऐ राष्ट्र विरोधी बन गये। ताज्जुब इस बात पर है कि यह सब देश के भीतर चल रहा है।
भारत शुरू से ही एक शांतिप्रिय देश रहा है।इतिहास गवाह है कि उसने सत्ता लोलुपता के लिए कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। उसके इसी गुण को विरोधियों ने कमतर आंका और उसकी कमज़ोरी समझने की भूल की। नतीजा सामने है कि अब कैसे वह अपनी इस भूल का मुआवजा चुका रहा है।अपनी सेना पर भरोसा रखिए वह हमारे बाह्य दुश्मनों से निपट लेगी, देश के प्रधानमंत्री पर विश्वास कीजिए वह देश हित मे ही निर्णय लेगें।आंतरिक कलह से निपटने हेतु पुलिस और अन्य सुरक्षा संगठन तो हैँ ही। ऐसी स्थिति मे हमारा भी कर्तव्य बनता है कि सोशल मीडिया पर मचे ऐसे छद्म युद्ध जो लोगों को गुमराह कर रहे हैं पर तूल ना देकर उनकी अनदेखी करें। समाज मे स्थिरता स्थापित के प्रयास करें।यह भी देश सेवा का एक हिस्सा ही है।
आशा त्रिपाठी